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Hindi Diwas

हिंदी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है. य़ह अपने आप में पूर्ण रूप से एक समर्थ और सक्षम भाषा है. सबसे बड़ी बात यह भाषा जैसे लिखी जाती है, वैसे बोली भी जाती है.

दूसरी भाषाओं में कई अक्षर साइलेंट होते हैं और उनके उच्चारण भी लोग अलग-अलग करते हैं, लेकिन हिंदी के साथ ऐसा नहीं होता. इसीलिए हिंदी को बहुत सरल भाषा कहा जाता है. हिंदी कोई भी बहुत आसानी से सीख सकता है. हिंदी अति उदार, समझ में आने वाली सहिष्णु भाषा होने के साथ भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका भी है.

क्यों देश में खास है हिंदी

पूरब से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण, आप देश के किसी कोने में चले जाइए, दो अलग-अलग भाषा के लोग जब एक दूसरे से बात करेंगे तो केवल हिंदी में ही. महाराष्ट्र का उदाहरण ले सकते हैं, जब यहां कोई गुजरातीभाषी व्यक्ति किसी मराठीभाषी व्यक्ति से मिलता है, तो दोनों हिंदी में बातचीत करते हैं. इसी तरह जब कोई दक्षिण भारतीय को किसी मराठीभाषी या गुजरातीभाषी या बंगालीभाषी से कुछ कहना चाहता है तो वह भी केवल हिंदी का ही सहारा लेता है.

आप चेन्नई या तमिलनाडु के किसी दूसरे इलाक़े में चले जाइए. राजनीतिक रूप से हिंदी का विरोध करने के बावजूद वहां लोग धड़ल्ले से हिंदी बोलते हैं, जो तमिलनाडु की जनता को हिंदी विरोधी जनता मानते हैं, उन्हें भी वहां तमिल लोगों को

हिंदी बोलते देखकर हैरानी होगी कि हिंदी का सबसे ज़्यादा विरोध करने वाले तमिलनाडु में भी दूसरी भाषा के लोग आमतौर पर हिंदी में ही बात करते हैं. यही हाल केरल में है, सीमांध्र-तेलंगाना और कर्नाटक में तो हिंदी रच बस गई है.

जब मोदी ने ये बात कही हिंदी के बारे में

दो साल साल भोपाल में 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी माना कि भारत में हिंदी सर्वमान्य भाषा है. बचपन का अनुभव शेयर करते हुए प्रधानमंत्री कहा था कि गुजरात के वड़नगर रेलवे स्टेशन जहां वह पैदा हुए थे, पर चाय बेचते समय जब भी उनसे कोई गैर-गुजरातीभाषी रेल यात्री मिलता था, तो वह हिंदी ही बोलता था, उससे टूटी-फूटी हिंदी बोलते-बोलते वह भी हिंदी सीख गए. यानी जो बात हमारे देश के प्रधानमंत्री कह रहे हैं, उसमें कोई बात तो ज़रूर होगी.

हिंदी भविष्य में विश्व-वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है. विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा कई अवसरों पर अमेरिकी नागरिको को हिंदी सीखने की सलाह दे चुके हैं. वह कहते हैं भविष्य में हिंदी सीखे बिना काम नहीं चलेगा. यह सलाह अकारण ही नहीं थी.

10वां विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल. फोटो साभार : (vishwahindisammelan.gov.in)
10वां विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल. फोटो साभार : (vishwahindisammelan.gov.in)

 

भारत उभरती हुई विश्व-शक्ति के रूप में पूरे विश्व में जाना जा रहा है. यहां संस्कृत और भाषा हिंदी को ध्वनि-विज्ञान और दूर संचारी तरंगों के माध्यम से अंतरिक्ष में अन्य सभ्यताओं को संदेश भेजे जाने के नज़रिए से सर्वाधिक सही पाया गया है.

कैसा रहा है हिंदी भाषा का इतिहास

हिंदी भाषा का इतिहास की बात करें तो यह भाषा लगभग एक हज़ार साल पुरानी मानी जाती है. सामान्यतः प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है. उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही ‘पद्म’ रचना प्रारंभ हो गई थी. हिंदी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्‍था ‘अवहट्ठ’ से हिंदी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं.

चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने इसी अवहट्ठ को ‘पुरानी हिंदी’ नाम दिया. हिंदी चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है. हिंदी और इसकी बोलियां उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं. फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिंदी बोलती है. एक अनुमान के अनुसार भारत में 42.2 करोड़ लोगों की आम भाषा हिंदी है. वैसे इस देश में क़रीब एक अरब लोग हिंदी बोलने और समझते हैं.

इसी तरह हिंदी साहित्य का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. भाषा वैज्ञानिक डॉ. हरदेव बाहरी के शब्दों में, ‘हिंदी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से शुरू होता है. साहित्य की दृष्टि से आरंभ में पद्यबद्ध रचनाएं मिलती हैं. वे सभी दोहा के रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश होते हैं. राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे.

यह रचना-परंपरा आगे चलकर शैरसेनी अपभ्रंश या प्राकृताभास हिंदी में कई वर्षों तक चलती रही. पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरंतर बढ़ता गया. हिंदी को कवि विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किंतु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिंदी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब शुरू हुआ. इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि शुरू में हिंदी शब्द का प्रयोग मुस्लिम आक्रांताओं ने किया था. इस शब्द से उनका तात्पर्य ‘भारतीय भाषा’ का था.

कैसे हुआ हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार

दरअसल, हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर ही सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज़ाद भारत की राजभाषा के सवाल पर मैराथॉन के बाद निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के 17 वें अध्याय की धारा 343/एक में वर्णित है: भारतीय संघ की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी. भारतीय संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा.

अगर विस्तृत इतिहास में जाएं तो, 14 सितंबर 1949 को ही संविधान सभा ने लंबी बहस के बाद एक मत से निर्णय लिया था कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी. इस बहस में देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी भाग लिया था. संविधान सभा में 13 सितंबर, 1949 को पं. नेहरू ने तीन प्रमुख बातें कही थीं-

पहली बात- किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता.
दूसरी बात- कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती.
तीसरी बात- भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना ही होगा.

हिंदी भाषा की जरूरत

संविधान सभा की भाषा संबंधी बहस लगभग 278 पृष्ठों में छपी है. इस संबंध में डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और गोपाल स्वामी आयंगार की अहम भूमिका रही. बहस में सहमति बनी कि भारत की भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी. हालांकि देवनागरी में लिखे जाने वाले अंकों तथा अंग्रेज़ी को15 वर्ष या उससे अधिक अवधि तक प्रयोग करने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई. अंतत: आयंगर-मुंशी का फ़ार्मूला भारी बहुमत से स्वीकार कर लिया गया.

वास्तव में अंकों को छोड़कर संघ की राजभाषा के सवाल पर अधिकतर सदस्य सहमत हो गए. अंकों के बारे में भी यह स्पष्ट था कि अंतर्राष्ट्रीय अंक भारतीय अंकों का ही एक नया संस्करण है. कुछ सदस्यों ने रोमन लिपि के पक्ष में प्रस्ताव रखा, लेकिन देवनागरी को ही अधिकतर सदस्यों ने स्वीकार किया.

भारत में भले ही अंग्रेज़ी बोलना सम्मान की बात मानी जाती हो, पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेज़ी का इतना महत्त्व नहीं है. हिंदी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेज़ी माध्यम का चयन किया जाना है.

आज भी भारत में अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों का दाख़िला ऐसे स्कूलों में करवाना चाहते हैं, जो अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं. जबकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु सर्वाधिक आसानी से अपनी मातृभाषा को ही ग्रहण कर पाता है और मातृभाषा में किसी भी बात को भली-भांति समझ सकता है. अंग्रेज़ी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है. अत: भारत में बच्चों की शिक्षा का सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हिंदी ही है.

भारत की मौजूदा शिक्षा पद्धति में बालकों को पूर्व प्राथमिक स्सेकूल ही अंग्रेज़ी के गीत रटाये जाते हैं. यदि घर में बालक बिना अर्थ जाने ही आने वाले अतिथियों को अंग्रेज़ी में कविता सुना दे तो माता-पिता का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है. हिंदी की कविता केवल दो दिन 15 अगस्त’ और 26 जनवरी’ पर पढ़ी जाती है, इसके बाद कोई हिंदी नहीं बोलना चाहता. अंग्रेज़ी भाषी विद्यालयों में तो किसी विद्यार्थी द्वारा हिंदी बोलने पर मनाही होती है.

हिंदी के लिए कई जगह अपमानजनक वाक्य लिखकर तख्ती लगा दिया जाता है. अतः बच्चों को अंग्रेज़ी समझने की बजाय रटना पड़ता है, जो अवैज्ञानिक है. ऐसे अधिकांश बच्चे उच्च शिक्षा में माध्यम बदलते हैं और भाषिक कमज़ोरी के कारण ख़ुद को समुचित तरीक़े से अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं और पिछड़ जाते हैं. इस मानसिकता में शिक्षित बच्चा माध्यमिक और उच्च्तर माध्यमिक में मजबूरी में हिंदी पढ़ता है, फिर विषयों का चुनाव कर लेने पर व्यावसायिक शिक्षा का दबाव हिंदी छुड़वा ही देता है.

हिंदी की शब्द सामर्थ्य पर प्रायः अकारण तथा जानकारी के अभाव में प्रश्न चिह्न लगाये जाते हैं. वैज्ञानिक विषयों, प्रक्रियाओं, नियमों और घटनाओं की अभिव्यक्ति हिंदी में कठिन मानी जाती है, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है. हिंदी की शब्द संपदा अपार है. हिंदी सतत प्रवाहिनी है, उसमें से लगातार कुछ शब्द काल-बाह्य होकर बाहर हो जाते हैं तो अनेक शब्द उसमें प्रविष्ट भी होते हैं.

हिंदी के अनेक रूप देश में आंचलिक या स्थानीय भाषाओं और बोलिओं के रूप में प्रचलित हैं. इस कारण भाषिक नियमों,क्रिया-कारक के रूपों, कहीं-कहीं शब्दों के अर्थों में अंतर स्वाभाविक है, किंतु हिंदी को वैज्ञानिक विषयों की अभिव्यक्ति में सक्षम विश्व भाषा बनाने के लिए इस अंतर को पाटकर क्रमशः मानक रूप लेना होगा. अनेक क्षेत्रों में हिंदी की मानक शब्दावली है, जहां नहीं है, वहां क्रमशः आकार ले रही है.

हिंदी पूरी दुनिया में फैली

जन सामान्य भाषा के जिस देशज रूप का प्रयोग करता है, वह कही गई बात का आशय संप्रेषित करता है, किंतु वह पूरी तरह शुद्ध नहीं होता. ज्ञान-विज्ञान में भाषा का उपयोग तभी संभव है, जब शब्द से एक सुनिश्चित अर्थ निकले. इस दिशा में हिंदी का प्रयोग न होने को दो कारण इच्छा शक्ति की कमी और भाषिक एवं शाब्दिक नियमों और उनके अर्थ की स्पष्टता न होना है.

हिंदी को समक्ष बनाने में सबसे बड़ी समस्या विश्व की अन्य भाषाओं के साहित्य को आत्मसात कर हिंदी में अभिव्यक्त करने की तथा ज्ञान-विज्ञान की हर शाखा की विषयवस्तु को हिंदी में अभिव्यक्त करने की है. हिंदी के शब्दकोष का पुनर्निर्माण परमावश्यक है. इसमें पारंपरिक शब्दों के साथ विविध बोलियों, भारतीय भाषाओं, विदेशी भाषाओं, विविध विषयों और विज्ञान की शाखाओं के परिभाषिक शब्दों को जोड़ा जाना बहुत ज़रूरी है.

हिंदी की जरूरी बातें

अंग्रेज़ी के नए शब्दकोशों में हिंदी के हज़ारों शब्द समाहित किये गए हैं, किंतु कई जगह उनके अर्थ,भावार्थ ग़लत हैं. हिंदी में अन्यत्र से शब्द ग्रहण करते समय शब्द का लिंग, वचन, क्रियारूप, अर्थ, भावार्थ तथा प्रयोग शब्द कोष में हो तो उपयोगिता में वृद्धि होगी. यह महान कार्य सैंकड़ों हिंदी प्रेमियों को मिलकर करना होगा. विविध विषयों के विशेषज्ञ जन अपने विषयों के शब्द-अर्थ दें, जिन्हें हिंदी शब्द कोष में जोड़ा जाए.

तकनीकी विषयों और गतिविधियों को हिंदी भाषा के माध्यम से संचालित करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उनकी पहुंच असंख्य लोगों तक हो सकेगी. हिंदी में तकनीकी शब्दों के विशिष्ट अर्थ सुनिश्चित करने की ज़रूरत है. तकनीकी विषयों के रचनाकारों को हिंदी का प्रामाणिक शब्द कोष और व्याकरण की पुस्तकें अपने साथ रखकर जब और जैसे समय मिले, पढ़ने की आदत डालनी होगी. हिंदी की शुद्धता से आशय उर्दू, अंग्रेजी यानी किसी भाषा, बोली के शब्दों का बहिष्कार नहीं, अपितु भाषा के संस्कार, प्रवृत्ति, रवानगी, प्रवाह तथा अर्थवत्ता को बनाये रखना है. चूंकि इनके बिना कोई भाषा जीवंत नहीं होती.

बॉलीवुड ने बढ़ाया हिंदी का मान

हिंदी भाषा की चर्चा बॉलीवुड यानी हिंदी सिनेमा की चर्चा किए बिना अधूरी मानी जाएगी. जी हां, हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी सिनेमा की सबसे ज़्यादा भूमिका रही है. हिंदी फिल्में शुरू से देश दुनिया में हिंदी का अलख जगाती रही हैं. यही वजह है कि जितने लोकप्रिय हिंदी फ़िल्मों में काम करने वाले अभिनेता-अभिनेत्री हुए, उतने लोगप्रिय दूसरी भाषा के कलाकार नहीं हो पाए.

आजकल तमाम चैनलों पर प्रसारित हिंदी सीरियल हिंदी का वैश्वीकरण कर रहे हैं. हिंदी की चर्चा पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के ज़िक्र के बिना पूरी हो ही नहीं सकती क्योंकि दुनिया में हिंदी का परिचय बतौर विदेश मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने कराया था.

जहां भारतीय नेता विदेशों में हिंदी बोलने में संकोच करते हैं, वहीं चार अक्टूबर 1977 को दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में वाजपेयी ने हिंदी में भाषण दिया और उन्होंने इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताया था. यहां, यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि सभी भारतीय भाषाओं की हिंदी बड़ी बहन है. बड़ी बहन अपनी सभी छोटी बहनों का ख़याल रखती है.

हरिगोविंद विश्वकर्मा हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे मुंबई में रहते हैं. इस लेख के लिए इंडिया रिव्यूज डॉट कॉम उनका आभारी है. 

By हरिगोविंंद विश्वकर्मा

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक.

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