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महाराष्ट्र में अष्टविनायक गणपति के दर्शन का अपना महत्व है. महाराष्ट्र के अष्टविनायक गणपति मंदिरों की अपनी महिमा है. यहां स्थापित गणपति स्वयं-भू हैं.

महाराष्ट्र के अष्टविनायक (Ashtavinayak darshan sequence) गणपति मंदिरों की अपनी महिमा है. यहां स्थापित गणपति स्वयं-भू हैं. स्वयं-भू का अर्थ होता है इन गणपति की मूर्तियों की स्थापना नहीं हुई बल्कि वे स्वयं ही प्रकट हुई हैं. महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थिति इन मंदिरों का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है.

यह एक तरह से पूरी यात्रा है जिसे अष्टविनायक यात्रा (Ashtavinayak yatra darshan) कहा जाता है. इन मंदिरों की यात्रा करने का अपना महत्व है, कहते हैं अष्टविनायक की परिक्रमा करना तीर्थ करने जैसा है.

गणपति के इन 8 मंदिरों में से 6 मंदिर पुणे जिले में है जबकि 2 रायगढ़ जिले में स्थित हैं. एक तरह से पुणे से इनकी दूरी 20 से 110 किलोमीटर है. अष्टविनायक के इन 8 मंदिरों का उल्लेख मुद्गल पुराण में माना जाता है. यह मंदिर प्राचीन तो हैं ही बल्कि इन मंदिरों का वास्तुशिल्प भी देखने लायक है. समय-समय पर इन मंदिरों का पेशवा शासन के दौरान नवीनीकरण किया गया है. अष्टविनायक के 8 मंदिर उनके स्थान के अनुसार ये हैं.

1. मयूरेश्वर या मोरेश्वर – मोरगांव, पुणे (Mayureshwar Vinayak, Moreshwar Temple, Morgaon)
2. सिद्धिविनायक – करजत तहसील, अहमदनगर (Siddhivinayak Temple, Siddhatek Ahmednagar)
3. बल्लालेश्वर – पाली गांव, रायगढ़ (Ballaleshwar Temple, Pali, Raigad)
4. वरदविनायक – कोल्हापुर, रायगढ़ (Varadavinayak Temple, Mahad village Khalapur )
5. चिंतामणी – थेऊर गांव, पुणे (Chintamani Temple, Theur)
6. गिरिजात्मज अष्टविनायक – लेण्याद्री गांव, पुणे (Girijatmaj Temple, Lenyadri, Pune)
7. विघ्नेश्वर अष्टविनायक – ओझर (Vighnahar Temple, Ozar, Pune)
8. महागणपति – राजणगांव (Mahaganapati Temple, Ranjangaon, Shirur and 50 km from Pune)

1- मयूरेश्वर या मोरेश्वर, मोरगांव, पुणे: पुणे से तकरीबन 80 किलोमीटर स्थित मयूरेश्वर मंदिर है. यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है और यहां स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा का अपना महत्व है. बैठे हुए विनायक की सूंड यहां बांई ओर है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश ने यहां सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था. विशेष बात यह है कि यह वध भगवान ने मयूर यानी की मोर पर बैठकर किया था. इसी कारण यहां गणपति को मयूरेश्वर कहा जाता है.

2-सिद्धिविनायक, करजत तहसील: पुणे से सिद्धिविनायक मंदिर की दूरी है तकरीबन 200 किलोमीटर. पौराणिक कथा के अनुसार यहां यानी की सिद्धटेक में विष्णु भगवान ने सिद्धियां हासिल की थी. भगवान विनायक का यह मंदिर वहीं स्थित है. मंदिर चूंकि चोटी पर स्थित है लिहाजा इसकी पूजा करने के लिए पहाड़ की ही परिक्रमा करनी होती है. यहां गणेश की प्रतिमा की ऊंचाई तकरीबन 3 फिट है इसकी चौड़ाई ढाई फिट है. गणपति जी की सूंड दाहिनी ओर है.

3-बल्लालेश्वर, पाली गांव, रायगढ़: रायगढ़ जिले में स्थित इस विनायक मंदिर की अपनी महिमा है. इस मंदिर का नाम गणेश जी के प्रिय भक्त बल्‍लाल के नाम पर है. कथा के अनुसार- बल्लाल भक्त की गणेश भक्ति से परेशान होकर परिवार के लोग इतने नाराज हो गए की बल्लाल को उनकी गणपति की मूर्ति सहित जंगल में फेंक दिया. बल्लाल इससे परेशान नहीं हुए बल्कि उन्होंने वहां पूरा समय ही भगवान विनायक का स्मरण करते हुए बिताया. उनकी भक्ति से विनायक इतने प्रसन्न हुए की यहीं पर बल्लाल को दर्शन दिए, बाद में विनायक का एक मंदिर बल्लालेश्वर के नाम से बना. इस मंदिर में जाने के लिए आपको मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर उतरना होगा.

4-वरदविनायक, कोल्हापुर, रायगढ़: भगवान विनायक का यह स्वरूप वरदान देने वाला और मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है. वे भक्त जिनकी कुछ मनोकामनाएं हैं वे यहां जरूर आते हैं. कहते हैं की यहां दर्शन करने से भगवान का गणेश का वरदहस्त जीवन भर बना रहता है.

5-चिंतामणी, थेऊर गांव, पुणे: गणपति का यह स्वरूप चिंताओं का हरने वाला है. विनायक का यह मंदिर थेऊर गांव में है. यहां 3 नदियां मिलती हैं. भीम, मुला और मुथा. बस इसी के किनारे स्थित है चिंतामणी मंदिर. कहा जाता है कि यहां स्थित गणपति के दर्शन मात्र से मन को शांति मिलती है. पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा ने मन को शांत करने के लिए यहीं तपस्या की थी.

6-गिरिजात्मज अष्टविनायक, लेण्याद्री गांव, पुणे: गिरिजात्मज का अर्थ होता है गिरजा के आत्मज यानी की स्वयं माता पार्वती के गणेश. पुणे नासिक राजमार्ग पर पुणे से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर स्थित इस विनायक मंदिर की अपनी महत्वता है. इसे बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है. मराठी में गुफा को लेणी कहते हैं. यह मंदिर लेण्याद्री पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं में स्थित है. यहां तकरीबन 18 बौद्ध गुफाएं हैं. इन्हें गणेश गुफाएं भी कहा जाता है. पूरा मंदिर एक ही पहाड़ को काटकर बनाया गया है. इसकी स्थापत्य कला देखने लायक है.

7-विघ्नेश्वर अष्टविनायक, ओझर: पुणे के ओझर जिले के जूनर में विनायक का यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. यही वह जगह है जहां भगवान गणेश को विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार जैसा नाम मिला. पौराणिक कथा के अनुसार यहां गणपति ने विघनासुर का वध किया था. पुणे-नासिक रोड पर यह तकरीबन 85 किलोमीटर दूरी पर है.

8-महागणपति, राजणगांव:  राजणगांव का महागणपति मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है. 9-10वीं सदी में बनाया गया यह मंदिर अपनी वास्तु कला के लिए भी जाना जाता है. यहां स्थित विनायक की मूति मूर्ति माहोतक नाम से जानी जाती है.

सभी फोटो साभार (Image Source- Ashtavinayaktemples.com and wikipedia)

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