बढ़ते प्रदूषण ने फेफड़े संबंधी बीमारियों को तेजी से बढ़ाया है. दमा भी बढ़ते प्रदूषण का ही नतीजा है. हालांकि दमा या श्वास रोग वंशानुगत भी होता है. दमा पेशेंट को सांस लेने और छोड़ने में काफी तकलीफ होती है. दरअसल, दमा एक असाध्य रोग है क्योंकि इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है. हालांकि दमा को यदि इसके शुरुआती दौर में ही खत्म कर लिया जाए तो इससे मुक्ति पाई जा सकती है. लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि दमा का यदि ठीक से इलाज नहीं किया और इसके पेशेंट ने खाने-पीने में परहेज नहीं किया तो यह जानलेवा तक हो सकता है.
दमा के लक्षण कारण और उपाय (know asthma symptoms, causes and treatment)
दमा की बीमारी में सांस की नलियों में कफ जमा होने के कारण रोगियों को सांस लेने और छोड़ने में दिक्कत होती है. देखा जाए तो सांस छोड़ने पर फेफड़ों के साथ सारी श्वसन नलिकाओं में आकुंचन होता है और इसी प्रक्रिया से अंदर की हवा बाहर आती है. दमा का दौरा जब भी आता है तो श्वसन केंद्र पर झटके आते हैं जिससे आकुंचन क्रिया भी झटके से और गति के साथ होती है और इससे इस दमे के कारण दमा के रोगी को बहुत तकलीफ होती है.
क्या है दमा का इलाज know about asthma signs and symptoms
दमा का इलाज कठिन है. बहुत कम लोग हैं जिन्हें दवाइयों से राहत मिल पाती है. एलोपैथी में इसका इलाज थोड़ा मुश्किल है. दमे से पीड़ित व्यक्ति बार-बार दमे के दौरों से परेशान होता है और दवाइयां लेता रहता है. यही नहीं कुछ लोग खान-पान में लापरवाही बरतने, गलत लाइफ स्टाइल के चलते दमे की बीमारी को बहुत बढ़ा लेते हैं. दमे से बचने में व्यक्ति की संयम शक्ति एक अहम रोल निभाती है.
दमा के शुरुआती लक्षण और कारण
कारण- वातावरण में मौजूद धूल- धुआं और कचरा आदि रोग का कारण बनते हैं. गले की सूजन, लम्बे समय तक सर्दी, खांसी, ब्रांकाइटिस या क्षय रोग के बाद श्वास रोग के होने की संभावना रहती है. आस-पास की हवा में मौजूद धूल कण व धुआं आदि हमारे श्वसन संस्थान को उत्तेजित करके दमा का दौरा लाते हैं.
बीड़ी, सिगरेट, गांजा, भांग, तम्बाकू, अफीम, शराब आदि भी दमा के होने के महत्त्वपूर्ण कारण हैं. दमा का दौरा आने से पहले रोगी को सिर में भारीपन, घबराहट, बेचैनी नाक व गले में सुर-सुराहट, खराश, सूजन व बदन दर्द होने लगता है.
क्या हैं दमा के लक्षण (Asthma symptoms in hindi)
दमा का दौरा 5 मिनट से लेकर एक घंटे तक रहता है. उपचार देने पर थोड़ा कफ बाहर निकलकर रोगी को आराम मिलता है. दमा की सभी दवाओं में कुछ मात्रा विष की होती है जो रोगी को कुछ समय तक चमत्कारिक रूप से राहत पहुंचाती है. इसलिए कई रोगी दौरा आने से पहले ही दवा लेकर सो जाते हैं.
दमा का दौरा बरसात के दिनों में ज्यादा पड़ता है. इसके अतिरिक्त मानसिक दुर्बलता, ज्ञान तंतु के कमजोर होने, दुखद प्रसंग आदि के कारण भी दमा का दौरा पड़ता है.
कैसे करें दमा का उपचार (What is the best treatment for asthma at home)
उपचार:- रोगी को अपने खान-पान का ध्यान रखना चाहिए. अल्प मात्रा में भोजन करना हितकर होता है. रोगी को ऐसा आहार लेना चाहिए ताकि कब्ज न होवे. अगर संभव हो तो समय समय पर एनिमा लेना चाहिए. इससे पेट साफ रहेगा. समशीतोष्ण जल टब स्नान से रोगी की लाभ मिलता है.
टब स्नान से थके मांसपेशियों तथा ज्ञान तंतुओं का तनाव दूर होता है. रोगी के सिर पर ठंडे पानी की पट्टी बदल बदलकर रखना चाहिए. इससे शरीर के ऊपरी भाग, सिर व दोनों फेफड़ों की थकावट दूर होती है.
क्या है अस्थमा अटैक के लक्षण? क्या करें जब दमा का दौरा आए? (What should you do when having an asthma attack?)
जब दमा का तीव्र दौरा पड़े तो रोगी का हाथ और पैर गरम पानी में डुबाना चाहिए. गर्म पानी में नीलगिरी का तेल मिलाकर नाक, गले और छाती में भाप देना चाहिए. इससे श्वास नलिकाएं फैल जाती हैं जिससे उसमें रूका हुआ कफ बाहर निकल आता है और रोगी को राहत मिलती है.
रोगी को 15-20 मिनट ही भाप देना चाहिए. इसके अलावा एक ठंडी चादर और तौलिया रोगी की छाती पर लपेटकर उसे लेटा देना चाहिए. छाती पर लपेट भी दमा के लिए उपयोगी उपचार है. दौरे के समय छाती पर गरम सेंक सर्वोत्तम उपचार है. इस तरीके से कमजोर रोगी का भी उपचार किया जा सकता है.
दमा के रोगी को क्या खाना चाहिए? ( Asthma patient diet chart in hindi)
रोगी को समय-समय पर गरम पानी या गरम पेय अदरक, शहद, तुलसी का काढ़ा पीने के लिए दिया जाए. यदि रोगी के लिए नींबू अनुकूल हो तो इसे भी दिया जा सकता है.
कच्चा साग, भाजी, सूप और मौसमी का रस भी दिया जा सकता है. रोगी को गरिष्ठ आहार से बचना चाहिए. गरिष्ठ आहार खाने से दौरा पड़ने की संभावना रहती है. तीव्र दौरे की स्थिति में कुछ दिनों तक उपवास कराना हितकर होता है.
दमा में जरूरी है एक्सरसाइज (best exercise for asthma and breathing exercises for asthma patients)
पूर्ण लाभ होने पर एक वर्ष तक दमा का दौरा न पड़े तो रोगी को रोगमुक्त मानना चाहिए. रोगमुक्त होने के पश्चात् भी खान पान में सावधानी रखनी चाहिए. साथ ही धीरे-धीरे व्यायाम करने की आदत डालनी चाहिए.
व्यायाम करने से फेफड़े मजबूत होंगे और पसीने के साथ शरीर के विजातीय पदार्थ बाहर निकल आएंगे. इस तरह से कोई भी रोगी सारी उम्र स्वस्थ जीवन जी सकता है.
(नोट : यह लेख आपकी जागरूकता, सतर्कता और समझ बढ़ाने के लिए साझा किया गया है. यदि आप पेशेंट हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें.)