Wed. Apr 24th, 2024
अपने बच्चे पर ध्यान दीजिए क्योंकि बच्चे बाजार में नहीं मिलते. (Image Pixabay.com)अपने बच्चे पर ध्यान दीजिए क्योंकि बच्चे बाजार में नहीं मिलते. (Image Pixabay.com)

बच्चों की दुनिया खूबसूरत और कोमल होती है. बच्चों की छोटी सी दुनिया में यदि कोई सबसे करीब होता है तो वह होते हैं उसके माता-पिता. मां के साथ जहां बच्चे अपनी हर छोटी से छोटी चीज को हासिल करते हैं, वहीं पिता में एक ऐसे दोस्त को देखते हैं जो उनके हर सपनों को पूरा करते हैं और जो इस बड़ी सी दुनिया की किसी भी मुसीबत से उन्हें बचाने के लिए उनके साथ हरदम खड़ा रहता है.

आजकल ज्यादातर पेरेंट्स वर्किंग होते हैं, जाहिर है बढ़ती मंहगाई, महानगरों में जीवन की प्राथमिक सुविधाओं को हासिल करने के लिए अधिक पैसे और संसाधनों की जरूरत के चलते अभिभावक का कामकाजी होना जायज भी है, ऐसे में बच्चे या तो बाहर पलते हैं अथवा घर पर कोई आया आकर उन्हें संभालती है. (bad parenting signs effects and how to change it) लेकिन क्या वर्किंग पेरेंट्स होने के नाते उनकी थोड़ी सी भी जिम्मेदारी अपने बच्चे के प्रति नहीं होती है?

खासतौर पर बच्चों पर ध्यान देने की समस्या तब शुरू होती है जब बच्चे 15 साल की उम्र तक पहुंचते हैं और वे टीएनजर्स कहलाने लगते हैं. जाहिर है बचपन तो जैसे-तैैैसे गुजर जाता है या फिर दादा-दादी का साथ रहना नसीब हो तो भी जीवन का सबसे अलग समय बीत जाता है लेकिन जब किशोरावस्था की दहलीज पर पैर रखते 16 से 17 के बीच आते हैं तो जरूरी हो जाता है कि उनकी जिंदगी की लगाम को उनके माता-पिता हाथ में ले ले.

एक ओर जहां लड़की को मां का साथ चाहिए होता है जबकि बेटे को पिता का ताकि दुनियादारी संतुलन के साथ साध लें. दुनिया की कंटीली राहों पर चलने के लिए उनका साया और साथ साथ रहे. अफसोस तब होता है जब उनकी इस उम्र में उनके साथ में माता-पिता नहीं बल्कि मोबाइल होता है और कुछ ऐसी यारियां होती हैं जो उन्हें बर्बादी की ओर ले जाती है. मायूसी तब होती है जब बच्चे घर में होते हैं और मां-बाप उनका भविष्य संवारने के लिए ऑफिस में खट रहे होते हैं.  जब कुछ समझ आता है तब बहुत देर हो चुकी होती है. 

क्या आप बतौर कामकाजी माता-पिता अपने बच्चे को पूरा समय दे पा रहे हैं? दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु व हैदराबाद जैसे शहरों में वर्किंग पेरेंट्स पैसा तो खूब बना रहे हैं और उनका दावा है कि वे कमा इसलिए रहे हैं कि आगे चलकर अपने बच्चे का भविष्य बनाएंगे, लेकिन सवाल यह है कि बच्चे का वर्तमान क्या है? क्या बच्चे के भविष्य के लिए दिन-रात एक कर रहे माता-पिता (bad parenting effects) बजाय फ्यूचर बनाने के उसके भविष्य को बिगाड़ने का काम तो नहीं कर रहे?

यकीनन, बहुत सारे सवाल ऐसे समय में उठते हैं, क्योंकि जब बच्चे को वर्तमान में ही टाइम नहीं दिया जा रहा तो भविष्य में उसकी तस्वीर कैसी होगी क्या ये आधुनिक माता-पिता कितना जानते हैं? (bad parenting and society in hindi) ऊपर से सोने पर सुहागा बात यह है कि बच्चा भी इकलौता है क्योंकि मां-बाप को एक ही बच्चा बोझ लग रहा है सो दूसरे उस बच्चे के भाई-बहन की संभावना पहले की खारिज हो चुकी है. वर्तमान अकेला और भविष्य की चुनौतियों से निपटने मेंं ना आगे चलकर कोई भाई होगा ना बहन?

क्या ऐसे में मां-बाप ही बच्चे के दुश्मन नहीं हो गए?  

जाहिर है वर्तमान बिगाड़कर किसी का भविष्य बनाया ही नहीं जा सकता तो फिर बच्चे एकांगी, मन की करने वाले, मोबाइल की लत के शिकार और आगे चलकर गलत आदतों में लिप्त होने वाले बन जाते हैं.

नोएडा से लेकर दिल्ली तक और गुड़गांव से फरीदाबाद तक यहां तक की मुंबई, व बी ग्रेड के सिटी इंदौर, भोपाल,जयपुर, कानपुर, लखनऊ ऐसे कई शहर हैं जहां दर्जनों उदाहरण ऐसे मां-बाप के मिल जाएंगे जिन्होंने बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए 9-5 की जॉब में खुदको झोंक दिया, लेकिन जब पता चला कि बच्चा तो मां-बाप के ध्यान नहीं देने के चक्कर में अपना वर्तमान बर्बाद कर चुका है, तो भविष्य तो बहुत मुश्किल दिख रहा है.

दरअसल, कामकाज का जुनून और जिंदगी में बहुत पैसा कमाकर आगे बढ़ जाने की महत्वकांक्षा में डूबी मांओं के पास यह समय ही नहीं है कि उनके बच्चे ने आज क्या खाया है, क्या पहना है और उसकी हेल्थ कैसी है? जबकि काम के बोझ में दुहरा हो रहे पिता ने ऊंची बिल्डिंग में लिए गए फ्लैट की ईएमआई में खोकर कभी जानने की कोशिश ही नहीं कि उनका बच्चा उनके ऑफिस से लौटने पर कार लेकर पब गया था या डिस्को, वह ड्रग्स लेकर लौटा या शराब पीकर लौटा? 

पिता को यह बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि दिनों से जिद करके जो मोबाइल उनके बच्चे ने जन्मदिन पर हासिल किया है उसमें वह क्या देखता है, क्या उसे पॉर्न की लत तो नहीं लग गई? (bad parenting articles)

क्या वह ऐसे गेम्स तो नहीं खेल रहा जिससे किसी दिन वह आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठा सकता है? क्या मोबाइल में उसे ऑनलाइन रमी या जुआं खेलने की आदत तो नहीं लग गई? (how to stop bad parenting) कहीं बच्चा ड्रग्स, नशे की लत, कम उम्र में गलत आदतों का शिकार, पैसे खर्च करने का शौक, जिद्दी और कई तरह के मानसिक विकारों का शिकार तो नहीं हो गया?

जाहिर है यह कथित विकास और मॉर्डन समाज की कहानियां हजारों नहीं बल्कि लाखों बच्चों की हैं और देश के कई शहरों में घट रही हैं. कहानियां खबरों में हैं और किसी वेबसाइट के लिंक के रूप में पड़ी हुई हैं.

एक अच्छे पेरेंट्स के रूप में कितने सफल हुए हैं इसका मूल्यांकन बहुत दूर जाकर नहीं करना है आपको. चंद बाते ही हैं जिन्हें आपको अपने गिरेबां में झांककर पूछना है.

  • कभी बच्चे से स्कूल की पढ़ाई ना पूछना, घर आकर उनसे हालचाल ना लेना कि बेटा तुमने दिनभर में क्या किया और कहां समय बिताया? 
  • अपने बच्चों के दोस्तों की खोज-खबर ना लेना, वे किसके साथ रहते हैं और किन दोस्तों के साथ क्या करते हैं?  
  • उन पर ध्यान ना देना कि वे क्या करते हैं, कहां जाते हैं? कहीं ऐसी जगह तो नहीं जाते जहां आज तक आप नहीं गए? 
  • आप कितना टाइम उनके साथ गुजारते हैं? क्या पार्क में, ग्राउंड पर समय बिताया है, या फिर फिल्म दिखाकर और खाना खिलाकर आपने वीक एंड का एक और काम निपटा दिया है? 
  •  मोबाइल देकर उससे इतिश्री कर लेते हैं? या फिर जिद करने पर कि कहीं उन्हें टाइम ना देना पड़ जाए आप उन्हें कोई चीज दिलाकर अपना पिंड उनसे छुड़ाते हैं? यदि ऐसा करते हैं तो याद रखिए बच्चे का भविष्य दूसरा आकार ले रहा है..!

    यकीनन ये सवाल जटिल और मन को दुख पहुंचाने वाले हैं, लेकिन सवाल तो हैं ऐसे में समाधान निकालिए, अफसोस मत मनाइए. 

एक बार अपने मन में जरूर पूछिए कि कहीं आप अपने ही बच्चे से पीछा तो नहीं छुड़ा रहे आप? (effects of bad parenting on a child) यदि हां तो फिर गलती सुधारिए और अपनी ही दुनिया से बाहर आकर अपने लाल की जिंदगी में झांकिए क्योंकि डूबते हुए एक सितारे को अब भी बचाया जा सकता है.

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