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ग्लोबल वॉर्मिंग के संकट और दुनिया में लगातार बढ़ते प्रदूषण के बीच हरे-भरे पेड़ों का हमारी पृथ्वी के लिए क्या महत्व है ये आज कोई बच्चा भी बता देगा.

दरअसल, पेड़ों के बारे में हम उतना ही जानते हैं जितना की कभी स्कूल के क्लास रूम में बताया गया था. हाल ही में मीडिया में खबरें आईं थी कि कैसे दिल्ली के अधिकारी इमारतें बनाने के लिए कुछ इलाकों में 17,000 बड़े-बड़े पेड़ काटने की फिराक में थे. जबकि इस फैसले पर माननीय दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक लगाकर बड़ा अहम फैसला लिया.

दरअसल, इन पेड़ों को काटे जाने का विरोध कर रहे लोगों को यह दिलासा दिया जा रहा था कि हर एक काटे गए पेड़ पर 10 नए पौधे लगाए जाएंगे. मंत्री से लेकर नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन तक और हम सब ये अच्छी तरह से जानते हैं कि यह वादा मूर्खतापूर्ण है: आज जो खोएंगे, उसकी भरपाई कल कर दी जाएगी” (पर कब? आज से 20 साल बाद? और यदि पौधे बच पाए तो?).

बहरहाल, पर्यावरण को बचाने के बीच पेड़ों को काटने निकृष्ट खेल सिर्फ दिल्ली में नहीं चल रहा है. हर राज्य, हर शहर के योजनाकार यही कर रहे हैं. यह रवैया पेड़ों और उनके महत्व के प्रति ना सिर्फ अज्ञानता बल्कि अहंकार और उपेक्षा का द्योतक है. लेकिन वक्त आ गया है कि योजनाकार पेड़ों के आर्थिक, पारिस्थितिक, स्वास्थ सम्बंधी और सामाजिक महत्व के प्रति सचेत हो जाएं.

क्या है मानव जीवन में पेड़ों का महत्व

1979 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ. टी. एम. दासगुप्ता ने गणना करके बताया था कि 50 साल की अवधि में एक पेड़ का आर्थिक मूल्य 2,00,000 डॉलर (उस समय की कीमत के आधार पर) होता है.

यह मूल्य इस अवधि में पेड़ों से प्राप्त ऑक्सीजन, फल या बायोमास और लकड़ी वगैरह की कीमत के आधार पर है. पेड़ के वज़न में एक ग्राम की वृद्धि हो, तो उस प्रक्रिया में पेड़ 2.66 ग्राम ऑक्सीजन बनाता है.

ऑस्ट्रेलिया की नैन्सी बेकहम अपने शोध पत्र ‘पेड़ों का वास्तविक मूल्य’ (www.uow.edu.au) में कहती हैं:

“पेड़-पौधे साल-दर-साल अपना दैनिक काम करते रहते हैं. ये मिट्टी को रोके रखते हैं, पोषक तत्वों का नवीनीकरण करते हैं, हवा को ठंडा करते हैं, हवा के वेग की उग्रता में बदलाव करते हैं, बारिश कराते हैं, विषैले पदार्थों को अवशोषित करते हैं, र्इंधन की लागत कम करते हैं, सीवेज को बेअसर करते हैं.

यही नहीं संपत्ति की कीमत बढ़ाते हैं, पर्यटन बढ़ाते हैं, मनोरंजन को बढ़ावा देते हैं, तनाव कम करते हैं, स्वास्थ्य बेहतर करते हैं, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं, औषधि और अन्य जीवों के लिए आवास देते हैं.”

पेड़ों को लेकर क्या कहते हैं दुनिया के वैज्ञानिक

इसी कड़ी में न्यूयॉर्क के पर्यावरण संरक्षण विभाग ने कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए हैं. इन्हें आप इस लिंक पर देख सकते हैं: http://www.dec.ny.gov ये बताते हैं:

स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ लोग: 100 पेड़ प्रति वर्ष 53 टन कार्बन डाईऑक्साइड और 200 कि.ग्रा. अन्य वायु प्रदूषकों को हटाते हैं.

स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ समुदाय: पेड़ों से भरा परिवेश घरेलू हिंसा कम करता है, ये ज़्यादा सुरक्षित और मिलनसार समुदाय होते हैं.

स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ वातावरण: 100 बड़े पेड़ प्रति वर्ष 5,30,000 लीटर वर्षा जल थामते हैं.

स्वस्थ पेड़ यानी घर में बचत: सुनियोजित तरीके से लगाए गए पेड़ एयर कंडीशनिंग लागत में 56 प्रतिशत तक बचत करते हैं.

सर्दियों की ठंडी हवाओं को रोकते हैं जिससे कमरे में गर्माहट रखने के खर्च में 3 प्रतिशत तक बचत हो सकती है.

स्वस्थ पेड़ यानी बेहतर व्यवसाय: पेड़ों से ढंके व्यापारिक क्षेत्रों में, दुकानों में ज़्यादा खरीदार आते हैं और 12 प्रतिशत अधिक खरीदारी करते हैं. स्वस्थ पेड़ यानी संपत्ति का उच्चतर मूल्य.

मंत्रीजन और एनबीसीसी अधिकारी समझदार लोग हैं. निश्चित रूप से वे ये सारे तथ्य जानते होंगे. फिर भी उनके लिए एक परिपक्व पेड़ ‘शहर की जगह को खाता’है. 17,000 पेड़ों का सफाया करना यानी साफ हवा को तरसते किसी शहर में मकान, कॉलोनी और शॉपिंग मॉल बनाने का व्यापार.

(दिल्ली ग्रीन्स नामक एक एनजीओ ने 2013 में बताया था कि एक स्वस्थ पेड़ की सालाना कीमत मात्र उससे प्राप्त ऑक्सीजन की कीमत के लिहाज़ से 24 लाख रुपए होती है).

इधर अधिकारियों के मुताबिक काटे गए पेड़ों द्वारा घेरी गई जगह की तुलना में नए रोपे जाने वाले पौधे सौंवा हिस्सा या उससे भी कम जगह घेरेंगे. लेकिन पौधे लगाएंगे कहां – जहां पेड़ थे? निर्माण कार्य शुरू होने पर क्या ये पौधे जीवित रह पाएंगे?

अधिकारियों का रवैया है कि हम तो ट्रांसफर या रिटायर होकर यहां रहेंगे नहीं, तो इन सवालों का जवाब हमें तो नहीं देना होगा. किंतु बात को समझने के लिए यह देखा जा सकता है कि पहले गुड़गांव क्या था और आज क्या है.

पेड़ों की कीमत पहचानें

वृक्षों के प्रति क्रूर व्यवहार के विपरीत कई अनुकरणीय उदाहरण हैं. सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा प्रवर्तित चिपको आंदोलन, कर्नाटक की सलामुरादा थिम्मक्का द्वारा लगाए गए 398 बरगद के पेड़ जिन्हें वे अपने बच्चे मानती हैं और मजीद खान और जीव विज्ञानियों व बागवानों का समूह, जो तेलंगाना के महबूबनगर में 700 साल पुराने पिल्लालमर्री नामक बरगद के पेड़ की बखूबी देखभाल कर रहे हैं.

4 एकड़ में फैले बरगद के इस पेड़ को दीमक खाने लगी थी. इस समूह ने हर शाखा के फ्लोएम में कीटनाशक का इंजेक्शन देकर, देखभाल करके इसे फिर से हरा-भरा कर दिया है. द हिंदू अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक क्या इस पेड़ को काटकर 4 एकड़ ज़मीन का उपयोग रियल एस्टेट में कर लेना चाहिए था?

पेड़ों का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व

पेड़ भावनात्मक, आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करते हैं. भारतीय इतिहास इसके उदाहरणों से भरा पड़ा है भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक और तमिल राजा पारि वल्लल जिन्होंने अपने रथ को एक पौधे के पास छोड़ दिया था ताकि वह इससे सहारा पाकर फैल सके.

क्या दिल्ली के 17,000 पेड़ बचाने और उपनगरों में कहीं और कॉलोनियां बनाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए? और यदि वहीं बनाना है तो ऐसे तरीके निकाले जाएं जिसमें पेड़ों की बलि ना चढ़े. और यदि पेड़ काटने भी पड़े तो बहुत ही कम संख्या में. असंभव-सी लगने वाली इस योजना के बारे में सोचना वास्तुकारों के लिए चुनौती है.

दरअसल कई स्थानों पर गगनचुंबी इमारतें बनाई गई हैं और पेड़ों को बचाया गया है. कई जगह तो पेड़ों को इमारतों का हिस्सा ही बना दिया गया है. ऐसे कुछ उदाहरण इटली, तुर्की और ब्राज़ील की इमारतों में देखे जा सकते हैं.

भारत में भारतीय और विदेशी दोनों तरह के वास्तुकार हैं जिन्होने पर्यावरण से सामंजस्य बैठाते हुए घरों और परिसरों का निर्माण किया है. भारत में लगभग 80 संस्थान हैं जो वास्तुकला की शिक्षा प्रदान करते हैं.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स में लगभग 20,000 सदस्य हैं. क्यों ना उन लोगों के सामने इस तरह के डिज़ाइन की चुनौती रखी जाए और सर्वश्रेष्ठ योजना को पुरस्कृत किया जाए और उसे घर, कॉलोनी बनाने के लिए अपनाया जाए.

(स्रोत फीचर्स)

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