गुजरात में पहले चरण का चुनाव 9 दिसंबर को, जबकि दूसरे चरण का 14 दिसंबर को. बीजेपी के 24 ऐसे प्रभावशाली बागी नेता गुजरात विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे हैं, जिनके बारे में पार्टी के अंदर और बाहर आम धारणा है कि अगर उन्हें पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़वाया जाता तो ज्यादा बेहतर उम्मीदवार साबित हो सकते थे. इन 24 कैंडिडेट में से कितने जीत पाएंगे तत्काल यह तो बताना बेहद कठिन है, लेकिन इतना तो तय है कि ये उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ रहे हैं.
यह कहते हैं सूत्र और ये है अतीत
इस संदर्भ में आरएसएस से जुड़ रहे भाजपा के एक पुराने नेता ने तो यहां तक बताया कि भाजपा के बागी नेताओं को लोकल लेवल पर आरएसएस का समर्थन प्राप्त है. याद रहे 2002 के गुजरात चुनाव के बाद से ही नरेन्द्र मोदी और आरएसएस के बीच अंतरविरोध प्रारंभ हो गया था, जो 2007 में इतना बढ़ गया कि संघ के लगभग सभी अनुषांगिक वैचारिक संगठनों ने चुनाव में बीजेपी के खिलाफ काम किया, जिसमें वीएचपी और भारतीय किसान संघ का विरोध बेहद मुखर था. कमोबेश यही स्थिति 2012 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिली.
इस बार गुजरात में नरेन्द्र मोदी प्रत्यक्ष रूप से चुनाव अभियान में शामिल तो हैं, लेकिन प्रदेश का नेतृत्व दूसरे नेताओं के हाथ में है. ऐसे टिकट बंटवारे में स्वाभाविक रूप से नरेन्द्र मोदी की चली होगी, लेकिन आम धारणा यह है कि अबकी गुजरात भाजपा की कमान सीधे-सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के हाथ में है.
रणनीति पर नीति और मंथन
भाजपा के मीडिया सेंटर में काम करने वाले एक महत्वपूर्ण नेता की मानें तो इस बार टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक की रणनीति अमित शाह ने खुद बनाई है. कि कहतेे हैं कि सौरभ पटेल की उम्मीदवारी का स्थान इसलिए बदल दिया गया क्योंकि एक बड़े औद्योगिक समूह से जुड़े परिमल नथवाणी ने सौरभ पटेल का विरोध किया था. नथवाणी, शाह खेमे के बताए जाते हैं और उनकी बात मान ली गयी, लगे हाथ सौरभ पटेल की सीट बदल दी गई. हालांकि सीट बदलने के पीछे की रणनीति उनको हराने की थी, पर इसका फायदा उनको मिलने की पूरी संभावना बताई जाती है.
नहीं दिख रहा बीजेपी का प्रभाव
इस बार गुजराती नेता नरेन्द्र मोदी की आभासीय अनुपस्थिति में लड़ रहे हैं. यही करण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेव संघ का इस बार ज्यादा विरोध नहीं दिखता है, लेकिन पुराने घाव अभी भरे नहीं हैं. सूत्र बताते हैं कि वीएचपी, आरएसएस और भारतीय किसान संघ को इस बार मना लिया गया है और उनके कार्यकर्ता चुनाव अभियान में भाजपा का सहयोग कर रहे हैं लेकिन सहयोग में संदेह है.
जमीनी गणित और चुनावी चेहरे
इस चुनाव में भाजपा के पूर्व लोकसभा सदस्य और पूर्व मंत्री निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. भावनगर ग्रामीण से अपक्ष चुनाव लड़ने वाले दिलावड़ सिंह गोहिला भाजपा के कार्यकर्ता मात्र हैं, लेकिन पालिताना से नानू डामरा भावनगर जिले उपाध्यक्ष हैं. यही नहीं खेड़ कपड़वन से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले विमल शाह गुजरात सरकार में मंत्री रह चुके हैं और बेहद महत्वपूर्ण कार्यकर्ता माने जाते हैं. इनके बारे में कहा जा रहा है कि इनको स्थानीय स्तर पर संघ के सभी संगठनों का समर्थन प्राप्त है और इन्हें स्थानीय भाजपा के नेताओं का भी आंतरिक सहयोग मिल रहा है.
नवसारी के चिखली से भाजपा के पूर्व सांसद कानजी भाई पटेल, पार्टी अनुशासन के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं. लूनावाला विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले भूपेन्द्र सिंह सोलंकी भी भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर सांसद रह चुके हैं. धर्मेन्द्र सिंह वाघेला भाजपा के एक बड़े नेता के संबंधी हैं और बड़ोदरा भाजपा के बड़े नेता हैं उन्होंने भी बागोड़िया से चुनावी जंग के लिए ताल ठोका है. वैसे गुजरात प्रदेश भाजपा ने इन नेताओं को पार्टी अनुशासन तोड़ने का आरोप लगा पार्टी से फिलहाल निकाल दी है.
कितने बागी जीतेंगे
भाजपा और संघ के सूत्रों ने बताया कि बागी उम्मीदवारों में से 10 ऐसे उम्मीदवार हैं, जो इस बार चुनाव जीत सकते हैं. संघ के एक नेता ने दावा किया कि संघ इन नेताओं में से ज्यादातर उम्मीदवारों को अपना समर्थन दे रही है. हालांकि इन नेताओं के खिलाफ कई जगह भाजपा के प्रभावशाली नेता भी खड़े हैं और मुकाबला भी तगड़ा है. इन नेताओं में से कुछ की रिपोर्ट अच्छी है. व्यक्तिगत आकलन कहता है कि कम से कम 5 बागी तो जीत ही जाएंगे.
ऐसे में यह साफ हो जाता है इस बार भाजपा के जो बागी उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, उनमें से 10 उम्मीदवारों को जीतने की चर्चा है. यदि ऐसा हो गया तो ये लोग इस बार सरकार बनाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. तब संभावना यह बनती है कि सरकार चलाने की चाभी राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ के हाथों में होगी क्योंकि इस बार गुजरात में कश्मकश दिख रही है. ऐसे में भाजपा को सरकार बनाने के लिए कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों की जरूरत पड़ सकती है. उस परिस्थिति में संघ पृष्टभूमि वाले ये जीते हुए निर्दलीय उनके काम आ सकते हैं.
(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)