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Image source: Film poster

बॉलीवुड को 50 के दशक में कश्मीर की कली, जंगली, तीसरी मंजिल, तुमसा नहीं देखा, जानवर और न जाने कितनी ऐसी ही सुपरहिट फ़िल्में देकर शमशेर राज कपूर यानि शम्मी कपूर ने दर्शकों के दिलों पर राज किया. दर्शकों को शम्मी कपूर के डांसिग स्टेप भी खूब भाते थे. 

पत्नी की मौत के बाद टूट गए थे शम्मी 

21 अक्टूबर साल 1931 को मुंबई में जन्मे शम्मी कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर जाने माने अभिनेता थे. शम्मी की पहली शादी अभिनेत्री गीता बाली से हुई. चेचक के कारण 1965 में गीता की मौत हो गई थी. गीता की मौत ने शम्मी कपूर को तोड़ कर रख दिया, इसी कारण उनके फ़िल्मी करियर में भी कई उतार आए.

संघर्ष भरा रहा शुरूआती फ़िल्मी दौर 

शम्मी की पहली बॉलीवुड फिल्म “जीवन ज्योति” साल 1953 में आई. शुरूआती कई फ़िल्में फ्लॉप होने के चलते उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा. शम्मी कपूर ने करीब 50 से अधिक फ़िल्मों में लीड रोल किया. वे 20 से अधिक फिल्मों में सहायक भूमिकाओं में भी नज़र आए. 

डांस ने दिलाई पहचान 

अपने दौर में शम्मी कपूर का कई बड़े कलाकारों से मुकाबला था लेकिन वे सभी को अपने डांस से मात देते थे. जब उनके साथी कलाकार फिल्मों में चलते-फिरते ही गाना गाते थे, तब शम्मी कपूर अपने लटकों-झटकों वाले विशेष डांस स्टाइल से दर्शकों के दिलों पर राज करते थे. 

डांस के प्रति उस समय उनकी दीवानगी का आलम यह था कि डांस करते हुए उनको कई बार फ्रेक्चर भी हो गए, लेकिन उन्होंने डांस करना नहीं छोड़ा. अपने करियर में उन्होंने कई म्यूजिकल हिट फ़िल्में भी दी.

मोहम्मद रफी का योगदान (Mohammed Rafi’s cooperation) 

शम्मी कपूर की अदाकारी और डांस से मेल खाती स्टाइल में ही मोहम्मद रफ़ी ने उनके लिए गाने भी गए. इसीलिए 50 के दशक में आई फिल्म जंगली का एक गाना “याहू” आज भी लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा हुआ है.

समय के साथ चले शम्मी   

साल 1968 में आई फ़िल्म “ब्रह्मचारी” के लिए उन्हें बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का “फ़िल्मफेयर” अवार्ड भी दिया गया. शम्मी कपूर ने अपनी बढ़ती उम्र के साथ नए कलाकारों को मौका दिया और कैरेक्टर रोल शुरू कर दिए. शम्मी ने कई फिल्मों में चरित्र अभिनेता की भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय की छाप छोड़ी.

ज़िंदादिल अभिनेता  

बढ़ती उम्र के साथ शम्मी कपूर की तबियत भी ख़राब रहने लगी. तबियत ख़राब रहने से उन्होंने अभिनय से दूरी बना ली. ख़राब तबियत उन्हें आए दिन अस्पताल में रहना पड़ता था. उनकी ख़राब सेहत का असर कभी भी उनकी जिंदादिली पर नहीं पड़ सका. 14 अगस्त 2011 को उन्होंने अंतिम सांस.

By दीपेन्द्र तिवारी

युवा पत्रकार. लोकमत समाचार, Network18 सहित विभिन्न अखबारोंं में काम. Indiareviews.com में Chief Sub Editor.

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