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बेमौसम बारिश रुला रही है किसानों को खून के आंसू, कहां मिलेगी इस दर्द की दवा?

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वोट नहीं विकास बैंक है किसान, औद्योगिकरण से नहीं कृषि की तरक्की से बदलेगा देश
Indian Farmer. Image Source: Pixabay.com
Indian Farmer. Image Source: Pixabay.com

अन्नदाताओं की छह महीने की कमरतोड़ मेहनत पर एक बार फिर बेमौसम बारिश ने पानी फेर दिया है. खेतों में लहलहाती धान की फसल को नष्ट कर दिया है. बेमौसमी बारिश ने सबसे ज्यादा नुकसान तराई इलाके की फसलों को पहुंचाया है. वहां सैकड़ों एकड़ धान की फसल को पूरी तरह से चैपट कर दिया है. पिछले साल भी इस क्षेत्र में बारिश ने भारी नुकसान किया था. यह बारिश उस वक्त हुई है जब धान की फसल पकने को थी. करीब एक-दो सप्ताह के भीतर कटाई होनी थी, लेकिन पिछले दो दिनों से हुई लगातार बारिश ने धान की खड़ी फसल को बर्बाद कर दिया है. पूरा हिंदुस्तान इस बात से वाकिफ है कि पंजाब के बाद तराई दूसरा ऐसा इलाका है जहां धान की फसल सबसे ज्यादा और अच्छी होती है. यही कारण है इस इलाके को धान का कटोरा कहा जाता है.

तराई क्षेत्रफल से सटे उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, बहराईच, गोंडा, लखीमपुर आदि जिलों के अलावा नेपाल व उतराखंड के कई जिले इस क्षेत्रफल में आते हैं, लेकिन बेमौसम बारिश ने एक बार फिर वहां के किसानों के सपनों को तबाह कर दिया है. उनकी मेहनत पर बेमौसम बारिश ने पानी फेर दिया है. इस आपदा से किसान चिंतित और दुखी हैं.

दरअसल, गंगा की तराई वाले इलाकों में तेज हवा के साथ-साथ दो दिनों से तेज बुंदाबादी और ओले पड़ने से धान की फसल जमींदोज हो गई है. निश्चित रूप से इस बेमौसमी बारिश के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी. खासतौर पर धान, आलू, अदरक, चना समेत कई सब्जियों और दालों के दाम बढ़ना तय माना जा रहा है. ऐसे में कृषि, खाद्य और आपूर्ति के साथ वित्त मंत्रालय भी इस चुनौती से निपटने की रणनीति मंत लग गया है. मगर धान-आलू की फसलें इतनी भारी तादाद में बर्बाद हो गई हैं कि इसका असर मार्केट और आम आदमी पर पड़ना तय है. खाद्य मंत्रालय को भी इस समस्या से निपटना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. उत्तर प्रदेश सरकार ने अकालिक बारिश से प्रभावित हुई जिलों का सर्वे कराने का निर्णय लिया है.

अकालिक बारिश और तेज हवा के कारण धान की जो फसल खेत में नीचे गिर गई है, उस फसल में उत्पादन तो कम होगा ही साथ ही उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होगी. नीचे गिरी फसल में धान का दाना पानी में भीगने के कारण काला पड़ जाएगा. इसके अलावा यदि खेत में पानी अधिक समय तक भरा रह गया तो यह धान का दाना सड़कर पूरी तरह खराब हो जाएगा. नीचे गिरे धान से निकले चावल को खाने में भी स्वाद नहीं आता. वह ताकत नहीं बचती तो खड़े धान में होती है. इसका चावल पूरी तरह से काला हो जाता है. कुछ चावल तो खाने के लायक भी नहीं होता. बारिश से हुए नुकसान को कृषि वैज्ञानिक उत्पादन में 25 से 30 प्रतिशत की गिरावट होने की संभावना जता रहे है. किसान नुकसान की भरपाई के लिए सरकार से मुआवजे की मांग करने लगे हैं, क्योंकि उनकी छह महीने की हाड़तोड मेहनत पर पानी फिर गया है. अगर सरकार उनके नुकसान की भरपाई नहीं करती है, तो किसान इससे आपदा के कारण कर्ज में डूब जाएगा. यहीं से किसान खुद के लिए आत्महत्या का रास्ता खोजने लगता है. ऐसा न हो इसके लिए सरकार को अहम और उचित कदम उठाने चाहिए.

खेती प्रधान तराई क्षेत्र की पूरनपुर तहसील में उन्नतशील किसान हैं, जो मुख्यत: धान व गन्ने का उत्पादन करते हैं, लेकिन पिछले एकाध वर्षों से इस क्षेत्र में आपदा का प्रकोप छा गया है. दो-तीन सालों से लगातार बेमौसमी बारिश हो रही है. खैर, इस बेमौसम बारिश ने तराई के अलावा दूसरे राज्यों के किसानों को भी दुखी किया है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों में भी बारिश ने खड़ी फसलों पर कहर बरपाया है. बारिश ने किसानों का दर्द दोगुना कर दिया है. पिछले साल भी इसी वक्त बेमौसम बारिश हुई थी. उस वक्त किसानों की चौपट हो चुकी फसल का अभी तक सरकारों ने किसानों को मुवावजा नहीं दे सकी है कि एक बार फिर बारिश ने कहर बरपा दिया है.

इधर, शुक्रवार, शनिवार को लगातार हुई बारिश ने किसानों के साथ-साथ सरकार के माथे पर भी चिंता की लकीर खींच दी है. मौसम विभाग के अनुसार, यूपी का पारा आठ डिग्री तक लुढ़क गया है. इस बेमौसम बारिश के कहर ने धान व आलू की फसलों पर जमकर कहर बरपाया है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में नुकसान के शुरुआती आंकड़े भी आने लगे हैं. उत्तर प्रदेश में तराई क्षेत्र में आलू की 70 फीसदी और धान की करीब 50 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है. मध्य प्रदेश में 15 जिलों की 1400 गांवों की पूरी फसल तबाह हो गई है. राज्य सरकार ने नुकसान के आंकलन के लिए सर्वे कराने का ऐलान किया है. उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र के अलावा राजस्थान के 26 जिलों में फसल को भारी नुकसान पहुंचा है.

सरकार का शुरूआती अनुमान है कि इस बेमौसम बर्षा से करीब 8000 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई है. उत्तर प्रदेश में करीब 27 लाख एकड़, महाराष्ट्र में 7.5 लाख एकड़, राजस्थान में 14.5 लाख एकड़, पश्चिम बंगाल में 50,000 एकड़ और पंजाब में 6000 एकड़ में फसल बर्बाद हो गई है. आने वाले समय में बारिश से तबाह हुई फसलों का असर देश के कृषि मार्केट में देखने को मिलेगा. बारिश को लेकर उत्तराखंड ने अलर्ट भी जारी कर दिया है.

कृषि मंत्री नुकसान के आंकड़े राज्यों से जुटा रहे हैं. नुकसान को लेकर सरकार रणनीति बनाएगी ताकि महंगाई नियंत्रण में रहे. मार्केट एक्सपर्ट भी मानते हैं कि इस बेमौसम बारिश से खुदरा महंगाई 6 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. यानी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 20 से 30 प्रतिशत की महंगाई देखने को मिल सकती है. समय का तकाजा है कि अकालिक आपदा से बर्बाद होने वाली फसलों पर सरकार मुआवजा देने का प्रभावी कानून बनाए, ताकि किसानों के नुकसान की भरपाई की जाए. किसानों की जब फसलें आपदा के प्रकोप में समा जाती हैं तभी किसान कर्ज में फांस में फंस जाता है. सरकारों को किसान की समस्याओं पर गहन विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है.

By Ramesh Thakur

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