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Dhanteras : धनतेरस की पूजा विधि, कथा और यमराज पूजा का महत्व

दिवाली (diwali festival) का त्योहार पाँच दिन का त्योहार होता है. इसकी शुरुवात होती है दिवाली के दो दिन पहले धनतेरस (dhanteras) से. धनतेरस के दिन से ही कई लोग अपने घर में दीयों को जलाना शुरू करते हैं. धनतेरस के दिन से ही दिवाली (dhanteras importance) शुरू हो जाती है और ये 5 दिन में खत्म होती है. हिन्दू धर्म में धनतेरस का काफी महत्व है. माना जाता है की इस दिन पूजा करने से माँ लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यम प्रसन्न होते हैं.

धनतेरस कब है? (dhanteras date)

धनतेरस हिन्दू पांचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास के तेरहवें दिन आती है. इसे आमतौर पर दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है. इस दिन माँ लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है. धनतेरस के दिन से ही दीयों को जलाने की शुरुवात की जाती है.

धनतेरस की पूजा (dhanteras pooja vidhi)

धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा करनी चाहिए. इस दिन आपको तेरह दीपक जलाने चाहिए और तिजोरी में कुबेर देवता की पूजा करनी चाहिए. कुबेर देवता का ध्यान करते हुए उन्हें फूल चढ़ाएँ, धूप, द्वीप, नैवेद्य से उनका पूजन करें और उन्हें प्रसन्न करें. इस दिन कुबेर देवता की पूजा काफी महत्वपूर्ण होती है.

धनतेरस पर यमराज की पूजा (dhanteras yamraj pooja)

धनतेरस के दिन कुबेर देवता की पूजा के अलावा मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है. धनतेरस पर इनकी पूजा करने से ये अकाल मृत्यु से हमे बचते हैं. यम देवता की पूजा करने के लिए आपको चार मुंह वाला एक दीपक शाम को जलाना होता है. आप चाहें तो इस दीपक को आटे से बना सकते हैं. इस दीपक को आपको मुख्य द्वार के दाई तरफ रखना चाहिए.

दीपक को जलाने से पहले उस दीपक की रोली, फूल, चावल, गुड, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए. इस दिन जले हुए दीपक में से दीपक न निकालें अलग से दीपक बनाएँ और उसकी पूजा यमराज का ध्यान करते हुए करें. साथ ही दीप जलाते समय उसने प्रार्थना करें की वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और घर में किसी की अकाल मृत्यु न हो.

धनतेरस की कथा (dhanteras katha)

धनतेरस की कथा के बारे में कहा जाता है की किसी राज्य में एक राजा था. उसे कई वर्षों के इंतज़ार के बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई. पुत्र के पैदा होने पर ज्योतिषी ने कहा की जिस दिन भी इसका विवाह होगा उसके चार दिन के बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी. ज्योतिषी की ऐसी बात सुनकर राजा को बड़ा दुख हुआ. उसने अपने पुत्र को एक ऐसी जगह भेज दिया जहां कोई स्त्री नहीं रहती हो. एक दिन वहाँ से एक राजकुमारी निकली. दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और दोनों ने विवाह कर लिया.

ज्योतिषी के कहे अनुसार जब शादी को चार दिन हो गए तो यमराज उसके प्राण लेने के लिए उसके घर आए. तब राजकुमारी विलाप करने लगी. तब यमदूत ने यमराज से कहा की इसके प्राण बचाने के लिए कोई उपाय बताएं. तब यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक माह की तेरस की रात को मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलाएगा उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा. तभी से ही कार्तिक मास की तेरस के दिन यमराज की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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