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आकाश में 240 डिग्री से 270 डिग्री तक के भाग को धनु लग्न (Dhanu lagna) कहा जाता है. जिस जातक के जन्म समय में ये भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है उसकी राशि धनु (Dhanu rashi ki jaankari) होती है. धनु राशि का तत्व अग्नि है और इनका स्वामी बृहस्पति यानि गुरू है. धनु राशि के लोग उदार, आदर्शवादी, मजाकिया प्रवृति के होते हैं.

धनु लग्न में चंद्र (Dhanu lagna me chandra)

धनु लग्न में चंद्रमा अष्टम भाव का अधिपति होता है. अष्टम भाव का अधिपति होने के कारण चंद्रमा आपके जीवन में व्याधि, जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचारधारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, जेलयात्रा, अस्पताल, भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

धनु लग्न में सूर्य (Dhanu lagna me surya)

धनु लग्न में सूर्य नवम भाव का अधिपति होता है. नवम भाव का अधिपति होने के कारण सूर्य धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्ममा, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, पिता का सुख, तीर्थ यात्रा, दान, इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. इन सभी विषयों में यदि आपको दिक्कत आ रही है तो आपको अपनी कुंडली में सूर्य के स्थान का अध्ययन करवाना चाहिए.

धनु लग्न में मंगल (Dhanu lagna me mangal)

धनु लग्न में मंगल पांचवे और बारहवे भाव का अधिपति होता है. पांचवे भाव का अधिपति होने के कारण मंगल बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की क्षमता, शक्ति नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध कुशलता, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायास धन मिलने की संभावना, व्रत, पुत्र संतान, स्वाभिमान, अंहकार आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. बारहवे भाव का अधिपति होने के कारण मंगल निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लंपटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

धनु लग्न में बुध (Dhanu lagna me budh)

धनु लग्न में बुध सातवे भाव का स्वामी होता है. सातवे भाव का स्वामी होने के कारण बुध आपके जीवन में स्त्री, कामवासना, चोरी, झगड़ा, अशांति, उपद्रव, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. उपरोक्त विषयों में शुभ फल पाने के लिए आपकी कुंडली में बुध का शक्तिशाली स्थान पर होना जरूरी है.

धनु लग्न में गुरू (Dhanu lagna me guru)

धनु लग्न में गुरू पहले भाव का अधिपति होता है. पहले भाव का अधिपति होने के कारण गुरू आपके रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख-दुख, विवेक, मस्तिष्क, व्यक्ति के स्वभाव, आकृति और उसके संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है. इन सभी विषयों में आपका गुरू का शक्तिशाली होना अच्छा होता है तभी आपको उपरोक्त विषय जो जीवन के लिए बेहद जरूरी है में अच्छे फल मिलते हैं.

धनु लग्न में शुक्र (Dhanu lagna me shukra)

धनु लग्न में शुक्र छठे और ग्यारहवे भाव का अधिपित होता है. छठे भाव का अधिपति होने के कारण शुक्र बीमारी, कर्ज, दुश्मन, चिंता, शंका, पीड़ा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी, साहूकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, अच्छा या बुरा व्यसन जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. ग्यारहवे भाव का अधिपति होने के कारण शुक्र चंद्र लोभ, लाभ गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतति, रिश्तेदार, रिश्वतखोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

धनु लग्न में शनि (Dhanu lagna me shani)

धनु लग्न में शनि दूसरे और तीसरेे भाव का अधिपित होता है. दूसरे भाव का अधिपति होने के कारण शनि कुल, आंख, नाक, कान, गला, स्वर, आभूषण, सौंदर्य, गायन कुटुंब का प्रतिनिधित्व करता है. तीसरे भाव का अधिपति होने के कारण शनि नौकर, चाकर, सहोदर, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्यूटर, मोबइल, अकाउंट्स, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, दासता, योगाभ्यास जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

धनु लग्न में राहु (Dhanu lagna me raahu)

धनु लग्न में दसवेे भाव का अधिपित होता है. दसवे भाव का अधिपति होने के कारण राहु आपके जीवन में राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपत्ति जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. उपरोक्त विषय में राहु के कमजोर स्थान पर होने के कारण आपको अशुभ फल भी मिल सकते हैं.

धनु लग्न में केतु (Dhanu lagna me ketu)

धनु लग्न में चैथे भाव का अधिपित होता है. चैथे भाव का अधिपति होने के कारण केतु भूमि भवन, वाहन, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल-कपट, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थों का सेवन, धन संचय, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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