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गुजरात चुनाव नतीजे 2017 : कांग्रेस रणनीतिकारों की सबसे बड़ी भूल, हार्दिक, जिग्नेश ने ऐसे बिगाड़ा राहुल का खेल..!

Gujarat election result 2017 rahul gandhi and congress strategist made big mistake in Gujarat election Gujarat lost congress election 2017गुजरात चुनाव नतीजे 2017 : कांग्रेस रणनीतिकारों की सबसे बड़ी भूल, हार्दिक, जिग्नेश ने ऐसे बिगाड़ा राहुल का खेल
राहुल गांधी ने गुजरात चुनावों में मेेेेहनत तो अच्छी की, लेकिन उनके रणनीतिकारों ने कुछ फैसले गलत ले लिए. (फोटो : Inc.in).
राहुल गांधी ने गुजरात चुनावों में मेेेेहनत तो अच्छी की, लेकिन उनके रणनीतिकारों ने कुछ फैसले गलत ले लिए. (फोटो : Inc.in).

गुजरात विधानसभा की 182 सीटों और हिमाचल की 68 विधानसभा सीटों के नतीजे आ चुके हैं. गुजरात और हिमाचल चुनावों में एक बार फिर पीएम नरेंद्र मोदी का मैजिक चला है. वहीं गुजरात में भी एक बार फिर कमल खिला है. लेकिन इस बार कांग्रेस बीजेपी को उसी के गढ़ में चुनौती देती नजर आई. लेकिन कांग्रेस 22 साल पुरानी सत्ता को  उखाड़ फेंकने में कामयाब नहीं हो पाई. हालांकि इन चुनावों ने राहुल गांधी को एक नया कद और रंग दिया है. राहुल इन चुनावों के चलते कई वजहों चर्चा में रहे. विशेष रूप से इस उनका कांग्रेस अध्यक्ष बन जाना भी उन्हें नई ताकत दे गया है.

लेकिन राज्य में कांग्रेस रणनीतिकारों के कुछ गलत फैसलों के चलते पार्टी कमजोर तो हुई ही बल्कि इन फैसलों ने अपने राष्ट्रीय नेता को दो-तीन जातिवादी नेताओं के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया. जिग्नेश मेवानी, हार्दिक पटेल और अप्लेश ठाकोर जैसे स्थानीय नेताओं के साथ बार-बार मंच साझा करने से राहुल का प्रभाव  लगातार कम होता रहा.

दरअसल, इन तीनों नेताओं को एक मंच पर लाने को लेकर कांग्रेस रणनीतिकार अपनी उपलब्धि मानते रहे. कांग्रेस के लोग इस सफलता को बड़ा करके दिखाने के चक्कर में इन स्थानीय नेताओं का इतना गुणगान कर चुके हैं कि आज उनके खुद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल ही इनके सामने बौने नजर आने लगे हैं. आश्चर्य की बात है कि हार्दिक पटेल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल को समय देते रहे, राजनीतिक समझौते की रूपरेखा तय करने का अल्टीमेटम देते रहे. कांग्रेस के रणनीतिकार हार्दिक एंड पार्टी के कार्यक्रम के अनुसार राहुल का कार्यक्रम तय करते रहे. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के टिकट वितरण में राष्ट्रीय नेताओं की भी इतनी नहीं चली जितनी कि इस त्रिमूर्ति की.

हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी जैसे नेताओं के साथ मंच साझा करना राहुल गांधी का प्रभाव लगातार कम करता रहा. (फोटो : social media).
हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी जैसे नेताओं के साथ मंच साझा करना राहुल गांधी का प्रभाव लगातार कम करता रहा. (फोटो : social media).

इस तरह तो कमजोर हुई कांग्रेस
इन जाति पंचायत के नेताओं को लेकर कांग्रेस के रणनीतिकार इतने अतिउत्साह में रहे कि कांग्रेस के प्रादेशिक नेता तो बिलकुल पर्दे से गायब ही रहे. पर्दे के पीछे रहने वाले अहमद पटेल को छोड़कर गुजरात कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठतम नेता शक्ति सिंह गोहिल, माधव सिंह सोलंकी, अर्जुन मोडवानी, सिद्धार्थ पटेल जैसे महत्वपूर्ण नेताा मीडिया से भी गायब रहे.

बहुत ज्यादा निर्भरता बनीं मुसीबत 
जातिवादी नेताओं पर कांग्रेस इतना आसक्त दिखाई दी कि उसने पुराने साथी एनसीपी तक को घास नहीं डाली. पार्टी के कितने ही विधायक कांग्रेस को छोड़ चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष रहे शंकर सिंह वघेला भी अलग रास्ता चुन चुके हैं. जब प्रदेश स्तर के नेताओं की इतनी बेकद्री हो रही है, तो जिला व मंडल स्तर के तो कहने ही क्या. सूत्र बताते हैं कि ये जातिवादी नेता भी सीधे राहुल गांधी से बात करते हैं और राहुल अपने नेताओं से ज्यादा इस तिकड़ी पर न केवल विश्वास करते दिख रहे हैं बल्कि कहीं न कहीं निर्भर भी नजर आने लगे हैं.

हाफिज के बयान पर किरकिरी
इधर आतंकी हाफिज सईद की रिहाई पर राहुल का बिना सोचे-समझे किया गया  ‘हगप्लोमेसी’ फेल होने का ट्विट  भी उन्हें ही भारी पड़ा. ‘हगप्लोमेसी’ का मतलब था कि मोदी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से गले मिलते आए हैं. अंग्रेजी में कहें तो हग करते रह गए और पाकिस्तान ने आतंकी को रिहा कर दिया. कांग्रेस के रणनीतिकारों को ये भी समझ नहीं आया कि पाकिस्तानी कोर्ट की पुश्तैनी कमजोरी मोदी सरकार की असफलता कैसे हो गई?

गुजरात में मोदी के विरोध के नाम पर कई ऐसे मुद्दे उछाले गए जिनका उल्टा असर कांग्रेस पर हुआ. (फोटो : bjp.org).
गुजरात में मोदी के विरोध के नाम पर कई ऐसे मुद्दे उछाले गए जिनका उल्टा असर कांग्रेस पर हुआ. (फोटो : bjp.org).

सईद को यूएन द्वारा आतंकी घोषित किए जाने के बाद गिरफ्तार किया गया था. उसकी रिहाई को किसी की असफलता कहें तो यह यूएन की यानी वर्ल्ड कम्युनिटी की असफलता है न कि केवल भारत की. राहुल के नीतिकार इस बात को भूल गए कि उनके उपाध्यक्ष को गुजरात की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति करनी है. राहुल के ट्वीट पर चाहे पार्टी के कार्यकर्ताओं ने खूब वाहवाही की परंतु इसका गलत संदेश गया, अब लोगों का पूछना स्वभाविक है कि आतंकी की रिहाई पर जब देश आहत था तो राहुल ताली क्यों पीट रहे थे?

बचना होगा इस गलती को करने से
सोशल मीडिया के इंस्टंट टाइम में राजनीति और कूटनीति दूर दृष्टि के बिना संभव नहीं. राहुल गांधी अभी युवा नेता हैं और उन्हें राजनीति में दूर तक जाना है.अगर वे राजनीति-राष्ट्रनीति में अंतर न कर पाए और  किसी घटना को देखने के दृष्टिकोण में विस्तार नहीं कर पाए तो आगे का रास्ता उनके लिए मुश्किल हो जाएगा. रणनीतिकार व परामर्शदाता हर राजनेता के लिए अत्यवश्यक हैं परंतु बागडोर उस नेता को खुद ही संभालनी होती है क्योंकि जनता के प्रति जवाबदेह भी वह खुद ही होता है.

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By राकेश सेन

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