सब्जियों में रसायनों की मिलावट उन्हें इस कदर जहरीला बना रही है कि देश के हर कोने से कोई न कोई परिवार मौत के मुंह में जा रहा है. देश में हरी सब्जी के नाम पर जहर खाकर मरने वालों की संख्या न जाने कितनी होगी. हर दूसरे दिन अस्पताल में कोई न कोई ऐसा मामला जरूर आता है जिसमें रोगी की हालत रसायनयुक्त सब्जी खाने से बिगड़ती है. इनमें कुछ रोगी तो इलाज के बावजूद रासायनिक सब्जियों का जहर बरदाश्त नहीं कर पाते और मौत की नींद सो जाते हैं.
आम आदमी आज ताजा सब्जियों की चाह में बीमारी और मौत खरीद रहा है जबकि मुनाफाखोर व्यापारी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में सब्जियों में इतने रसायन मिला देते हैं कि खाने वाले की जान पर बन आती है. ये मुनाफाखोर आम आदमी की थाली में हरा जहर परोस रहे हैं. एक गैर सरकारी संगठन वायस ने विभिन्न सब्जियों के सैंपल ले सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण करवाया तो सामने आया कि जिन तथाकथित दवाओं को बेचने पर प्रतिबंध लगा है वे भी सब्जियों में भारी मात्रा में मौजूद हैं.
सब्जी कारोबारी वजन बढ़ाने और अधिक पैसा कमाने के लालच में प्रतिबंधित ऑक्सीटोसीन का इंजेक्शन लगा कर सब्जी को रातोंरात बड़ा और वजनी कर देते हैं. इससे इनके वजन में बढ़ोत्तरी हो जाती है. इसके अलावा दुकानदार भी परवल, तुरई, लौकी, भिंडी आदि को ताजा बनाए रखने के लिए इन्हें रसायन युक्त पानी से धोते हैं. इससे सब्जी दिखने में अधिक ताजी और हरी-भरी दिखाई देती है. तालाब एवं डबरों में सिंघाड़ों की खेती के लिए भी खतरनाक रसायन व दवाएं पानी में डाली जाती हैं.
भिंडी, करेला, परवल, मटर आदि रंगों व रसायन के प्रयोग के बिना इतने चमकदार नहीं दिख सकते, इसलिए ज्यादातर कारोबारी कैल्शियम कार्बाइड को पुडि़यों में डाल कर फलों के ढेर के बीच में रख देते हैं. उस पर बर्फ रख दी जाती है. इससे कैल्शियम कार्बाइड की पुडि़यों पर बूंद-बूंद पानी गिरता रहता है. इससे फल तो जल्दी पक जाता है, लेकिन कैल्शियम कार्बाइड से पकाया गया यह फल सेहत को नुकसान पहुंचाता है. टमाटर में जीएथ्री रसायन तो वहीं अन्य सब्जियों को चमकदार बनाने के लिए मोम का उपयोग किया जाता है. केले एवं पपीते को रसायन में डुबो कर पकाया जाता है जो जहर बनकर सीधे शरीर में प्रवेश कर जाता है.
सिर्फ पेस्टीसाइड और रसायन ही सब्जियों को जहरीला नहीं बना रहे, बल्कि पानी भी है जो हरी सब्जियों को जहरीला बना रहा है. असल में गंदा और रसायनयुक्त सिंचाई जल आज जहर बनकर अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो चुका है. आर्सेनिक सिंचाई जल के माध्यम से सब्जियों को जहरीला बनाया जा रहा है. भूजल से सिंचित खेतों में पैदा होने वाले धान में आर्सेनिक की इतनी मात्रा पाई गई है जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बड़े शहरों की सब्जी मंडियों में अलग-अलग सब्जियों का परीक्षण किया गया. इसमें टमाटरों के 28 नमूनों का निरीक्षण किया, जिनमें से 46.43 प्रतिशत नमूनों में पैस्टीसाइड ज्यादा पाया गया. भिंडी के 25 में से 32, आलू के 17 में से 23.53, पत्ता गोभी के 39 में से 28, बैंगन के 46 में से 50 प्रतिशत नमूने प्रदूषित पाए गए. फूलगोभी सर्वाधिक प्रदूषित पाई गई जिसके 27 में 51.85 प्रतिशत नमूनों में यह जहर था. सब्जियों में पाए जाने वाले पैस्टीसाइड और मैटल्स पर अलग-अलग शोध किया गया. शोध के अनुसार सब्जियों के साथ हम कई प्रकार के पैस्टीसाइड और मेटल्स खा रहे हैं.इनमें केडमियम, सीसा, कॉपर और क्रोमियम जैसी खतरनाक धातुएं और एंडोसल्फान, एचसीएच व एल्ड्रिन जैसे घातक पैस्टीसाइड शामिल हैं. रासायनिक जहर में एंडोसल्फान जैसे खतरनाक पैस्टीसाइड का उपयोग आम है.
आम आदमी द्वारा खाए जाने वाले आलू से लेकर टमाटर, खीरा, ककड़ी जैसे कच्चे खाए जाने वाले सलाद और बैगन पर जहर का असर न मिटने वाला और ज्यादा खतरनाक पाया गया. देश में फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी बनी हुई है पर फल-सब्जियों में कीटनाशकों के अवशेष की कितनी इजाजत है, इसका पिछले तीन दशकों में सीमा का पुनर्निर्धारण नहीं किया गया है जबकि पैस्टीसाइड की मात्रा, जहरीलापन और संख्या लगातार बढ़ रही है. देश में खेती की जगह कम और जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में ज्यादा पैदावार बढ़ाने के लिए किसान सब्जियों में रसायन व कीटनाशक धड़ल्ले से डाल रहे हैं.
रसायनयुक्त सब्जियों को खाने से फेफड़ों में इंफेक्शन, अल्सर, कैंसर और एलर्जी जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं. क्रोमियम से चर्मरोग व श्वास संबंधी बीमारियों के साथ शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होने की समस्या रहती है. कॉपर से एलर्जी, चर्म रोग, आंखों के कार्निया का प्रभावित होना, उल्टी-दस्त, लिवर डैमेज, हाइपरटेंशन की शिकायत मिलती है. मात्रा बढ़ने पर व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है. हीमोग्लोबिन के साथ जुड़कर यह उसे कम कर देता है.
टॉक्सिन बनने और जैनेटिक बदलाव के कारण सब्जियां कड़वी होती हैं. उस कड़वी सब्जी से बचें जो प्राकृतिक रूप से कड़वी नहीं होती. कड़वी सब्जी से उल्टी, डायरिया और यूरिन से संबंधित समस्याएं होती हैं. नियमित रूप से रसायन वाली सब्जियां खाते रहने से लोगों में चिड़चिड़ापन आता है, उनको नींद न आने की शिकायत रहती है. कई बार फेफड़ों में भी खराबी आ जाती है.
सब्जियों को लेकर सावधानी बरतें. सब्जियों को दो से तीन बार धोने से पैस्टीसाइड्स और इंसेक्टिसाइड्स हट जाते हैं. डिटर्जेंट की कुछ बूंदे पानी में मिला कर गुनगुने पानी में धोने से सब्जियों का वैक्स और कलर हट जाता है. फल और सब्जियों को छीलकर ही खाएं. बंदगोभी के ऊपरी हिस्से के पत्ते जरूर उतार दें. मौसमी सब्जियों को ही खरीदें. चमकदार सब्जियों के इस्तेमाल से बचें. ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई सब्जियां ही इस्तेमाल करें.