काशी, बनारस या वाराणसी. इस शहर के कई नाम हुए पर असली पहचान मोक्ष धाम के रूप में है. अधिकतर लोग यहां मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं. पुराणों में भी लिखा है कि अगर एक बार काशी विश्वनाथ हो आए तो मोक्ष आसानी से मिल जाता है.
असल में काशी की पहचान सिर्फ एक मोक्ष नगरी के रूप में नहीं है. काशी सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थान है जो कब से इस दुनिया में है कोई नहीं जानता. काशी को कई बार तोड़ा गया, लूटा गया, इसके अस्तित्व पर प्रहार किया गया लेकिन आज भी काशी जीवित है और हमेशा जीवित रहेगी.
भगवान भोलेनाथ की ये नगरी तो अमर है. कहा जाता है कि यहां पर आलौकिक शक्तियों का वास है. काशी की कई कहानियां है जो इसके रहस्य के बारे में बताती हैं. काशी के कई रहस्य हैं जिन्हें आपको जानना चाहिए.
कैसे बनी काशी?
काशी कैसे बनी ये एक रहस्य है क्योंकि कोई नहीं जानता कि काशी कितने सालों पुरानी है. काशी नाम का जिक्र महाभारत, उपनिषद, बौद्ध ग्रंथ आदि में किया गया है जिसके आधार पर आप ये अनुमान लगा सकते हैं कि काशी महाभारत के काल से भी पुरानी है.

हरिवंशपुराण के अनुसार काशी को बसाने वाले भरतवंशी राजा ‘काश’ थे. विद्वानों का मत है कि काशी वैदिक काल से भी पुरानी है. काशी शिव की उपासना का प्राचीनतम केंद्र माना जाता है.
काशी के अलग-अलग नाम का रहस्य
काशी को मुख्यतः काशी, बनारस या वाराणसी के नाम से पुकारा जाता है. इसके तीनों नामों के पीछे की कहानी और मान्यता अलग-अलग है.
1) काशी नाम हरिवंशपुराण के अनुसार इस नगर को बसाने वाले राजा ‘काश’ के नाम पर पड़ा.
2) बनारस नाम भी आपने सुना होगा. बनारस, काशी को ही कहा जाता है. जब भारत पर अंग्रेजों का शासन हुआ करता था तब काशी को बनारस कहा जाता था. असल में ये बनारस रियासत हुआ करती थी जिसके कारण इसे बनारस कहा जाता है.
3) बनारस का आधुनिक नाम वाराणसी भी है. वर्तमान समय में अधिकतर लोग काशी को वाराणसी के नाम से ही जानते हैं. असल में काशी दो नदियों के बीच में बसा हुआ है. वरुणा और असि. इन दोनों नदियों का नाम मिलकर इस नगर क नाम वाराणसी कहा गया.
काशी ज्योतिर्लिंग का रहस्य
पुराणों के अनुसार पहले यह विष्णु भगवान की नगरी हुआ करती थी. वे यहां वास करते थे. एक बार जब भगवान शिव क्रोधित हुए तो उन्होने ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काट दिया, जो उनके करतल से चिपक गया.
बारह वर्षों तक उन्होने कई जगह भ्रमण किया लेकिन वो सिर करतल से अलग नहीं हुआ. तब शिव ने काशी में प्रवेश किया और वो सिर करतल से अलग हो गया और ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया.
मोक्ष देने वाली नगरी काशी शिव के मन को इतनी भा गई कि भगवान विष्णु से उन्होने काशी को अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया.
काशी में भगवान शिव का काशी विश्वनाथ मंदिर है. ये बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है. पिछले कई हजार वर्षों से ये काशी में है. भगवान शिव खुद माता पार्वती के साथ यहां रहते थे और कई वर्षों तक काशी में रहे जिसके चलते ये पूरा स्थान शिव को समर्पित हुआ.
काशी में कितने मंदिर हैं?
ईशा सद्गुरु फ़ाउंडेशन के लेख के अनुसार एक समय पर यहां 72 हजार मंदिर हुआ करते थे. ये संख्या हमारे शरीर में मौजूद नाड़ियों के बराबर है. इस शहर की रचना एक विशाल मानव शरीर की रचना की अभिव्यक्ति है.
काशी पर कई बार हमले हुए जिनमें काशी के मंदिर तोड़े गए. यहां के धन और सम्पदा को लूटा गया. कई मंदिरों के तो अस्तित्व को ही मिटा दिया गया. जिसके चलते यहां मंदिरों की संख्या कम हो गई. वर्तमान में यहां 1500 मंदिर हैं.
काशी विश्वनाथ मंदिर किसने बनवाया?
काशी विश्वनाथ एक अतिप्राचीन मंदिर है जिसमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग है, जिसे काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. ये मंदिर सालों से यहां विद्यमान है. कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को खुद शिव ने स्थापित किया था.
– 11वी शताब्दी में राजा हरिश्चंद्र द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था.
– साल 1194 ईस्वी में जब मुहम्मद गौरी ने इसे तुड़वा दिया था. ये वही मुहम्मद गौरी है जिसने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध लड़ा था.
– इसके बाद मंदिर को एक बार फिर से बनाया गया लेकिन साल 1447 ईस्वी में इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया था.
– साल 1585 ईस्वी में पंडित नारायण भट्ट ने राजा टोडरमल (अकबर का नवरत्न) की सहायता से इसे फिर से बनवाया गया.
– साल 1632 ईस्वी में अकबर के पोते शाहजहां ने इसे तुड़वाने के लिए सैनिक टुकड़ी भेजी लेकिन हिंदुओं के प्रतिरोध के कारण शाहजहां की सेना काशी विश्वनाथ का मंदिर नहीं तोड़ सकी. इसी दौरान सेना ने 63 अन्य काशी में स्थित मंदिरों को तोड़ा था.
– 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब जो कि शाहजहां का बेटा था और एक क्रूर शासक था. उसने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का और ब्राह्मणों को मुस्लिम में परिवर्तित करने का फरमान सुनाया.
– 2 सितंबर 1669 को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई.
– यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कलकत्ता में आज भी सुरक्षित है. उस समय हर दिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश दिया गया था.
– साल 1752 से लेकर 1780 के बीच मराठा सरदर दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होल्कर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए एवं दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर की क्षतिपूर्ति के लिए आदेश जारी किया. परंतु उस समय ब्रिटिश शासन लागू हो गया और मंदिर का नवीनीकरण रुक गया.
– साल 1777 से लेकर 17780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू करवाया.
– अहिल्या बाई द्वारा इस परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया. पंजाब के राजा रंजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया, ग्वालियर की महारानी बैजबाई ने ज्ञानवापी मंडप बनवाया, महाराजा नेपाल ने वहाँ विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई.
– साल 1809 में काशी के हिंदुओं ने उस हिस्से पर कब्जा किया जिस पर मस्जिद बनाई गई थी. इसे वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है. इस जगह को लेकर ही वर्तमान में भी विवाद चल रहा है.
काशी आलौकिक शक्तियों का नगर है. काशी विश्वनाथ मंदिर भी इतनी बार टूटने के बाद भी आज सुरक्षित है. लोगों का विश्वास है कि इस मोक्ष नगरी में भगवान शिव खुद वास करते हैं. यहां आने से लोगों को सभी पापों से मोक्ष मिल जाता है.