गणपति, गणेश, विनायक, प्रथम पूज्य, विघ्नहरता जैसे कई नामोंं से प्रख्यात श्री गणेश को देखकर मन मे विचार आता है कि श्री गणेश का मुख अन्य देवी-देवताओंं की तरह क्योंं नहीं है. जिस तरह अन्य देवी-देवताओंं के मुख सामान्य हैंं, उसी तरह श्री गणेश का भी मुख सामान्य क्योंं नहीं है? आखिर श्री गणेश का मुख हाथी जैसा क्योंं हैं. आखिर किस तरह श्री गणेश की उत्पत्ति हुई.
गणेश जी की उत्पत्ति की कहानी
दरअसल, गणेश की उत्पत्ति के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं,पुराणो मे भी श्री गणेश की कई कथाओंं का वर्णन किया गया है. कहा जाता है एक बार देवी पार्वती ने शिव जी के सबसे प्रिय गण नंदी को एक कार्य सौंपा था, लेकिन नंदी से माता पार्वती की आज्ञा का पालन करने में त्रुटि हो गई.
इस तरह माता ने अपने शरीर के मैल एवं उबटन से एक बालक के पुतले ल निर्माण किया. उस बालक रूपी पुतले मे माता ने अपनी शक्ति से प्राण डालने के बाद कहा की तुम मेरे पुत्र हो. तुम मेरी आज्ञा का पालन करना.
जब माता पार्वती अपने पुत्र गणेश को द्वार पर पहरा देने के लिए कहते हुए अंदर स्नान के लिए भोगावती नदी पर गई तो उस समय वहां भगवान शंकर आ गए. और वह पार्वती जी के भवन मंभ जाने लगे.
यह देखकर माता की आज्ञा का पालन करते हुए बालक ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु बालक का हठ देखकर भगवान क्रोधित होते हुए अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर द्वार से अंदर चले गए.
उस समय तो माता पार्वती शंकर जी की नाराजगी का कारण समझ नहीं पाईं, लेकिन जैसे ही वह दो थालियों में भोजन परोसकर लाई तो, शिव जी दूसरी थाली देख आश्चर्यचकित हो गए. उन्होने माता से प्रश्न किया कि यह दूसरी थाली किसके लिए है.
माता पार्वती ने प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर मेरी आज्ञा का पालन करते हुए पहरा दे रहा है. माता ने शंकर जी से पूछा कि क्या आपने अंदर आते वक्त उसे नहीं देखा?
माता कि बाते सुनकर शिव जी हैरान हो गए और माता पार्वती को सारा वृत्तांत सुनाया. शिव जी से अपने पुत्र का वध होने कि बात सुनकर पार्वती क्रोधित होते हुए विलाप करने लग गई. माता की क्रोधाग्नि से सम्पूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया. उस समय सभी देवी-देवताओं ने मिलकर शिव जी से स्तुति करते हुए बालक को पुनर्जीवित करने का आग्रह किया.
माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर उस मर्त बालक के धड़ से जोड़ते हुये उसे जीवित कर दिया. कहा जाता है, की भगवान शंकर के कहने पर भगवान विष्णु एक हाथी का सिर काट कर लाये थे, तभी से श्री गणेश का नाम गजमुख पड़ गया.
श्री गणेश को भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने अनेक आशीर्वाद देते हुये उन्हे गणपति, गणेश, विनायक, प्रथम पूज्य, विघ्नहरता जैसे कई नामो से उस गणेश जी की स्तुति की. इस तरह श्री गणेश का प्राकट्य हुआ.