डाइबिटिस या मधुमेह एक खतरनाक रोग है. इससे पीड़ित रोगी का स्वास्थ्य दिन-प्रति-दिन बिगता जाता है. यह बीमारी आजकल काफी तेजी से फैल रही है. इस बीमारी से ग्रसित रोगी के ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़कर नार्मल त्रा से अधिक हो जाती है और पेशाब या यूरिन के साथ शुगर निकलती है.
क्यों होती है डाइबिटिस?
एलोपैथिक मेडिकल प्रोसेस में इसे एक आनुवंशिक मेटाबोलिक बीमारी माना जाता है. जिसमे शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है जिसके कारण ब्लड में शुगर या शक्कर की मात्रा बढ़ने लगती है तथा यूरिन के साथ शक्कर शरीर से बाहर निकलने लगता है.
मधुमेह से पीड़ित मतत पिता से होने वाला बच्चा भी रोग से ग्रसित हो जाता है. इसे जुवेनाइल डायबिटीज कहा जाता है.
आयुर्वेद के मुताबिक प्रमेह या मेदोजन्य विकृति से ग्रसित लोग इस रोग का शिकार हो सकते हैं, यदि ऐसे लोग इनकी उपेक्षा करते हैं. कई कारणों से शरीर में चिपचिपापन और द्रवांश जो सप्त धातु एवं ओज में होता है, के बढ़ जाने से वह यूरिन के साथ निकलने लगता है जिससे बार-बार यूरिन आता है, पैरों में दर्द, कमर में दर्द और गाला एवं जीभ का सूखना तथा प्यास अधिक लगना आदि लक्षण दिखाई देते है.
सुबह उठते समय जीभ पर मैल एवं उपलेप हो जाता है. निद्रा और तन्द्रा बढ़ जाती है. ये
सभी लक्षण मधुमेह या डाइबिटिस होने के सूचक हैं.
क्या खाएं और क्या नहीं खाएं?
उचित खान-पान और रहन-सहन से इस रोग से आसानी से बचा जा सकता है. खाने में ऐसा आहार लेना चाहिए जिससे ब्लड में ग्लूकोज अधिक न बढ़े. भोजन सिमित मात्रा में ही करना चाहिए ताकि शरीर को निर्धारित कैलोरी मिल सकें. जौ और चने की रोटी अत्यधिक लाभदायक हैं.
गेहूं का मोटा चोकरयुक्त आटा, मूंग, मोठ, मसूर, अरहर और सोयाबीन को खाने में शामिल किया जाना चाहिए. सब्जियों में करेला, मेथी, चौलाई, पालक, ककड़ी सरसों का साग, तोरी, सहजन, प्याज, बैंगन, कटहल, मूली, गाजर, शलजम, हरी मिर्च, धनिया, पोदीना, सलाद व घी आदि लिये जा सकते हैं.
इन फलों का करें प्रयोग-
फलों में संतरा, आंवला, जामुन, चीकू, नाशपाती, टमाटर, अनार, अमरूद बेर, अखरोट, पिस्ता, बादाम, मूंगफली नारियल आदि का सेवन हितकर है. दूध, दही और छाछ का सेवन किया जा सकता है. चीनी, गुड़, मिष्ठान, खजूर, किशमिश, मुनक्का, शर्बत, आलू, सिंघाड़ा और सीताफल का सेवन हानिकारक है, इसलिए इनके सेवन से बचना चाहिए.
घी और मक्खन कम मात्रा में लेने चाहिए. इस प्रकार कार्बोहाइड्रेड और फैट की अधिकता वाली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए.
आयुर्वेद में शूगर के कारण
आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त और कफ तीनों दोषों के विकृत होने से डाइबिटिस रोग पैदा होता है. रक्त, मांस, मेद, वसा, मज्जा, लसिका, शुक्र एवं ओज में होने वाले कमाधुर्य और द्रवांश का अपने स्थान पर उपयोग नहीं हो पाता. तब बढ़ी हुई मात्रा को किडनी और मूत्रावाही संस्थान की ओर ले जाकर बलपूर्वक शरीर से बाहर निकालने का कार्य करने लगते हैं.
इन सारी प्रक्रिया में कफ की प्रधानता होती है और पित्त व वायु उसकी मदद करते हैं. इससे पता चलता है कि शरीर में कफ दोषगत, द्रव, क्लेव एवं माधुर्य बढ़ गया है. ऐसे में उचित उपाय किए जाने चाहिए.
उपाय जो आपको अपनाना चाहिए?
चिकित्सा-
इससे पीड़ित रोगियों को अग्निमुख चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण, रसोनादि वटी, सौर्वचल पाकवटी आदि में से किसी एक का सेवन कराना चाहिए ताकि पाचन ठीक हो सके.
नीचे कुछ औषधियां बताई गई है जिनका इस बीमारी में उपयोग करना चाहिए लेकिन ध्यान रहे डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ही इनका सेवन करे.
करेले का रस या गिलोय का रस सेवन करना चाहिए.
शुद्ध शिलाजीत सुबह-शाम एक-एक ग्राम दूध से लेना चाहिए.
आवंला, हर्रे, बहेड़ा, नीम के पत्ते, गुड़मार के पत्ते, जामुन की गुठली, चिरायता, कुटकी, मेथी एवं
तेजपत्रा आदि, सभी चीजों को समान मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लें. सुबह-शाम एक छोटी चम्मच चूर्ण गर्म पानी से लें.
अनुशासन और इच्छाशक्ति से मधुमेह को कण्ट्रोल किया जा सकता है और बिना किसी कठिनाई के अच्छे ढंग से जीवन जिया जा सकता है.