हाल ही में कुछ फॉरेन इंस्टीट्यूशंस की कथित रेटिंग के चलते सरकार ने यह जोर-शोर से प्रचार कर रही है कि देश की अर्थव्यवस्था एकदम पटरी पर है और सरपट दौड़ रही है. जो लोग सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं उन्हें पूर्वाग्रही कहा जा रहा है. कहा जा रहा है कि उन्हें या तो अर्थशास्त्र की समझ नहीं है या फिर वे नाहक सरकार की विकास यात्रा को रोकना चाहते हैं. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू एक अलग ही कहानी बयां कर रहा है. आइए जरा डालते हैं नजर.
आंकड़ों की दूसरी कहानी
देश में कथित विकास यात्रा के बीच शिशु मृत्युदर बढ़कर 223 हो गई, जो पिछले साल 175 थी. वैश्विक भूख सूचकांक में हमारे देश का स्थान अब 119वां हो गया है जबकि यह पहले केवल 100वां हुआ करता था. शिक्षा सूचकांक में हमारा स्थान 197वां है जो पहले 145वां होता था. विश्व खुशहाली सूचकांक में हम अब 155वें स्थान पर हैं जबकि पहले 122वें स्थान पर थे. मानव विकास दर की रफतार 131वां था, जो अब बढ़कर 186वां हो गया है. यही नहीं अभी-अभी जो बैंकों की परिसंपत्ति एनपीए का ब्योरा आया है वह भी चैकाने वाला है. इस सरकार में यह कम से कम 07 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुका है.
ऐसी है देश की आर्थिक हालत कैसे होगा निवेश
देश की आर्थिक स्थिति पर जब हम नजर दौड़ाते हैं, तो साफ-साफ दिखने लगता है कि हमारी सरकार लगातार गलती पर गलती करती जा रही है. दूसरी ओर देश का माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि दुनिया की पूंजी हम आकर्षित करने में नाकाम हो रहे हैं. दुनिया की पूंजी वहीं लगती है जहां शांति हो.
हमारे यहां कभी पाटीदारों के आरक्षण का आन्दोलन होता है तो जाट आरक्षण को लेकर रेल की पटरियां उखाड़ देते हैं. कभी राजस्थान के गुर्जर आन्दोलित होते हैं तो कभी गौरक्षक अपनी सेना लेकर विकास के राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवरोध खड़ा कर देते हैं. ऐसे में दुनिया की पूंजी हमारे देश में निवेश नहीं हो सकती. फिर जो देशी पूंजी है उसे भी अब सुरक्षा का खतरा महसूस होने लगा है.
अफवाह के हालात बनें हैं
बीते कुछ दिनों पहले हैदराबाद में बैंक में रखी संपत्ति की असुरक्षा की अफवाह फैल गई. लोगों में अफरा-तफरी का माहौल उत्पन्न हो गया. कुछ दिनों से लगातार यह खबर आ रही है कि अब सरकार किसी भी समय दो हजार के नोटों को बंद करने की घोषणा कर सकती है. लोग आशंकित हैं. इस प्रकार की खबरों ने लोगों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति व्यापक अविश्वास को जन्म दिया है. यह खतरनाक है और इस दिशा में सरकार को सोचने की जरूरत है.
विकास दर में कमी और जमीन हाल
देश की विकास दर में दो से लेकर ढ़ाई प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है. खेती का हाल बेहाल है. किसानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है. दो-दिन पहले उत्तर प्रदेश से खबर आई कि आलू उत्पादक किसानों को दस पैसे प्रति किलो के हिसाब से आलू बेचने को मजबूर किया जा रहा है. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे जनकल्याण की मद में सरकार लगातार बजट कम करती जा रही है. इससे देश के हालात अच्छे होने के बजाए खराब होंगे और एक दिन देश भारी अराजकता का शिकार हो जाएगा.
सुरक्षा का राग और हालात
कहने के लिए हम बड़े-बड़े विनाशक हथियार खरीद रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिस रणनीति की जरूरत है उसे अपनाने में गुरेज कर रहे हैं. एक-एक कर हमारे पड़ोसी जो कल तक हमारे साथ खड़े थे वे हमारे सबसे बड़े दुश्मन चीन के खेमें में शामिल होते जा रहे हैं. इस दिशा में हमारी सरकार को सोचने की फुरसत ही नहीं है. सरकार बस चंद सर्जिकल स्ट्राइक से ही अपनी पीछ थपथपा ले रही है.
डोकलाम का प्रचार और हकीकत
डोकलाम के मुद्दे पर प्रचार किया गया कि चीन पीछे हट गया है लेकिन वास्तविकता यह है कि चीन ने अपनी सेना की संख्या वहां बढ़ा दी है. ऐसे में हम राष्ट्र की सीमा भी सुरक्षित रखने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. हां सरकार मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब हो रही है कि उनके हाथों बहुसंख्यकों की संस्कृति बेहद सुरक्षित है. लेकिन क्या इतने भर से देश का कल्याण होगा? ऐसा तो नहीं लगता है कि इससे कुछ भी सार्थक होने वाला है.
अर्थनीति और कूटनीति
धीरे-धीरे दुनिया के घातक हथियारों का बाजार बनते जा रहे हैं. याद रहे अब चीन और पाकिस्तान हमारे ऊपर कोई बड़े हमले को अंजाम देने की योजना में नहीं है. वह बड़ी चतुराई से हमें चारो ओर से घेर रहा है. इस घेरेबंदी को हमारी कूटनीति समझ नहीं पा रही है. या फिर समझ-बूझ कर उस ओ से आंखें चुरा रही है. अब दुनिया अर्थशास्त्र की धूरी पर चक्कर लगा रहा है. बड़ी सैन्य शक्ति की आज कोई जरूरत नहीं रह गई है. इसीलिए दुनिया के प्रभू राष्ट्र अपनी भौतिक सैन्य संरचना को छोटा बनाने में लगे हुए हैं. हमें भी उस दिशा में सोचने की जरूरत है.
क्या करना चाहिए भारत को
यदि हमें दुनिया के ताकतवर देशों से प्रतिस्पर्धा करनी है तो हमें बड़े पैमाने पर अपने मानव संसाधन को बेहतर बनाना होगा. हमें इराक, ईरान, सीरिया जैसे देशों के साथ अपने संबंध और प्रगाढ़ करने होंगे. निःसंदेह पाकिस्तान सबसे खतरनाक दुश्मन है लेकिन उसके साथ भी संबंध सुधारने होंगे. युद्ध से तबाह हो चुके सीरिया, ईरान, इराक, अफगानिस्तान एवं मध्य एशियायी देशों में नवनिर्माण के काम प्रारंभ हो चुके हैं. बड़े पैमाने पर उन्हें मानव संसाधन की जरूरत पड़ेगी. वह यूरोप से आने वाला नहीं है. न ही एशिया के अन्य कोई देश वहां जाने वाला है. इस दिशा में हमारी प्रतिस्पर्धी केवल और केवल चीन है. उसे मात देने के लिए हमें अपने आप को खड़े करना चाहिए.
देश में घिरेगा राष्ट्रवाद
दुनिया के सामने खड़ा होने के लिए यही एक मात्र रास्ता बचा है नहीं तो हम बुरी तरह परेशान होंगे. हमारी स्थिति पाकिस्तान से भी ज्यादा खराब हो सकती है. पाकिस्तान में तो अंतरविरोध कम है लेकिन हमारे यहां कई प्रकार के अंतरविरोध हैं. उन अंतरविरोधों को हवा देकर हमारे दुश्मन, हमारी खाट खड़ी कर सकते हैं. आने वाले समय में हमारे राष्ट्रवाद को सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण से मिलने की संभावना है. इसलिए हमारी राष्ट्रीय सरकार को देश की संप्रभुता के लिए अपनी अर्थिक स्थिति को जल्द से जल्द ठीक कर लेनी चाहिए.
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