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महंगी होती शिक्षा प्रणाली और स्कूलों में असुरक्षित बच्चे

By Ramesh Thakur Sep 18, 2017
safety of school children's Image source: pixabay.comsafety of school children's Image source: pixabay.com

अंग्रेजी भाषा के पब्लिक स्कलों में जब दाखिला लेना होता है, तो हर अभिभावक के जेहन में सुरक्षा को लेकर सवाल उमड़ने लगता है. इस मसले पर जब स्कूल प्रशासन से मंत्रणा की जाती है, तो उस स्थिति में पब्लिक स्कूलों के मालिक सुरक्षा की दुहाई सीसीटीवी के कैमरों को आधार बनाकर तर्क देते हैं. उस दौरान उनका बस यही कहना होता है कि हमारे यहां इतने कैमरे लगे हैं, हर जगह कैमरे हैं. इस गली में, उस गली यानी हर जगह कैमरे लगे होने की बात कही जाती है. मसलन उनके सुरक्षा की सुई सीसीटीवी कैमरों पर ही रुक जाती है, लेकिन उनके दावे उस समय फुस्स हो जाते हैं, जब स्कूलों से अनहोनी की घटनाएं सामने निकलती हैं. प्रबंधक स्कूलों में दो-चार कैमरे लगाकार हाथ खड़े कर लेते हैं, जो नाकाफी होते हैं.

दरअसल, सीसीटीवी के भरोसे न रहकर स्कूलों में अब आमूलचूल सुरक्षा परिवर्तन की जरूरत है ताकि फिर ऐसे मामलों में पुलिस व न्यायिक सुस्ती की गुंजाइश न दिखे. दिल्ली से सटे गुरुग्राम के रायन इंटरनेशनल की घटना ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया है. अभिभावक डरे-सहमे हैं.

पब्लिक स्कूलों की सुरक्षा को लेकर जब भी बात होती है तो स्कूल प्रबंधक सबसे पहले अपने यहां लगे सीसीटीवी कैमरों का हवाला देते हैं, लेकिन जब कोई घटना घट जाती है तो उनके कैमरे अचानक खराब हो जाते हैं. रायन स्कूल में घटी घटना के बाद यही तर्क सामने आया है, जबकि पूरे स्कूल में करीब 30 सीसीटीवी कैमरे लगे होने की बात कही गई है. टॉयलेट में भी कैमरा लगा था जहां पर घटना हुई पर हादसे के वक्त कैमरा खराब हो गया या कर दिया गया था. ये थ्योरी स्कूल प्रबंधन और पुलिस की है जिस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल हो रहा है. रायन स्कूल में हुए सात साल के बच्चे के मर्डर ने पूरे देश के पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. प्राइवेट स्कूलों के सामने बच्चों की सुरक्षा का फूलप्रूफ प्लान बनाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. एक बात हमें मानकर चलना चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों में केवल सीसीटीवी कैमरे लगाने से ही समस्या हल नहीं हो सकता  वह इसलिए कि घटना के वक्त इनका चलना अदृश्य शक्ति के चलते बंद हो जाता है.

यकीनन ऐसे मामलों के बाद हमें समझना होगा कि अब स्कूलों को लीपापोती से नहीं बल्कि जो भी कमियां हैं उन्हें ढूंढना होगा और दूर करना होगा. पब्लिक स्कूलों में बच्चे सेफ नहीं हैं ये सवाल पिछले कुछ सालों से जबाव मांग रहे हैं.

रायन स्कूल की लापरवाही ने एक मां की गोद सूनी कर दी. बच्चे के विलाप में उनका रो-रो कर बुरा हाल है. उस मां के सारे सपने खत्म हो गए. बाप की उम्मीद भरे पंखों के पर कतर दिए. बिना कसूर के एक अबोध बच्चे का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. दोष सकूल की बस चलाने वाले कंडक्टर पर मढ़ा जा रहा है. जो किसी के गले नहीं उतर रही.

पुलिस जिस तरह से स्कूल प्रबंधन व प्रिंसिपल को निर्दोष साबित करने में जुटी है उसे देखकर पुलिस की जांच भी संदिग्ध लग रही है. गुरूग्राम के भौंडसी स्थित रेयान इंटरनेशनल की घटना से पूरा से आक्रोश में है. हर तरफ इसी घटना की चर्चाएं हो रही हैं. स्कूल में बच्चे की हत्या टायलेट में चाकू से निर्मम तरीके से की गई. घटना का खुलासा तब हुआ जब स्कूल का एक माली टॉयलेट की ओर गया. हादसे के बाद गुस्साए लोगों ने स्कूल में तोड़फोड़ की. बच्चे के पिता एक निजी कंपनी में काम करते हैं, जो सुबह 7 बजकर 55 मिनट पर अपने 7 साल के बेटे पद्युमन को स्कूल छोड़कर गए थे. करीब 9 बजे उनके पास स्कूल से फोन आया कि उनके बेटे की गर्दन में चोट लगी है इसलिए वह भी जल्दी अस्पताल पहुंचे. बच्चे के पिता के अनुसार वह तुरंत बादशाहपुर स्थित उस अस्पताल में पहुंचे जहां का पता स्कूल ने उसे दिया था, लेकिन वहां से डॉक्टर्स उसे गुरुग्राम रेफर कर चुके थे. वहां पहुंचते ही डॉक्टर्स ने पद्युमन को मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना और टाइमिंग अनहोनी की तरफ इशारा कर रही है.

सात वर्षीय प्रद्युमन की हत्या पर पुलिस प्रशासन सच्चाई को दबा रही है. बड़ी मछलियों पर हाथ न डालकर स्कूल बस के कंडक्टर को गिरफ्तार किया है. डीसीपी क्राइम सुमित कुहाड़ का तर्क है कि ने घामडोज गांव का रहने वाला करीब 42 साल का कन्डक्टर बच्चे के साथ दुष्कर्म करना चाहता था. उसने बच्चे के कपड़े भी उतार लिए थे लेकिन बच्चे के विरोध के कारण वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाया और उसने उसकी हत्या कर दी.

पब्लिक स्कूलों फीस के नाम पर खुलआम लूट मचा रहे हैं. इसके बाद भी सुरक्षा का मुद्दा उनके लिए खास मायने नहीं रखता. दुख इस बात का है कि स्कूलों की इस मनमानी पर लगाम लगाने का कोई सरकारी बंदोबस्त नहीं. न ही सरकारी तौर पर और न ही स्थानीय प्रशासन के तौर. स्कूल माफिया खुलकर अभिभावकों की जेब काटने का धंधा कर रहे हैं और वो भी बेरोकटोक.

हैरानी की बात ये है कि इस तरफ न तो सरकार का कोई ध्यान है और न ही हमारे देश की सर्वोच्च अदालत इस बात को संज्ञान में ले रही है. शायद संविधान में कोई ऐसी व्यवस्था ही नहीं की गई है कि स्कूलों की ऐसी किसी मनमानी पर सरकार या संवैधानिक एजेंसियां किसी भी तरह लगाम लगा सकें. रेहान स्कूल की घटना भी समय के साथ सुस्त हो जाएगी. जब तक मीडिया में खबरे चलेंगी, मामला तूल पकड़ता रहेगा. जैसे ही मीडिया अपना ध्यान हटाएगी. मामला शांत पड़ जाएगा. पुलिस व स्कूल प्रशासन भी उसी घड़ी का इंतजार कर रहा है.

By Ramesh Thakur

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