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भोलेनाथ, महांकाल, नीलकंठ, महादेव भगवान शिव के कई नाम हैं लेकिन भगवान शिव को स्वयंभू भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि वह अजन्मे हैं. वह ना आदि हैं और ना ही अंत है. भोलेनाथ को अजन्मा और अविनाशी कहा जाता है. भगवान शिव को अजन्मा तो कहा जाता है लेकिन उनके जन्म के बारे में कई कथाएं (Bhagwan Shiv ke janm ki katha) प्रचलित हैं जो उनके जन्म का जिक्र करती हैं. जिनमें से एक कथा शिवपुराण में है तथा कुछ अन्य पुराणों में है. भगवान शिव के जन्म का क्या रहस्य है (Bhagwan Shiv ka Janm kaise hua?) और भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ? इस बारे में आप इस लेख में जान पाएंगे.

भगवान शिव (Lord Shiva Birth)

भगवान शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता है. हिन्दू धर्म में तीन प्रमुख देव हैं. जिनमें पहले ब्रह्मा हैं जिन्हें सृष्टि के रचियता कहा जाता है, दूसरे भगवान विष्णु हैं जिन्हें सृष्टि का संचालक कहा जाता है और तीसरे भगवान शिव हैं जिन्हें संहारक कहा जाता है. इन्हें संहार का देवता भी कहा जाता है. वेदों और पुराणों से मिली जानकारी से पता चलता है कि ये तीनों देवता पृथ्वी का संतुलन बनाए हुए हैं. भगवान शिव को व्यक्ति की चेतना का अंतर्यामी माना गया है. इन्हें आदियोगी भी कहा जाता है. इनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों के रूप में होती है.

भगवान शिव के जन्म का रहस्य (Lord Shiva Birth Secret)

भगवान शिव के जन्म का उल्लेख शिवपुराण (Shiva Purana) में मिलता है. इसके अनुसार भगवान शिव ने देवी आदिशक्ति और सदाशिव से कहा कि हे माता! ब्रह्मा तुम्हारी संतान है और विष्णु की उत्पत्ति भी आप से ही हुई है तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं भी आपकी संतान हुआ. इसमें कहा गया है कि ब्रह्मा और विष्णु सदाशिव के आधे अवतार हैं किन्तु भगवान शिव सदाशिव के पूर्ण अवतार हैं. सदाशिव और शिव  (Mahashivratri) दिखने में एक समान हैं.

शिवपुराण के अनुसार सदाशिव ने कहा कि जो भी मुझमें और शिव में भेद करेगा और ये कहेगा कि हम अलग हैं वो नर्क में गिरेगा, या फिर जो शिव, विष्णु और ब्रह्मा और मुझमें कोई भेद करेगा वो नर्क में गिरेगा. वास्तव में सदाशिव, ब्रह्मा, विष्णु और कैलाशपति शिव में कोई भेद नहीं है. अतः शिवपुराण से ये स्पष्ट होता है कि भगवान शिव आदिशक्ति और सदाशिव की ही संतान हैं.

भगवान शिव के जन्म के बारे में एक कथा और भी है जो काफी प्रचलित है. जिसके अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु में खुद को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए बहस छिड़ गई. दोनों खुद को श्रेष्ठ साबित करना चाह रहे थे. तभी एक रहस्यमयी खंभा प्रकट हुआ जिसका ओर-छोर दिखलाई नहीं दे रहा था. भगवान विष्णु और ब्रह्मा को एक आवाज सुनाई दी और उन्हें उस खंबे का छोर खोजने की चुनौती दी गई.

भगवान ब्रह्मा ने एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे का ऊपरी हिस्सा खोजने के लिए निकल पड़े और भगवान विष्णु ने वराह का रूप लिया और वे खंभे का आखिरी छोर ढूँढने के लिए निकल पड़े. (Shivratri) दोनों ने बहुत प्रयास किए लेकिन वे सफल नहीं हो पाये. इसके बाद दोनों ने हार मान ली और खंभे के पास भगवान शिव को इंतज़ार करते हुए पाया. तब उन्हें एहसास हुआ कि ब्रह्मांड को एक सर्वोच्च शक्ति चला रही है जो भगवान शिव ही है.

कर्म पुराण में ये माना गया है कि जब भगवान ब्रह्मा को सृष्टि को उत्पन्न करने में कठिनाई होने लगी तो वे रोने लगे. ब्रह्मा जी के आंसुओं ने भूत-प्रेतों को जन्म दिया और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए. रुद्र भगवान शिव के अंश और भूत-प्रेत उनके गण सेवक माने जाते हैं.

भगवान शिव के अवतार (Lord Shiva Avtar)

भगवान शिव के कई अवतारों का उल्लेख अलग-अलग पुराणों में मिलता है.

शिवपुराण में भगवान शिव के 19 अवतारों का जिक्र मिलता है. इनमें वीरभद्र अवतार, पिप्पलाद अवतार, नंदी अवतार, भैरव अवतार, अश्वथामा, शरभावतार, गृहपति अवतार, ऋषि दुर्वासा, हनुमान, वृषभ अवतार, यतिनाथ अवतार, कृष्णदर्शन अवतार, अवधूत अवतार, भिक्षुवर्य अवतार, सुरेश्वर अवतार, किरात अवतार, ब्रह्मचारी अवतार, सुनटनतर्क अवतार, यक्ष अवतार हैं.

भगवान शिव के दशावतार भी हैं. इनमें महांकाल, तारा, भुवनेश, षोडश, भैरव, छिन्नमस्तक गिरिजा, धूम्रवान, बगलामुख, मातंग, कमल हैं. ये अवतार तंत्रशास्त्र से संबन्धित हैं.

भगवान शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता हैं. (Mahashivratri) महाशिवरात्रि के मौके पर धूमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती की बारात निकाली जाती है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भारत समेत कई देशों में इस पर्व को बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है.

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