बॉलीवुड में प्रेम के केंद्र में मानकर कई फिल्में बनीं हैं. हालांकि इंडियन सिनेमा के शुरुआती दौर में प्रेम से इतर समाज और राष्ट्र फिल्मों के विषय रहे, लेकिन बॉलीवुड में बनने वाली फिल्मों की धारा प्रेम और उसके ईर्द-गिर्द ही घूमती रही है. मराठी फिल्म सैराट बीते 30 सालों में ऑनर किलिंग को केंद्र में रखकर बनाई गई सबसे चर्चित फिल्म रही है.
सैराट के डायरेक्टर नागराज मंजुले ने फिल्म के जरिये क्षेत्रिय सिनेमा की सीमाओं को खोल दिया है. यही वजह है कि सैराट की लोकप्रियता इतनी विराट हो गई कि करण जौहर ने इसका रीमेक धड़क के रूप में बनाने का फैसला किया. कल 20 जुलाई को फिल्म रिलीज हो गई और वह दर्शकों के सामने है.
धड़क की तुलना सैराट से ना हो
फिल्म धड़क और सैराट की तुलना करना सही नहीं होगा, धड़क को एक स्वतंत्र फिल्म के रूप में देखना चाहिए. करण जौहर ने इसे शुद्ध बॉलीवुड मसाला फिल्म बनाया है.
फिल्म की शुरूआत ठीक वैसे ही कमर्शियल और मसाला फिल्मों की तरह हुई है जो आमतौर पर होती है, लेकिन अंत मराठी फिल्म सैराट की तरह होता है, जो दर्शक बर्दाशत नहीं कर पाते हैं और सिनेमा हॉल से निराशा के साथ लौटते हैं.
कैसी है फिल्म धड़क
जिन्होंने सैराट देखी है वे इसकी तुलना किए बगैर मानेंगे नहीं, लेकिन जिन्होंने नहीं देखी है उनके लिए इस कहानी से सामना नया है, लिहाजा वे पहली बार में इसे पसंद कर सकते हैं.
महान अदाकारा श्रीदेवी की बेटी जान्हवी का सौंदर्य और बेबाकी दर्शकों को प्रभावित करती है. चुलबुले और रोमांटिक भावना भरे सीनों में ईशान का कोई जवाब नहीं है.
आशुतोष राणा का अभिनय काम चलाऊ लगता है. आशुतोष राणा के किरदार पर काम करने की जरूरत थी. भले ही सैराट को हर तरफ से सराहना मिली हो, लेकिन, हिंदी सिनेमा की विराटता और सिने प्रेमियों के फ्लेवर को समझते हुए क्लाईमेक्स में बदलाव की जरूरत थी.
कैसा है धड़क का निर्दैशन
शशांक खेतान का निर्देशन बुरा नहीं है, लेकिन, स्क्रीन प्ले में कसावट की मांग थी. संवाद प्रभावी नहीं है. फिल्म का गीत संगीत और सिनेमेटोग्राफी शानदार है, जो धर्मा प्रोडक्शन्स की फिल्मों की खासियत है.
कुल मिलाकर सैराट से तुलना ना करें तो उदयपुर के मधु और पार्थवी की प्रेम कहानी धड़क एक बार देखी जा सकती है. विशेषकर जाह्नवी और ईशान की खूबसूरत जोड़ी के लिए. उदयपुर की खूबसूरती निहारने के लिए और रोमांटिक गानों को बड़े पर्दे पर देखने के लिए.
Rating- 2.5*