श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों तक हमारे पितृ पृथ्वी पर रहते हैं. मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के 15 दिनों के लिए पितरों को धरती पर आने के लिए यमराज मुक्त कर देते हैं. पितृ पक्ष के दौरान सभी पितर अपने भाग का ग्रास पाने के लिए अपने परिजनों के पास आते हैं. इसलिए पितरों की शांति और संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है.
क्या है श्राद्ध का अर्थ (pitru paksha meaning in hindi)
श्राद्ध का सामान्य और सरलतम अर्थ है सत्य को धारण करना है. श्राद्ध पक्ष का वर्णन विष्णु पुराण, वायु पुराण, वराह और मत्स्य सहित अन्य पुराणों में किया गया है. इसके अलावा महाभारत और मनुस्मृति में भी श्राद्ध पक्ष का उल्लेख किया गया है. श्राद्ध का एक अर्थ अपने देवों, परिवार, वंश, परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना भी है. तैतरीय उपनिषद् में कहा गया है कि मिट्टी से निर्मित इस शरीर के विविध तत्व मृत्यु के बाद ब्रह्मांड में विलय हो जाते हैं, लेकिन मरने के बाद भी आत्मा में मोह शेष रह जाता है. इसी प्रेम में बंधकर हमारे पितृ, पितृ पक्ष में धरती पर आ जाते हैं.
क्या है पितृ दोष (pitra dosh ke baare mein bataye)
ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष वाली कुंडली को शापित कुंडली माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृ दोष जिसकी कुंडली में होता है, वह व्यक्ति अपने मातृपक्ष व पितृपक्ष को दुख देता है. यदि आपकी जन्मपत्री में सूर्य पर शनि के साथ ही राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव रहता है, तो आप पितृ ऋण की स्थिति में हैं. यदि आपकी कुंडली में गुरु ग्रह पर दो नीच ग्रहों का असर हो, गुरु 4-8-12वें भाव में होने के साथ ही नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घट जाता है. इसके अतिरिक्त पितृ दोष के कई अन्य कारण भी हैं.
कैसे करें पितृ दोष का निवारण (pitra dosh se mukti paane ke upaye)
शास्त्रों के अनुसार पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना और संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना मुख्य उपाय हैं.
इसके अलावा आप रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ नियम पूर्वक करें, भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाएं, तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप दें.
श्राद्ध पक्ष के दौरान आप तीनों संध्या के समय तेल का दीपक जलाएं। साथ ही पितृ-सूक्तम् का पाठ कर भगवान से पितृ दोष की शांति के लिए प्रार्थना भी करें.