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थाली में खाना मत छोड़िए, दुनिया भूखी है और हिंदुस्तान कुपोषण पर शर्मिंदा..!

poverty, hunger and malnutrition problems in india

पूरी दुनिया 7.30 अरब लोगों की है. 1.40 अरब आबादी के साथ चीन पहले नंबर पर तो भारत 1.28 अरब के कुल जन-धन के साथ दुनिया में दूसरे पायदान पर है. अमेरिका की कुल जनसंख्या 32 करोड़ होने को है. उसके बाद 20.26 करोड़ की आबादी का ब्राजील और 25.36 करोड़ का इंडोनेशिया है. विश्व की 47 प्रतिशत आबादी केवल भारत, चीन, अमेरिका, ब्राजील और इंडोनेशिया में बसती है. सवाल यह है कि टेक्नॉलॉजी के बूते पूरी दुनिया में चल रही विकास की बयार में आज भी विश्व में महिलाओं, बूढ़ों बच्चों की ऐसी दुनिया है जो भूखी है, कुपोषण का शिकार है. शर्म की बात यह है कि इन देशों में भारत भी शामिल है.

दुनिया में कुपोषण और भूख की समस्या

1990-92 में दुनिया भर में भूखे लोगों की संख्या जो एक अरब थी, 2014-15 में घटकर 79.50 तो हो गई, लेकिन इंडिया में 19.40 करोड़ लोग अभी भी भूखे ही सोने को मजबूर हैं. बच्चों की स्थिति तो और भी दयनीय है. यहां हर चौथा बच्चा भूखा है. संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपनी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्योरिटी इन द वर्ल्ड 2015’ में इन आंकड़ों का खुलासा करते हुए कहा है कि भारत में 190.7 मिलियन बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और विश्व हंगर इंडेक्स में भारत दुनिया के 119 देशों में 100 वें नंबर पर है.

भूख से कब जंग जीतेगा भारत?

भूख से लड़ना एक जटिल व चुनौतीपूर्ण काम तो है मगर यह असंभव नहीं. एक के बाद दूसरे प्रधानमंत्री ने भूख से लड़ने की अपनी मंशा दिखाई है फिर चाहे वह इंदिरा गांधी हों जिन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया, या मनमोहन सिंह जिन्होंने कुपोषण को ‘राष्ट्रीय शर्म’ बताया, या फिर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने अपनी सरकार को गरीबों के प्रति समर्पित बताया लेकिन सच्चाई यह है कि स्वतंत्राता के बाद 70 वर्ष बीत जाने पर भी अभी तक उपयुक्त आर्थिक नीति इस दिशा में नहीं बन सकी.

71 एग्रील्चर यूनिवर्सिटी और 200 से ज्यादा रिसर्च इंस्टीट्यूट्स/ ब्यूरो पर निगरानी रखने वाला भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जैसे संस्थान भारत में हैं यही नहीं करीब 99 फीसदी खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कृषि से ही होती है लेकिन भारतीय कृषि पहले से ही पर्यावरणीय क्षरण, जलवायु परिवर्तन एवं गैर-कृषि गतिविधियों में भूमि के उपयोग के कारण संकट की स्थिति में है. वास्तविकता यह है कि कृषि पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना गरीबी, भूख और कुपोषण से लड़ाई की बात ही बेमानी लगती है.

भोजन को शर्मसार करते हैं आंकड़े?

दुखद पहलू यह भी है कि विश्व में पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थों में से तकरीबन आधा भाग हर साल बिना खाए सड़ जाते हैं. भोजन की बर्बादी पर विश्व खाद्य कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि विश्व भर में होने वाली खाने की बर्बादी को रोक लिया जाए तो पर्यावरण के लिए घातक ग्रीन हाउस गैसों को 8 प्रतिशत तक नियंत्रित किया जा सकता है और इस प्रकार 2050 तक कृषि से होने वाले प्रदूषण को 14 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.

इतना ही नहीं, यदि भोजन के अपव्यय का (हिस्सा भी रुक जाए तो दुनिया के 870 मिलियन लोगों की भूख शांति के साथ साथ पर्यावरण प्रदूषण तथा पानी की बर्बादी को भी बड़ी मात्रा में नियंत्रित किया जा सकता है. सोचने वाली बात है कि इंडिया की शादियों में खाने की जबरदस्त बर्बादी होती है. समस्या सिर्फ खाना फेंकने की ही नहीं है. शादियों खाने में कैलोरी भी जरूरत से ज्यादा होती है.

नहीं है खाना बर्बाद करने की संस्कृति

वैसे तो बचपन से ही हमें खाना बर्बाद न करने के संस्कार दिए जाते हैं. इसके बावजूद असंख्य लोग हैं जो थाली में खाने को प्रतिदिन यूं ही झूठा छोड़ उसे बर्बाद करते हैं जबकि उनको भी पता है कि हमारे देश में ही करोड़ों लोगों को एक जून की रोटी के भी लाले हैं.

भारतीय संस्कृति कहती है कि भोजन करने से पहले हम देखें कि गाय की रोटी निकली कि नहीं, यज्ञ में आहुति लगाई कि नहीं, चींटियों को आटा डाला कि नहीं, अन्नदाता को भोग लगाया कि नहीं, आसपास कोई भूखा तो नहीं, द्वार पर कोई अतिथि तो नहीं, थाली में भोजन आवश्यकता से अधिक तो नहीं, कुत्ते को रोटी दी कि नहीं. इसके अलावा घर के अन्न भण्डारण की जगह की विशेष निगरानी की जाती है जिससे कि उसमें कोई कीड़े-मकोड़े न पड़ जाएं.

Indian Economy and Rural india, Powerty and Hungriness

क्या कहती हैं स्टडी?
एक हाल में आई अमेरिकी स्टडी के मुताबिक इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर शहरों में इन्वेस्टमेंट की बजाय एग्रीकच्लर लगाई पूंजी गरीबी मिटाने में पांच गुना अधिक प्रभावी होती है. यह वाकई एक वास्तविकता है क्योंकि सामान्यतः भारतीय अर्थशास्त्री, नीति-निर्माता और नौकरशाह वैचारिक रूप से बाजार के सुधारों के लिए तो प्रतिबद्ध हैं, लेकिन कृषि व सामाजिक क्षेत्रा में निवेश के प्रति उदासीन ही नजर आते हैं. अगर हम चाहते हैं कि 2022 तक देश में कोई भी भूखा न रहे तो हमें कृषि में सार्वजनिक निवेश के साथ-साथ ग्रामीण विकास को बढ़ावा देकर खेती-बाड़ी को फिर से अपने विकास की रीढ़ बनाना पड़ेगा.

प्रयास चल रहे लेकिन मंजिल दूर

राष्ट्रीय स्तर पर इस भूख की समस्या से निपटने के लिए विविध सरकारों की विकास योजनाओं, अनेक संवैधानिक प्रावधानों, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन व अन्त्योदय जैसी असंख्य योजनाओं, एक मुट्ठी अनाज, इस्कान मंदिर द्वारा फूड फार लाइफ, रोटी बैंक इत्यादि अनेक योजनाओं के साथ अनगिनत गैर सरकारी संगठन मानव उत्थान के इस कार्य में निस्वार्थ भाव से लगे तो हुए हैं किन्तु मंजिल अभी बहुत दूर है जिसे हमें शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करना ही होगा.

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