भारतीय समाज में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्योहार हजारों सालों की परंपरा का हिस्सा है. इस पर्व के पीछे एक ओर जहां कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं, तो वहीं दूसरी ओर भाई और बहन के बीच प्यार, विश्वास और रक्षा की भावना है.
यह पर्व भारतीय परंपरा में रिश्तों की पवित्रता का सबसे सुंदर प्रतीक है. परिवारों में भाई-बहन के विश्वास को बनाता यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन हर साल बहन भाई की कलाई में राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है.
दरअसल, हमारे पूर्वजों ने भारतीय सभ्यता में रिश्तों की पवित्रता उसके संरक्षण और परिवार के सदस्यों के बीच आपसी सद्भवना और प्रेम पनपने के लिए कई तरह के पर्वो का आयोजन किया है.
जैसे, संतान की सुरक्षा और उसके पोषण के लिए संतान सप्तमी या हलछठ या पति-पत्नी के बीच संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए करवा चौथ, हरतालिका तीज या फिर भाई-बहन के संबंधों में निष्ठा की भावना के लिए भाई-दूज और रक्षाबंधन जैसे त्योहार बनाए गए हैं.
इन पर्वों ने ही भारतीय समाज और परंपरा के भीतर मनुष्य संबंधों बीच एक मर्यादा और नैतिक दायिक्त के निर्वाह को आज तक जीवंत बनाए रखा है. समाज रक्त संबंधों के इन पर्वौ में बंधा एक मर्यादा को जीता रहा है. प्रकृति और समाज के बीच संतुलन स्थापित करना ही रक्षाबंधन जैसे पर्वों का महत्व रहा है.
(Raksha Bandhan) रक्षाबंधन के त्योहार की कहानियां
भारतीय समाज में रक्षा बंधन के पर्व के पीछे कई सामाजिक कहानियां प्रचलित हैं लेकिन जहां तक पौराणिक कहानियों की बात है तो यह कहानी भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है. जब राजा बलि ने 110 यज्ञ पूर्ण करने के बाद अपने माथे पर विष्णु देव का पैर रखवाया तो बलि का राज्य चला गया.
वे रसातल में रहने को मजबूर हुए. लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया और नारायण को रसातल में अपने पास ही दिन रात रहने का वचन ले लिया.
विष्णु भक्त की यह आस को मना नहीं कर पाए और वहीं रहने लगे. इससे माता लक्ष्मी को चिंता हुई और उन्होंने रसातल में कैद अपने पति विष्णु को वापस लाने के लिए नारद जी से उपाय पूछा. तब नारद जी ने लक्ष्मी जी को राजा बलि को वचन बद्ध करने का तरीका बताया और एक बंधन में बांधने के लिए उन्हें रक्षा सूत्र में बांधा.

जब लक्ष्मी जी ने राजा बलि को यह रक्षासूत्र बांधा और इसके उपलक्ष्य में भाई बने राजा बलि से उपहार मांगा तो उपहार में अपने पति भगवान विष्णु को मांगा और दोबारा वैकुंठ ले आईं. कहा जाता है तभी से राखी का पर्व मनाया जाने लगा.
ऐसे ही दूसरी एक कहानी भविष्य पुराण से भी आती है. इसके अनुसार देव गुरु बृहस्पति ने देवस के राजा इंद्र को व्रित्रा असुर के खिलाफ लड़ाई पर जाने से पहले पत्नी से राखी बंधवाने का सुझाव दिया और इंद्र की पत्नी शचि ने उन्हें राखी बांधी थी. तभी से यह पर्व सारे संसार में मनाया जा रहा है.
ऐसे ही एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने उन्हें मनाने और उनकी आराधना करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन मछुआरे वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करते हैं. विशेष रूप से महाराष्ट्र में इस पर्व को इसी रूप में मनाया जाता है.
इसी तरह रक्षा बंधन की एक कहानी महाभारत से भी जुड़ती है जहां युद्ध से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, लेकिन चक्र उठाते हुए उनके हाथ में चोट लगी और रक्त बहने लगा तभी द्रोपदी ने साड़ी का टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया.
इसे देखकर श्री कृष्ण भाव से भर गए और उन्होंने द्रोपदी को हर संकट से उबारने और रक्षा करने का वचन दिया. यह दिन पूर्णिमा का ही था और इसी दिन को रक्षा-बंधन के रूप में मनाया जाने लगा.
ऐतिहासिक रूप से भी रक्षा-बंधन को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हारा तो उसकी पत्नी रूख्साना ने भारत में भाई-बहन के संबंध के बारे में सुना था और इसी के आधार पर उसने राजा पुरुषोत्तम को राखी बांध दी.
ऐसे ही एक कहानी मुगलकाल से जुड़ती है जब चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने सम्राट हुमायूं को राखी भिजवाई थी. कहा जाता है कि उसने इस राखी को भिजवाकर बहादुर शाह से रक्षा मांगी थी जो उनके राज्य पर कब्जा करने का प्रयास कर रहा था. खास बात यह है कि अलग धर्म बावजूद हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा का वचन दिया और ऐसे ही रक्षा बंधन का त्योहार शुरू हुआ.
बहरहाल, रक्षाबंधन का पर्व भारतीय परंपरा में रिश्तों की पवित्रता का सबसे सुंदर प्रतीक है. परिवारों में भाई-बहन के विश्वास को बनाता यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन हर साल बहन भाई की कलाई में राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है.
रक्षाबंधन की पूजा और महत्व
इस साल रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का पर्व 15 अगस्त को पूरे देश में मनाया जाएगा. हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन का विशेष महत्व है. हिन्दुओं के चार वर्णों में यह त्योहार विशेष महत्व रखता है. विशेष रूप से पंडित और ब्राह्मण पुरानी जनेऊ का त्याग करते हैं और नई जनेऊ पहनते हैं.
इस पर्व का विशेष महत्व भाई बहन के लिए है. राखी संवेदनाएं और भावनाओं का पर्व है. राखी भाई-बहन के बीच स्नेह, प्यार, निष्ठा, प्रेम और विश्वास का बंधन है. देश के कई हिस्सों में राखी (Rakhi) का अलग-अलग महत्व है.
क्या है (Rakhi) राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
वैसे तो रक्षा का बंधन बांधने का कोई विशेष दिन नहीं होता. लेकिन मान्यताओं के अनुसार दोपहर में राखी बांधी जाए तो बेहतर रहता है. ऐसे ही यदि अपराह्न में ना बंधवा पाएं तो प्रदोष काल में राखी बंधवा सकते हैं. सुबह 5 बजकर 49 मिनट से शुभ मुहूर्त रहेगा जो शाम 6 बजकर 1 मिनट तक रहेगा.
इस बात का खास ध्यान रखें कि भद्र काल के दौरान राखी बांधना अशुभ हो सकता है.
राखी बंधवाने की पूजा विधि
इस दिन भाई की कलाई पर राखी बांधकर बहनें उनकी उनकी लंबी उम्र, संपन्नता और खुशहाली और आरोग्यता की कामना करती है. जबकि दूसरी ओर भाई बहन की रक्षा का वचन देता है और उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उपहार भी देता है. राखी के दिन आप शुभ मुहूर्त देखकर बहनों से राखी बंधवाएं और बहनें शुद्ध भावना और भाई के प्रति निस्वार्थ भावना से उन्हें राखी बांधें.

राखी बांधन के लिए सबसे पहले राखी की थाली सजाएं और इस थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीज, दीपक और राखी रखकर इस थाली को नमन करें और ईश्वर के प्रति सद्भावना जाहिर करें.
एक ऊंचेे स्थान या चौपाई पर भाई को बैठाएं और सबसे पहले भाई को तिलक लगाएं. फिर दाहिने हाथ में राखी बांधें. राखी बांधने के बाद आरती उतारें. फिर अपने भाई मिठाई खिलाएं.
अलग-अलग जगहों की अलग-अलग मान्यताएं हैं और इन्हीं मान्यताओं के आधार पर यदि भाई छोटा है तो उसे आशीर्वाद दें अथवा बड़ा भाई है तो उसका आशीर्वाद लें.
भाई उसके बाद बहन को उपहार दे. कई जगहों पर ब्राह्मण या पंडित जी यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं. इस दिन आप विशेष रूप से भगवान विष्णु के दर्शन करें.
पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव की पत्नी पार्वती ही भगवान विष्णु की बहन है और भगवान श्री गणेश विष्णु के भांजे हैं. इन तीनों ही देवताओं का आशीर्वाद विशेष रूप से लें.
इस दिन अपने माता-पिता का चरण स्पर्श लेकर उनका आशीर्वाद लेना ना भूलें. आप चाहें तो माता-पिता को भी उपहार दे सकते हैं.