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आकाश में 120 डिग्री से 150 डिग्री तक के भाग को सिंह लग्न (singh lagna) के नाम से जाना जाता है. यानि जो जातक आकाश की इस समय सीमा में जन्म लेता है उसकी राशि सिंह (singh rashi) होती है. राशि का तत्व जल है और इनका स्वामी चंद्र है. सिंह राशि के जातक प्रेरक, अत्यधिक कल्पनाशील, वफादार तथा दयालु होते हैं.

कर्क लग्न में चंद्र (kark lagna me chandra)

कर्क लग्न में चंद्रमा बारहवे स्थान का अधिपति होता है. बारहवे स्थान का स्वामी होन के कारण चंद्रमा निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लंपटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण का प्रतिनिधित्व करती है. जन्म कुंडली में इसके बलशाली स्थान पर होने से आपको इन सभी में शुभ फल मिलते हैं. वहीं अगर ये कमजोर स्थान पर है तो आपको उपरोक्त विषय में अशुभ फल मिलेंगे.

कर्क लग्न में सूर्य (kark lagna me surya)

कर्क लग्न में सूर्य पहले भाव का अधिपति होता है. पहले भाव का स्वामी होने के कारण सूर्य शारीरिक रूप, जाति, चिन्ह, आयु, दुख-सुख, विवेक, मस्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, संपूर्ण व्यक्तित्व को तय करता है. अगर कर्क लग्न की कुंडली में सूर्य बलशाली है तो उन्हें उपरोक्त विषय से संबंधित कोई समस्या नहीं होगी बल्कि उन्हें अच्छे फल देखने को मिलेंगे. वहीं अगर सूर्य कमजोर है तो अशुभ फल देखने को मिलेंगे.

कर्क लग्न में मंगल (kark lagna me mangal)

कर्क लग्न में मंगल चौथे तथा नवे स्थान का अधिपति होता है. चौथे स्थान का अधिपति होने के कारण मंगल भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदार, शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल, कपट, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थों का सेवन, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम संबंध जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं मंगल के नवे स्थान के अधिपति होने के कारण यह धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, भाग्योदय, प्रवास, पिता का सुख, दान आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कर्क लग्न में बुध (kark lagna me budh)

कर्क लग्न में बुध ग्यारहवे भाव का अधिपति है. ग्यारहवे भाव का अधिपति होने के कारण बुध लोभ, लाभ गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतति, रिश्तेदार, रिश्वतखोरी, बेईमानी जैसी चीज़ों के लिए जिम्मेदार होता है. कुंडली में अगर आपका बुध बलशाली स्थान पर है तो आपको इन विषयों में शुभ फल मिलेंगे अगर कमजोर है तो अशुभ फल मिलेंगे.

कर्क लग्न में गुरु ((kark lagna me guru)

कर्क लग्न में गुरु पांचवे भाव का अधिपति होता है. पांचवे भाव का अधिपति होने के कारण यह बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, धन मिलने के उपाय, अचानक धन मिलने की संभावना, स्वाभिमान तथा अंहकार का प्रतिनिधित्व करता है.

कर्क लग्न में शुक्र (kark lagna me shukra)

कर्क लग्न में शुक्र तीसरे और दसवे स्थान का अधिपति होता है. तीसरे स्थान का अधिपति होने के कारण शुक्र नौकर-चाकर, सहोदर, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्यूटर, अकाउंट्स, मोबाइल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योगाभ्यास, दासता, आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं दसवे स्थान पर होने के कारण शुक्र राज्य, मान, प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, विदेश यात्रा तथा पैतृक संपत्ति का फल देने का प्रतिनिधित्व करता है.

कर्क लग्न में शनि (kark lagna me shani)

कर्क लग्न में शनि छठे और सातवे स्थान का अधिपति होता है. छठे स्थान का अधिपति होने के कारण शनि मंगल बीमारी, कर्ज, अपमान, शत्रु, चिंता, शंका, पीड़ा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी, साहूकारी का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं सातवे स्थान पर होने के कारण शनि क्ष्मी, स्त्री, कामवासना, चोरी, झगड़ा, अशांति, उपद्रव, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कर्क लग्न में राहु (Kark lagna me raahu)

कर्क लग्न में राहु दूसरे भाव का अधिपति होता है. दूसरे भाव का अधिपति होने की वजह से राहु माता, भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदार, शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल, कपट, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थों का सेवन, संचित धन, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम विवाह, प्रेम संबंध जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कर्क लग्न में केतु (kark lagna me ketu)

कर्क लग्न में केतु आठवे भाव का अधिपति होता है. आठवे भाव का स्वामी होने के कारण केतु व्याधि, जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचारधारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, जेल यात्रा, अस्पताल तथा ऑपरेशन, भूत, प्रेत, जादू जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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