प्रभु की कैसी अद्भुत लीला है कि हर जीव को जीवन से प्यार है व उसमें जीने की प्रबल इच्छा है. मनुष्य को जीवन बहुत प्यारा लगता है. इसी जीवन में सालों तक मौजमस्ती उड़ाने पर भी उसका मन नहीं भरता और इसे छोड़ना नहीं चाहता. सालों तक बिस्तर पर बीमार होकर पड़े रहने वाले का भी जीवन से जी नहीं उकताता.
जीवन का कोई भरोसा नहीं
पवित्रता से जीवन बिताने पर भी इंसान जीवन की समाप्ति नहीं चाहता. पाप पूर्ण जीवन जीने वाला भी मरना नहीं चाहता. जीवन अमूल्य है. इसका मोल कौन डाल सकता है. हजारों, लाखों मन सोना दान करने पर भी जीवन खरीदा नहीं जा सकता. ढेरों के ढेर हीरे और मोती दान करने पर भी बीता हुआ एक पल वापस नहीं आ सकता परंतु यही जीवन नश्वर व क्षण भंगुर है और इस ओर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है.
कितनी अजीब बात है कि आज तक समस्त जीवों में ऐसा कोई वैज्ञानिक, डॉक्टर, अवतार, प्रभु भक्त, राजा, महाराज, पीर फकीर या संत पैदा नहीं हुआ जो मुत्यु पर विजय पा सके. रावण जैसे महाप्रतापी शक्तिशाली वैभव सम्पन्न भी मौत के मुंह से नहीं बच सका और जीवों की बात ही क्या है. मौत सब को खा गई.
आकाश की चाल बड़ी टेढ़ी है. इसको कोई भी मनुष्य आज तक न भांप सका और न ही अनुमान लगा सका. न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो. किसी को पता नहीं कि मौत का देव किस वक्त और किस जगह अपनी अमानत वापस ले ले. एक खास बात और भी है कि आयु कितनी भी लंबी हो, आदमी का मन नहीं भरता.
क्या कहते हैं संत और विद्वान
किसी विद्वान ने बड़ा सुन्दर कहा है ’मृत्यु है एक नदी है, जिसमें श्रम से कातर जीव नहा कर. नूतन वस्त्रा है धारण करता, काया रूपी वस्त्र बहा करे. तभी तो एक संत कहते हैं कि जब कोई हमारा प्यारा हम से बिछुड़ता है तो हमें बिना आंसू बहाए उसको विदा करना चाहिए. हमें तो उसका उपकार मानना चाहिए कि उसने इतने समय हमारे साथ रहकर अपनी कृपा व स्नेह से हमें लाभान्वित किया. इससे उसकी दूसरी दुनियां की यात्रा ज्यादा आसान हो जायेगी और वह इस नाशवान शरीर से अलग रह कर भी हमारा समय समय पर मार्गदर्शन व शुभ करता रहेगा.
दूसरा यह सोचना चाहिये कि उस नेक आत्मा की किसी दूसरे स्थान पर ज्यादा बढि़या काम करने की आवश्यकता होगी. वैसे यह बात भी सत्य है कि जीवनकाल सब का पहले से निर्धारित रहता है और अच्छे आदमी ज्यादा नहीं जीते.
गीता है सुखों की चाभी
जीवन का मोह और मृत्यु का भय मिटाने के लिए गीता से श्रेष्ठ और उत्तम कोई ग्रंथ नहीं है. गीता का उपदेश भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरूक्षेत्रा की युद्ध भूमि में उस समय दिया जब वह मोहग्रस्त और भयाक्रान्त हो गया था. सर्वप्रथम भगवान कृष्ण ने जीवन की क्षण भंगुरता, शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का संदेश दिया. तत्पश्चात अर्जुन को निष्काम कर्म करने, समता का भाव अपनाने, अनुचित काम वासना को मारने और संयम में रहकर अपने धर्म पर हद रहने का उपदेश दिया. इसके साथ ही युक्त आहार-विहार, युक्त चेष्टा, युक्त सोने और जागने पर भी बल दिया और कहा कि हर समय प्रभु स्मरण भी करते रहना चाहिए.
भक्ति की ताकत
भक्ति भाव से विचार शुद्ध होते हैं, मन में पवित्रता आती है, अहम का नाश होता है और बुराई से बचाव होता है. अन्ततः अर्जुन का मोह भंग हो गया और वह भयमुक्त हो गया. स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारी गीता से प्रेरणा लेकर अभय हो गये थे और जीवन का मोह त्याग कर हंसते हंसते देश पर बलिदान हो गए.