Wed. Oct 9th, 2024
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गिद्धों की पहचान एक अपमार्जक यानी की सफाई करने वाले पक्षी के रूप में है. दुनिया भर में गिद्ध की कुल 22 प्रजातियां पाई जाती हैं और भारत में पांच प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं. इनमें भारतीय गिद्ध (Gyps indicus), लंबी चोंच वाला गिद्ध (Gyps tenuirostris), लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps calvus), बंगाल का गिद्ध (Gyps bengalensis) और सफेद गिद्ध (Neophron percnopterus) शामिल हैं.

सफाई पसंद पक्षी हैं गिद्ध 

गिद्ध की चोंच लंबी और अंकुशनुमा होती है, जिससे वे मृत जानवर के शव को नोचकर खाने के बाद भी स्वच्छ रहते हैं. गिद्ध खाने के तुरंत बाद नहाना पसंद करते हैं. ताकि खाने के दौरान शरीर पर लगे रक्त को धो सकें और कई बीमारियों से भी बच जाते हैं.

5 से 10 किलो होता है वजन 

गिद्ध बड़े कद के पांच से दस किलो वज़न वाले पक्षी होते हैं. यह गर्म हवा के स्तम्भों पर विसर्पण द्वारा सकुशल उड़ान भरने में सक्षम होते हैं. आसमान की ऊंचाई से उनकी तीक्ष्ण दृष्टि भोजन हेतु जानवरों के शव ढूंढ लेती है. गिद्धों के सिर व गर्दन पंख विहीन होते हैं.

40 साल तक जी सकते हैं गिद्ध 

गिद्ध चार से छ: वर्ष की आयु में प्रजनन योग्य वयस्क पक्षी बन जाते हैं और इनकी आयु 37-40 वर्ष की होती है. पक्षीविदों के अनुसार पृथ्वी के सभी भागों में गिद्धों की संख्या स्थिर बनी हुई थी किंतु लगभग 10-15 वर्ष पूर्व से दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में इनकी संख्या में तीव्र गिरावट आनी शुरू हुई.

लुप्त हो रही है प्रजाति 

गिद्ध की कई प्रजातियां आज लुप्त होने की कगार पर हैं. एक अनुमान के मुताबिक 1952 से आज तक इस पक्षी की संख्या में 99 प्रतिशत कमी हुई है. कुछ वर्षों पहले तक प्राय: हर स्थान पर, जहां किसी पशु का मृत शरीर पड़ा रहता था, वहां शव भक्षण करते गिद्ध हम सभी ने देखे हैं.

कई बीमारियों से बचाते हैं गिद्ध 

प्रसिद्ध पक्षीविद डॉक्टर सालिम अली ने अपनी पुस्तक ‘इंडियन बर्ड्स’ में गिद्धों का वर्णन सफाई की एक कुदरती मशीन के रूप में किया है. गिद्धों का एक समूह एक मृत सांड को मात्र 30 मिनट में साफ कर सकता है. अगर गिद्ध हमारी प्रकृति का हिस्सा न होते तो हमारी धरती हड्डियों और सड़े मांस का ढेर बन जाती.

गिद्ध मृत शरीरों का भक्षण कर हमें कई तरह की बीमारियों से बचाते हैं. गिद्धों की तेज़ी से घटती संख्या के साथ हम अपने पर्यावरण की खाद्य कड़ी के एक महत्वपूर्ण जीव को खोते जा रहे हैं, जो हमारी खाद्य श्रृंखला के लिए बेहद घातक है.

क्यों घट रही है गिद्धों की संख्या 

साल 1950 और 60 के दशक में धारणा थी कि पशुओं के मृत शरीर में डीडीटी का अंश बढ़ने के कारण डीडीटी गिद्धों के शरीर में भी पहुंच रहा है और इस कारण उनके अधिकांश अंडे परिपक्व होने से पूर्व ही टूट जाते हैं. यह धारणा कालांतर में त्याग दी गई, क्योंकि अन्य पक्षियों में इस तरह का कोई असर नहीं देखा गया.

कुछ विशेषज्ञों का मत था कि गिद्धों पर किसी विषाणु का आक्रमण होने से वह सुस्त हो जाते हैं. इसी कारण गिद्ध अपने शरीर का तापमान कम करने ऊंची उड़ान भरकर ठंडक प्राप्त नहीं कर पाते हैं. क्यों कि विषाणु गिद्धों के शरीर में सुस्ती भर देते हैं. ऐसे में बढ़ते तापमान व शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इससे यूरिक एसिड के सफेद कण इनके ह्रदय, लीवर, किडनी में जम जाते हैं और इनकी मृत्यु हो जाती है.

डायक्लोफेनेक बन रही मौत का कारण 

आधुनिक व संघन अनुसंधान से पता चला है कि पशु चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली डायक्लोफेनेक औषधि गिद्धों की संख्या में कमी का मुख्य कारण है. पशु उपचार डायक्लोफेनेक से करने पर उस पशु के शव गिद्ध द्वारा खाए जाने पर उसके मांस के माध्यम से डायक्लोफेनेक औषधि गिद्ध के शरीर में प्रवेश कर विषैला प्रभाव डालती है.

डायक्लोफेनेक से गिद्धों के गुर्दे में गाउट नामक रोग हो जाता है, जो कि गिद्धों के लिए प्राण घातक होता है. खैर कारण चाहे जो भी हो, गिद्धों की संख्या कम होना वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है. यदि यह क्रम जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्ध भी डोडो की तरह केवल पुस्तकों में ही सीमित होकर रह जाएंगे.

गिद्ध संरक्षण के लिए हो प्रयास 

गिद्धों का संरक्षण व उनकी संख्या में वृद्धि के प्रयासों में जीवित गिद्धों का वृहद स्तर पर सर्वे, बाड़ों में रखकर प्रजनन व उसकी सहायता से गिद्धों का पुनर्वास किया जाना बेहद ज़रूरी है. इन सबसे भी अधिक महत्वपूर्ण कदम है डायक्लोफेनेक औषधि पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया जाना शामिल है.

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी जैसे कुछ संगठनों के अथक प्रयासों से इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता भी हासिल हुई है. भारतीय औषधि महानियंत्रक ने सभी राज्यों में पशु-चिकित्सा में डायक्लोफेनेक औषधि पर प्रतिबंध के निर्देश दिए हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्राकृतिक सफाईकर्मी को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा. (स्रोत फीचर्स)

(नोट: यह लेख आपकी जागरूकतासतर्कता व समझ बढ़ाने के लिए साझा किया गया है. अधिक जानकारी के लिए आप किसी पक्षीविद से सलाह जरूर लें.)

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