आईपीएल विशुद्ध रूप से क्रिकेट का धंधा है. मनोरंजन के नाम पर लूटा जाने वाला पैसा. मानवीय संवेदनाओ की कमी और इसी कमी के चलते धंधेबाजों ने अपनी जेबें भरी है. धंधेबाजों के लिए संवेदनाएं दो कोड़ी की चीज है. निश्चित रूप से ऐसे आयोजन के प्रेमियों को यह बात कड़वी लगेगी, अगर सचमुच कड़वी लगेगी तो संवेदना से भरे हुए व्यक्ति को भी यह कड़वा नहीं बल्कि असहनीय लगता है कि जहां पानी की एक बूंद के लिए लोग तरस रहे हैं, वहां आईपीएल जैसे आयोजन में टनों लीटर पानी बहा दिया जा रहा है, जो पानी लोगों की प्यास बुझाने के लिए होना चाहिए वो खरीदे गए खिलाड़ियों के पैरों तले कुचल दिए जाने वाले मैदानों को हरा भरा रखने के लिए बहाया जाना है.
लानत है, उन्हें जो सब जानते बूझते भी अपने कुतर्कों के सहारे मैच खिलाए जाने के पीछे पड़े हैं और अदालत में अपने पक्ष में दलील रखते हैं. जबकि होना तो यह चाहिए था कि मामला अदालत जाता ही नहीं और मानवीयता के मद्देनजर आईपीएल के मैचों को स्थानांतरित कर दिया जाता. कितने विवेकशून्य और पत्थर दिल बन चुके हैं धंधेबाज जिनके तर्क सुनकर भावनाएं हों या आदमीयत अपने आंसू बहा देती है और ये ऐसे लोग हैं जो उन आंसुओं को भी अपने धंधे के लिए मैदान पर बहाकर पैसा लूट लें.
आईपीएल के तीन मैच महाराष्ट्र में खेले जाने हैं. महाराष्ट्र में पहले ही किसानों की आत्महत्याओं से घर -परिवार के लोगों के बहते हुए आंसू रो रो कर सूख रहे हैं, वहीं प्रकृति ने भी सूखे की ऐसी मार लगाई है कि लातूर जैसे इलाको में पानी की एक बूंद के लिए लोग तरस रहे हैं. ऐसे में आईपीएल के मैचों के लिए मैदान बनाने में कई लीटर पानी की जरूरत है और ये पानी खरीद कर मैदान में बहाया जाना है. यह सब तय भी हो चुका है और आईपीएल ने अपने इंतजामात कर रखे हैं. ठीक है कि देश दुनिया में कई तरह की समस्याओं के बावजूद कई तरह के आयोजन व कार्यक्रम होते रहते हैं और होते भी रहना चाहिए. यकीनन आप किसी की मृत्यु पर किसी के घर पैदा हुए बच्चे का उत्सव रोक नहीं सकते किन्तु आप उस उत्सव को मातम के बीच तो मनाना नहीं ही चाहेंगे. इतनी अक्ल और इतनी संवेदना तो एक सामान्य से व्यक्ति में भी होती है.
क्या आईपीएल के मैचों को दूसरे राज्यों में जहां पानी की समस्या ऐसे विकराल रूप में नहीं है , वहां नहीं कराये जा सकते? जब आईपीएल को उठाकर विदेश में कराया जा सकता है, तो महाराष्ट्र से हटाकर दूसरे राज्य में कराने में तकलीफ क्या ? क्या आईपीएल जख्मों पर नमक छिड़क कर ही नमकीन होना चाहता है?
अगर ऐसा नहीं तो क्यों आईपीएल के अध्यक्ष राजीव शुक्ला अपने बेतुके तर्क देकर लोगो को गुमराह करने का प्रयास करते हैं कि यदि दो-तीन मैदानों के लिए जरूरी पानी से महाराष्ट्र के किसानों की समस्या हल हो जाएगी तो अलग बात है, मुझे नहीं लगता कि इससे (मैचों के स्थान बदलकर पानी बचाने से ) कोइ लाभ होगा. राजीव शुक्ला बोतल बंद पानी पीने वाले ठहरे और उन्हें पानी का मोल क्या होता है शायद ज्ञात नहीं है. पानी बचाने के विज्ञापन की अगर कोइ सार्थकता हो सकती है, तो महाराष्ट्र में मचे हाहाकार को देखते हुए वह अत्यावश्यक है.
बहरहाल, तर्क-वितर्क के पश्चात् अदालत का जो फैसला आए और जैसा भी हो मान्य है, किन्तु आईपीएल के मैचों में पानी बहते देख उन सूखे और प्यासे गलों के लिए फांस होगा जिनके लिए पानी की एक बूंद अमृत सी प्रतीत होती है.