कृषि बिल (Agriculture bill 2020) को लेकर किसान किसी प्रकार के समझौते के मूड में नहीं है. दिल्ली में कृषि कानून 2020 को ही रद्द करने की मांग के साथ डेरा डाले किसानों के 35 प्रतिनिधि मंडल और सरकार के बीच 01 दिसंबर को बातचीत एक तरह से बेनतीजा ही रही.
मोदी सरकार (Modi government on farmers protest) कमेटी बैठाकर संतुलन बनाना चाहती है जबकि किसान स्थायी हल चाहते हैं, ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह आंदोलन कोरोना काल के बीच सरकार के लिए नई चुनौती बनकर आया है?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कल यानी महीने की पहली ही तारीख को विज्ञान भवन में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच बातचीत में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) और रेलवे और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल (Piyush Goyal) और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश (जो पंजाब के एक सांसद भी हैं) मौजूद थे.
केंद्र को उम्मीद थी कि बातचीत के बीच स्पष्ट बोलने वाले तोमर, लेकिन टेबल पर समाधान निकालने में माहिर माने जाने वाले पीयूष गोयल संभवत: किसानों को सरकार की मंशा समझाने में सफल होंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
मांगें जिन पर अड़े हैं किसान
घंटों चली इस बातचीत में किसान की कृषि कानून ही रद्द करने की मांग कर रहे हैं. किसान मानते हैं कि मोदी सरकार का यह कानून किसानों के हितों की अनदेखी करके उनकी मुसीबतें और बढ़ा देगा. किसान इस बात को समझ रहे हैं कि कमेटी का आश्वासन इस पूरे मसले को टालने के लिए बढ़ाया हुआ कदम है और वह किसी भी सूरत में इसे स्वीकार नहीं करेंगे.
आंदोलन से बढ़ी आम लोगों की मुसीबत, दबाव और बढ़ा
इस बीच सरकार की एक कोशिश यह भी है कि किसान आंदोलन कहीं शाहीन बाग में CAA के खिलाफ चले आंदोलन की तरह दो माह जितना लंबा ना चले, क्योंकि किसान आंदोलन के लिए लंबी तैयारी के साथ आए हैं. किसानों के पास कई दिनों का राशन पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं और अन्य चीजे हैं जिससे वे यहां लंबे समय तक रह सकते हैं. किसान आंदोलन से अब आने-जाने वाले सामान्य नागरिकों की समस्या भी बढ़ती दिख रही है.
सिंघु बॉर्डर पहले से ही जाम है और मंगलवार को यूपी के एक किसानों का एक जत्था दिल्ली नोएडा बॉर्डर पर पहुंच गया. ट्रैक्टर ट्रॉली से आए किसानों ने इस रास्ते को जाम कर दिया है. बॉर्डर बंद हो जाने से दिल्ली नोएडा लिंक पर भी जाम रहा. मयूर विहार, त्रिलोकपुरी, एनएच-9, डीएनडी, विकास मार्ग के अलावा कई रिहायशी इलाके एक तरह से पैक हो गए. बहरहाल, जाम के अलावा भी कोरोना काल में आंदोलन सरकार, प्रशासन के लिए नई चुनौती बन रहा है.
आंदोलन जारी रहा तो बढ़ेंगी सरकार की टेंशन
कोरोना महामारी की मुसीबत के बीच किसान आंदोलन सरकार के लिए नई चुनौती बनकर आया है. साल कोरोना में उलझी रही सरकार पहले की आर्थिक मोर्चे पर जूझ रही है, कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ा ही है और ऊपर से साल के जाते-जाते यानी दिसंबर में माह किसानों का यह रवैया अब तो पूरे एनडीए के लिए ही टेंशन बन रहा है.
इस बीच मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अगली किसानों के साथ 3 दिसंबर को होना है, जाहिर है इस बैठक में जहां किसान अपनी रणनीति के साथ शामिल हो सकते हैं वहीं सरकार के लिए कोशिश समाधान निकालने की होगी.
मोदी सरकार के लिए किसान आंदोलन को रोकना एक सबसे जरूरी कदम होगा. आंदोलन को पहले ही छह दिन हो चुके हैं और ऊपर से एक बातचीत एक तरह फेल हो चुकी है. विज्ञान भवन में आयोजित किसानों से बातचीत में सरकार को भी यह समझ आया होगा कि किसानों को संतुष्ट करना आसान नहीं होगा.
सबसे अहम बात है कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, कोरोना से निपटने में स्वयं ही आत्मविश्वास दिखाने की उपलब्धि से भरी सरकार के लिए किसान आंदोलन उसकी छवि को नुकसान ना पहुंचा दे.
बनारस में देव दिपावली के अवसर पर पहुंचे पीएम मोदी ने किसान आंदोलन पर बोलकर इशारों-इशारों समझाइश भी दी है, कांग्रेस पर निशाना भी साधा है.
देखा जाए तो दिल्ली में चल रहे इस आंदोलन को लेकर सरकार भी जल्द ही समाधान चाहती है क्योंकि विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है, यदि सरकार आंदोलन रोकने में जल्द ही सफल नहीं होती है कोरोना महामारी के बीच चुनौतियां बढ़ेंगी ही.
जाहिर है करोड़ों लोगों को कोरोना की वैक्सीन पहुंचाने का कार्य सरकार के लिए सबसे अहम और अनिवार्य भी है.