भारत के पूर्वी तट पर स्थित उड़ीसा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ का मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. यह ऐतिहासिक मंदिर हिन्दुओं के चार धाम में से एक प्रमुख स्थान है. वैष्णव सम्प्रदाय के मंदिर के रूप में इस मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पूजा होती है. यहां भगवान श्री कृष्ण को जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है. श्री कृष्ण यहां अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजित हैं.
जगन्नाथ पुरी और गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय
वैसे तो पूरे भारत में कई कृष्ण मंदिर हैं लेकिन पुरी का यह जगन्नाथ मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा है. यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय का सबसे प्रमुख तीर्थस्थल है और खास महत्व रखता है. इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु थे और वे भगवान की सेवा और भक्ति के लिए कई साल पुरी में रहे.
14 जुलाई को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
पुरी की रथयात्रा गौड़ीय संप्रदाय के लिए ही नहीं बल्कि हर हिंदू के लिए खास महत्व की है. हर साल इस रथयात्रा में मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और भगिनी सुभद्रा अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में नगर की यात्रा पर निकलते हैं.
यह रथ लकड़ी के बने होते हैं. जगन्नाथजी का रथ ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ बलराम जी का रथ ‘तलध्वज’ और सुभद्रा जी का रथ “देवदलन” व “पद्मध्वज’ से शोभित होता है.
यह यात्रा इस साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया 14 जुलाई से शुरू हो रही है. रथ यात्रा का यह त्योहार पूरे 9 दिन तक जोश और उल्लास के साथ मनाया जाएगा. मान्यता है कि जो लोग इस रथ यात्रा में रथ को खींचते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
भगवान जगन्नाथ की पूजा का महत्व
श्री कृष्ण के अन्य रूपों की तुलना में भगवान जगन्नाथ का एक अलग महत्व है. यहां गैर-हिन्दू प्रवेश नहीं कर सकते. टूरिस्ट भी मंदिर के प्रांगण में घूमकर और वहां आयोजनों को ही देख पाते हैं. भगवान जगन्नाथ की पूजा का भी यहां खास महत्व है.
भगवान जगन्नाथ की पूजा विधि
भगवान की पूजा करते समय सबसे पहले जगन्नाथ स्तोत्र का पाठ करें. इसमें पहले घी का दीपक, पुष्प अक्षत्र और धूप अगरबत्ती और भोग लगाकर भगवान को प्रणाम करें.
जगन्नाथ स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों के जीवन से कष्ट दूर होते हैं, जीवन में आर्थिक तंगी दूर होती है और रोग-शोक और संताप मिटते हैं.