Tue. Oct 8th, 2024
Ryan school abuse incident, Child-abuse in India and society (Image Source: Pixabay.com)
Ryan school abuse incident, Child-abuse in India and society (Image Source: Pixabay.com)
Ryan school abuse incident, Child-abuse in India and society (Image Source: Pixabay.com)
भारत में बाल अपराध और समाज (फोटो साभार: Pixabay.com)

गुड़गांव के रायन इंटरनेशनल स्कूल के बाथरूम में मासूम प्रद्युम्न की हत्या ने देश के लाखों मां-बाप को सोचने पर मजबूर कर दिया है. उनका बच्चा अब स्कूल में भी सुरक्षित नहीं है. सामाजिक और नैतिक मूल्यों में तेजी से आती गिरावट ने कई सवाल खड़े किए हैं. कभी स्कूलों में बलात्कार, कभी सवालों का जवाब न देने पर निर्मम पिटाई के साथ कभी सेप्टिक टैंक में गिर कर मासूमों की मौत, स्कूलों बसों की रेलों से भिड़त और बढ़ते सड़क हादसों में बेकसूर मासूमों की मौत? आखिर क्यों? इस तरह की घटनाएं कम होने के बजाय तेजी से बढ़ रही हैं जबकि कानूनी संरक्षण के लिए बनी संस्थाएं बौनी हो रही हैं.

मासूम बच्चों के साथ बढ़ती यौनिक हिंसा सोचने पर मजबूर करती है. मां-बाप अपनी भविष्य की उम्मीद को पढ़ने-खिलने के स्कूल भेजते हैं, लेकिन वहां से हंसते-मुस्कुराते लौटने के बजाय मासूमों की मौत का पैगाम पहुंचता है. यह स्थिति सिर्फ गुड़गांव की त्रासदी नहीं, पूरे भारत की है. गुड़गांव की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि दिल्ली के एक स्कूल में मासूम बच्ची के साथ चपरासी ने बलात्कार किया. इसी तरह मुंबई में जुलाई में स्कूल जाते समय दो लड़कों को यौनिक हिंसा का शिकार बनाया गया था, जिसका असर यह हुआ कि दोनों ने बच्चों ने पवई लेक के पास पेप्सी में जहर मिला कर निगल लिया और उनकी मौत हो गई. मुंबई में 2012 में पास्को एक्ट के तहत सिर्फ दो मामले दर्ज हुए थे, लेकिन 2016 में इस तरह के 680 मामले दर्ज हुए. सोचिए हमारा समाज और हम कहां जा रहे हैं.

भारत में 2012 तक मासूमों के खिलाफ 38,172 यौन हिंसा की घटनाएं हुई थीं, जो दो साल बाद 2014 में बढ़कर 89,423 तक पहुंच गई. देश में मासूम बच्चों के साथ यौनिक हिंसा की घटनाएं दुनिया के दूसरे देशों से अधिक होती है. 16 साल की कम उम्र के बच्चों के साथ हर 155 मिनट में एक बलात्कार होता है जबकि 10 साल के बच्चों के साथ हर 13 घंटे में बलात्कार होता है. 2007 में बाल अधिकारों पर काम करने वाली एक संस्था ने चौंकाने वाला खुलासा किया था. संस्था की तरफ से जुटाए गए आंकड़ों में यह कहा गया था कि तीन बच्चों में दो बच्चे शारीरिक हिंसा का शिकार होते हैं, जबकि हर दूसरा बच्चा भावनात्मक हिंसा का शिकार है. 69 फीसदी बच्चों के साथ शारीरिक हिंसा हुई जिसमें 54 फीसदी से अधिक बच्चे लड़के थे. परिवार में बच्चों के साथ 88 फीसदी शारीरिक और 83 फीसदी भावनात्मक हिंसा होती है.

53 फीसदी बच्चे यौन हिंसा झेलते हैं. भारतीय समाज में बढ़ती यौन हिंसा की विकृति कड़े कानून बनाने की मांग करने लगी है. अपराधों की जघन्यता को देखते हुए पूर्व में बने कानून इसे रोकने में नाकाम रहे हैं जिसकी वजह है कि समाज में इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं जिसका फैसला भीड़ खुद सुनाने लगी है. गुड़गांव की घटना के बाद आक्रोशित अभिभावकों की भीड़ हिंसा पर उतर आयी और उसने शराब की दुकान में आग लगा दी.

हरियाणा के रायन स्कूल में हुए इस हादसे से स्कूलों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल उठा है. इस घटना के बाद गठित एसआईटी की जांच में सुरक्षा को लेकर तमाम खामियां सामने आई है, जिसमें स्कूल में लगे सीसी टीवी कैमरे खराब थे. बाथरूम कॉमन था जहां स्कूली बच्चे और स्टाफ उसका उपयोग कर रहा था. स्कूल की दिवालें मानक के अनुसार नहीं बनाई गई है. जांच में यहां तक खुलासा हुआ है कि स्कूल स्टाफ के रखने में पुलिस वैरीफिकेशन नहीं कराया गया.

गुड़गांव देश का सबसे आधुनिक शहर है जहां यह स्कूल स्थापित है. अभिभावकों से मोटी फीस लेने वाले स्कूल प्रबंधन द्वारा सुरक्षा मानकों की अनदेखी क्यों की गई. हालांकि स्कूल के दो अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन यह सब हादसे से पहले क्यों नहीं किया गया. प्रद्युम्न के मां-बाप के साथ पूरा देश सदमे में है. एक भोला मासूम बेवजह विकृत मानसिकता का शिकार हुआ.

इस तरह के अपराधों के खिलाफ अमेरिका, पोलैंड और रूस में कड़े कानून हैं, जहां ऐसा कृत्य करने वाले व्यक्ति को नपुंसक बनाने का प्रावधान है. मद्रास हाईकोर्ट ने बढ़ते बाल अपराधों को देखते हुए कुछ साल पूर्व सरकार से इस तरह का कानून बनाने की सिफारिश की थी, जिसमें कहा गया था कि इस मनोवृत्ति के शिकार व्यक्ति को नपुंसक बना दिया जाना चाहिए. सुप्रीमकोर्ट भी इस पर अपनी राय प्रगट करते हुए कहा चुकी है कि इस तरह की प्रवृत्ति के लोग पशु हैं. अब वक्त आ गया है जब इस पर और अधिक कड़े कानून बनने चाहिए. मासूम बच्चे देश की भविष्य हैं. उनका भविष्य हर हाल में सुरक्षित होना चाहिए. 

समाज में बढ़ती यौनहिंसा की प्रवृत्ति का कारण गंदी मानसिकता भी है. इस तरह की विकृति मानसिकता के लोग मौजूद हैं, जिनके दिमाग में हर वक्त सेक्स जैसी घृणित मानसिकता मौजूद रहती है जिसकी वजह है कि इस तरह की घटनाएं हमारे आसपास तेजी से बढ़ रही हैं. हालांकि सभ्य समाज में नपुंसक बनाने वाला कानून बर्बर हो सकता है, मानवाधिकारवादी संगठन इसे वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से जोड़ सकते हैं, लेकिन इसी सभ्य समाज में जब इस तरह के घृणित अपराध को अंजाम दिया जा रहा है तो उसका जवाबदेह कौन होगा. इस पर भी हमें सोचना होगा.

हम सिर्फ कानून, टीवी डिबेटों और दूसरे माध्यमों से मासूमों के भविष्य को सुरक्षित नहीं रख सकते हैं. अत्याधुनिक और प्रगतिशील विचारधारा की ढोल पीटना हमें बंद करना होगा. केंद्र और राज्य सरकारों को गुड़गांव की घटना को गंभीरता से लेना चाहिए. निजी और सरकारी स्कूलों में सुरक्षा मानकों की जांच की जानी चाहिए जिससे मासूम बच्चों को इस तरह के यौनिक और दूसरी हिंसा से बचाया जाए. यह सरकारों का नैतिक दायित्व है कि इस अनैतिकता पर प्रतिबंध लगाया जाए. सुरक्षा मानकों पर खरे न उतरने वाले स्कूलों और कॉलेजों को बंद किया जाए जिससे भविष्य में होने वाली इस तरह की घटनाओं पर समय रहते कदम उठाया जाए.

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