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विज्ञान और प्रकृति के बीच लुकाछिपी का खेल सदियों पुराना है. मनुष्य ने विज्ञान के बूते प्रकृति के उन असंभव रास्तों को संभव बनाया है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी. लुई ब्रदर्स की हवा में उड़ान, थॉमस एडिसन द्वारा लाइट का अविष्कार, जेम्स वॉट का भाप का इंजन और अल्बर्ट आंइस्टाइन के दुनिया को बदलने देने वाले अविष्कार.

टेस्ट ट्यूब शिशु के चालीस साल

विज्ञान मानव सभ्यता के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं हुआ. खगोल विज्ञान, टेक्नॉलॉजी, मैकेनिज्म और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्रों में साइंस ने ऐतिहासिक प्रगति की. लेकिन दुनिया के लिए सबसे आश्चर्यजनक रहा टेस्ट ट्यूब में हुबूह वैसे का वैसा इंसान पैदा कर देना जिसके लिए किसी स्त्री का केवल सहारा भर लिया गया.

टेस्ट ट्यूब बेबी की सफलतम 40 साल की यात्रा मनुष्य सभ्यता के इतिहास में विज्ञान की सर्वाधिक अनोखी कहानी है.

दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी

लुईस ब्राउन वह पहली बच्ची थी जिसका जन्म टेस्ट ट्य़ूब बेबी नाम से लोकप्रिय टेक्नॉलॉजी के ज़रिए हुआ था. आज वह 40 वर्ष की है और उसके अपने बच्चे हैं.

एक मोटे-मोटे अनुमान के मुताबिक इन 40 वर्षों में दुनिया भर में 60 लाख से अधिक ‘टेस्ट ट्यूब बच्चे’पैदा हो चुके हैं और कहा जा रहा है कि वर्ष 2100 तक दुनिया की 3.5 प्रतिशत आबादी टेस्ट ट्यूब तकनीक से पैदा हुए लोगों की होगी. इनकी कुल संख्या 40 करोड़ के आसपास होगी.

Image source: louisejoybrown.com
Louise Brown firts test tube baby of world. Image source: louisejoybrown.com.

 

 

कैसे होता है टेस्ट ट्यूब बेबी

वैसे इस तकनीक का नाम टेस्ट ट्यूबबेबी प्रचलित हो गया है किंतु इसमें टेस्ट ट्यूब का उपयोग नहीं होता. किया यह जाता है कि स्त्री के अंडे को शरीर से बाहर एक तश्तरी में पुरुष के शुक्राणु से निषेचित किया जाता है और इस प्रकार निर्मित भ्रूण को कुछ दिनों तक शरीर से बाहर ही विकसित किया जाता है. इसके बाद इसे स्त्री के गर्भाशय में आरोपित कर दिया जाता है और बच्चे का विकास मां की कोख में ही होता है.

क्या है टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक

इस तकनीक को सफलता तक पहुंचाने में ब्रिटिश शोधकर्ताओं को काफी मेहनत करनी पड़ी थी. भ्रूण वैज्ञानिक रॉबर्ट एडवड्र्स ने अंडे का निषेचन शरीर से बाहर करवाया, जीन पर्डी ने इस भ्रूण के विकास की देखरेख की और स्त्री रोग विशेषज्ञ पैट्रिक स्टेपटो ने मां की कोख में बच्चे की देखभाल की थी.

लेकिन प्रथम शिशु के जन्म से पहले इस टीम ने 282 स्त्रियों से 457 बार अंडे प्राप्त किए, इनसे निर्मित 112 भ्रूणों को गर्भाशय में डाला, जिनमें से 5 गर्भधारण के चरण तक पहुंचे. आज यह एक ऐसी तकनीक बन चुकी है जो सामान्य अस्पतालों में संभव है.

क्यों उठते रहे टेस्ट ट्यूब बेबी पर सवाल

बहरहाल, इस तरह प्रजनन में मदद की तकनीकों को लेकर नैतिकता के सवाल 40 साल पहले भी थे और आज भी हैं. इन 40 सालों में प्रजनन तकनीकों में बहुत तरक्की हुई है.

हम मानव क्लोनिंग के काफी नज़दीक पहुंचे हैं, भ्रूण की जेनेटिक इंजीनियरिंग की दिशा में कई कदम आगे बढ़े हैं, तीन पालकों वाली संतानें पैदा करना संभव हो गया है.

सवाल यह है कि क्या इस तरह की तकनीकों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो ऐसे परिवर्तन करती है जो कई पीढ़ियों तक बरकरार रहेंगे. कहीं ऐसी तकनीकें लोगों को डिज़ायनर शिशु (यानी मनचाही बनावट वाले शिशु) पैदा करने को तो प्रेरित नहीं करेंगी?

(स्रोत फीचर्स)

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