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नवरात्रि भारत में धूमधाम से (why is navratri celebreted) मनाया जाने वाला त्योहार है. नवरात्रि के नौ दिनों (nind days of navratri) में मांं दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, इसलिए इसे नवदुर्गा (navdurga) भी कहते हैं. नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है. इन सभी रूपों का अपना महत्व (navratri importance) और अपनी कहानी (navratri story) है.

नवरात्रि का प्रथम दिन प्रतिपदा (navratri first day) कहलाता है और इस दिन माता शैलपुत्री (navratri mata shailputri) की पूजा-अर्चना की जाती है. मांं शैलपुत्री की कहानी (mata shailputri story in hindi) भी काफी रोचक है जिसे हर भारतीय को जानना चाहिए.

मांं शैलपुत्री

मांं दुर्गा के नौ रूपों में से पहला रूप मांं शैलपुत्री (first day maa shailputri) के नाम से जाना जाता है. मांं शैलपुत्री पर्वत राज हिमालय के घर में जन्मी थी जिसके कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ रखा गया गया. नवरात्रि में इन्हीं की उपासना से योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी साधना की शुरुवात होती है.

मांं शैलपुत्री का श्रंगार (maa shailputri ornament)

मांं शैलपुत्री का वाहन वृषभ है. इनके दाहिने हाथ एन त्रिशूल सुशोभित है तो बाहिने हाथ में कमल सुशोभित है.

मांं शैलपुत्री श्लोक (maa shailputri shlok)

वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||

मांं शैलपुत्री की कथा (Maa shailputri story in hindi)

मांं शैलपुत्री की कथा काफी रोचक है. मांं शैलपुत्री की कहानी की शुरुआत उनके पूर्वजन्म से होती है. वे पूर्व जन्म में माता सती थीं. उन्होने भगवान शिव से विवाह किया था. एक बार उनके पिता प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया और उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया.

माता सती ने जब पिता द्वारा कराये जा रहे विशाल यज्ञ के बारे में सुना तो उन्होने भगवान शिव को वहांं जाने की इच्छा जाहिर की. भगवान शिव ने काफी सोच-विचार किया और माता सती से कहा की प्रजापति दक्ष किसी कारण हमसे नाराज हैं. उन्होने सभी देवी-देवताओं को यज्ञ में आमंत्रित किया लेकिन हमें नहीं किया. ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना उचित नहीं होगा.

माता सती की मृत्यु कैसे हुई? (Mata sati death)

भगवान शिव के समझाने पर भी जब माता सती नहीं मानी तब भगवान शिव ने उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा दे दी. अपने घर पहुँचकर सती ने देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बात नहीं कर रहा है. सारे लोग उनसे मुह फेरे हुए हैं. उनकी बहने भी उनसे व्यंग्य और उपहास के भाव में बात कर रही थीं. केवल उनकी माता ही उनसे स्नेह से बात कर रहीं थी. उन्होने माता सती को स्नेह से गले भी लगाया.

वहांं के लोगों ने भगवान शिव और उनके बारे में काफी कुछ कहा, वहीं प्रजापति दक्ष ने भी उनके प्रति अपमान जनक वचन कहे. यह सब देखकर माता सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोड से भर उठा. उन्होने सोचा भगवान शिव कि बात न मानकर उन्होने बहुत बड़ी गलती कि है.

वे अपने पति का अपमान न सह सकी और उन्होने उसी क्षण यज्ञ कि अग्नि में अपने आप को भस्म कर लिया. इस घटना को सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने गानों को भेजकर प्रजापति दक्ष के यज्ञ को पूरी तरह से विध्वंस कर दिया.

माता सती का पुनर्जन्म (Mata sati ka punarjanm)

माता सती द्वारा अपने शरीर को भस्म करने के बाद उनका अगला जन्म हुआ जिसमें वे पर्वत राज हिमालय कि पुत्री के रूप में जन्मी और उनका नाम ‘शैलपुत्री’ रखा गया. शैलपुत्री कि नाम पार्वती और हैमवती भी हैं. अपने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में भी वे शिवजी की ही अर्धांगिनी बनी.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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