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दुनिया में क्रिस्टोफर कोलंबस को कौन नहीं जानता. दुनिया के महान लोगों की फेरहिस्त में कोलंबस एक अनोखा पात्र है. क्रिस्टोफर कोलंबस मसालों की खरीद के लिए भारत की खोज में चला था, लेकिन भटकते हुए पहुंच गया अमेरिका और उसके माथे पर बंधा अमेरिका की खोज करने वाले व्यक्ति का तमगा. बहरहाल, कई जानकार और इतिहास कोलंबस के दूसरे चरित्र के बारे में भी बताते हैं जो कभी सामने नहीं आ पाया. वह था गुलामों का व्यापार करने वाले कोलंबस का.

समुद्र को लांघने का जुनून-

कोलंबस का जन्म 1451 में इटली में हुआ था. उसके पिता दोमिनिको कोलंबो और मां का नाम सूसन कोलंबो थी. कोलंबस के पिता जुलाहे (बुनकर) थे. वह पिता के काम में हाथ बंटाता था किंतु उसका दिल समुद्री यात्रा के लिए करता था और कुछ समय बाद वह औरों के साथ समुद्री यात्रा पर जाने लगा.

वह कभी स्कूल नहीं जा पाया मगर उसने लेटिन भाषा सीख ली और बाद में यात्राओं में पुर्तगाली और स्पेनी भाषाओं पर अच्छा अधिकार हासिल कर लिया. इतिहासकारों के मुताबिक उसके दो अन्य भाई थे बार्थोलोम्यू और डिगो.

डाकुओं से भिड़ गया कोलबंस-

कहा जाता है कि कोलंबस ने महज 19 साल की उम्र में समुद्री डाकुओं के सफाए के लिए आयोजित एक समुद्री यात्रा की थी. इसके अलावा सन् 1476 में क्रिस्टोफर एक जंगी जहाज पर इंग्लैंड यात्रा पर गया, लेकिन बीच में ही उस जहाज पर फ्रांस और पुर्तगाल के जहाजियों ने हमला कर दिया.

कोलंबस घायल होने पर भी दस किलोमीटर तैरा. पुर्तगाल में रहने वाले इतालवियों ने उसे शरण व सहायता दी. 1479 में पोर्तोसांतों के गवर्नर की बेटी डोना फेलिया पेरेस्त्रोलो से कोलंबस की शादी हुई.

बहुत महत्वाकांक्षी था कोलंबस-

इतिहासकार बताते हैं कि कोलंबस बहुत महत्वाकांक्षी था. उसे मालूम था कि यूरोपियन भारतीय मसालों के शौकीन हैं. उन्हें गुलामों की जरूरत रहती थी. सामंत और जागीरदार अपने शौक के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार रहते थे. उसने भारत की यात्रा करने के लिए प्रोजेक्ट बनाया और स्पेन के राजा के दरबार में पेश किया.

वह रानी इजोबल से भी मिला. दरबारियों ने यद्यपि विचार विमर्श के बाद प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया मगर राजा ने कुछ शर्तों पर मंजूरी दे दी. यह शर्तें इस तरह थीं कि कोलंबस वहां से जो भी माल लाएगा, उसमें राजा को भी हिस्सा देगा और कोलंबस को जहाज और अन्य साज-सामान आदि स्पेन की सरकार देगी.

जहां कोलंबस कब्जा करेगा, उसका वह वायसराय होगा. स्पेन के क्षेत्रा में वह भू-भाग होगा. वहां के फल-फूल, व्यापार, सोने इत्यादि में 10 फीसदी हिस्सा कोलंबस का होगा. यह 1492 की बात है. कोलंबस को स्पेन के राजा फर्डीनेंड ने तीन जहाज दिए जिनमें से सांता मारिया पर खुद कोलंबस सवार हुआ. यात्रा के साजो-सामान और जहाजों की कीमत लाखों रूपये थी.

Image source: goodfreephotos.com
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नई दुनिया की खोज में निकला कोलंबस-

1492 में तीन अगस्त को कोलंबस ने ’नई दुनिया‘ की खोज की अपनी यात्रा शुरू की. इस कठिन यात्रा में उसके कई साथियों ने बगावत की लेकिन कोलंबस ने उन्हें काबू कर लिया. वह भारत की खोज में निकला था लेकिन यात्रा का अंदाजा गलत निकला. 1492 की 12 अक्टूबर को कोलंबस के एक खलासी ने जमीन देखी. बस वहीं लंगर डाल दिया गया. उस जमीन पर टेनो जाति के लोग थे. उन्हें कोलंबस ने भारतीय समझा जबकि वह भूभाग बहामास का टापू था. वहां से उसने जोर-जबरदस्ती कर माल-असबाब लूटा और 6 लोग भी कब्जे में लिए.

ऐसे बनाए गुलाम-

बताया जाता है कि स्पेन के राजा की आज्ञा बताकर वहां के सामंतों को गरीब लोगों को अपना गुलाम बनाने की आज्ञा दी. बाद में वापसी के दौरान उसने हैती, क्यूबा और डोमिनिक रिपब्लिक पर अपना अधिकार जमाया. उसने वापस स्पेन पहुंचकर राजा फर्नीनेंड के सामने माल और 6 गुलाम पेश किये और अपने कारनामे बताए तो राजा बड़ा खुश हुआ. मार्च 1493 में बार्सिलोना (स्पेन) में कोलंबस के सम्मान में राजा की परमीशन से जुलूस निकला जिसमें वे छह गुलाम भी थे जिन्हें कोलंबस ने ’इंडियन‘ समझा था और स्पेन में इंडियन बताया था.

बस्तियां भी बसाई-

कोलंबस ने वापस लौटकर हिसपेनिओला (डोमिनिक रिपब्लिक और हैती के भूभाग) में यूरोप की पहली यूरोपीय बस्ती बसाई थी. वह यहां का राजा बना. वह अपने राज्य विस्तार के क्रम में विद्रोह करने वालों को गुलाम बनाता रहा और हत्याएं करता रहा.

उसने अमेरिका से सोना लूटा. कोलंबस के संरक्षण में यूरोप के अनेक देश अमेरिकी क्षेत्रा में लूट मचा रहे थे और वहां से फल-फूल, सोना और गुलाम यूरोप भेज रहे थे. यूरोप युद्ध और अशांति के दौर से गुजर रहा था और कर्ज में डूबा था.

Image source: Pixabay.com
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जब पूजा जाने लगा कोलंबस-

कोलंबस के आधिपत्य वाले क्षेत्र में धन-दौलत देख यूरोपियनों का ध्यान उधर गया. यहां से लूट के कारण यूरोप में न सिर्फ शांति का दौर आया बल्कि समृद्धि भी बढ़ी. लाखों अमेरिकी लोगों की कीमत पर यूरोप समृद्ध हुआ तो कोलंबस यूरोपियनों में पूजा जाने लगा.

एक अनुमान के अनुसार कोलंबस के अधिकार क्षेत्र में तब वहां के मूल निवासियों की संख्या 10 करोड़ थी जब कोलंबस यहां नहीं आया था. बाद के 200 वर्षों में यह संख्या घटकर मात्रा 40 लाख रह गयी.

क्या कहते हैं बुद्धिजीवी और इतिहासकार-

कोलंबस को अमेरिका में महापुरुष समझा जाता है और उसे स्कूल कॉलेजों में पढ़ाया जाता है. अमेरिका के संस्थापक माने जाने वाले कोलंबस के नाम ’कोलंबस डे‘ मनाया जाता है. इस दिन वहां शासकीय छुट्टी रहती है लेकिन अमेरिका में मानव अधिकारवादी, बुद्धिजीवियों और अन्य ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो कोलंबस को हिटलर से भी क्रूर मानते हैं. 

हिटलर पर 60 लाख यहूदियों को मरवाने का आरोप है मगर कोलंबस पर उससे भी संगीन आरोप लगाए गये हैं. उसके अधिकार क्षेत्र में कोलंबस पर और दूसरे यूरोपियनों पर करोड़ों लोगों की जानें लेने के आरोप हैं.

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