सत्ता में आने से पहले पीएम नरेन्द्र मोदी ने 2014 केे लोकसभा के चुनावों के दौरान एक करोड़ नई नौकरियां देने का चुनावी वायदा किया था, लेकिन तीन साल बीतने पर भी रोजगार की तस्वीर बदल नहीं पाई है जबकि 9 करोड़ लोगों को बंधन बैंक और मुद्रा योजना के तहत स्वयं कार्य करने के लिए नौ करोड़ युवाओं व लोगों को ऋण दिए जा चुके है. सवाल यह उठता है कि क्या रोजगार के नवीन अवसर नहीं हैं? क्या केवल नौकरियां ही रोजगार के अवसर होते हैं?
ये है देश में रोजगार की हालत
भारत में हर माह दस लाख नए लोग रोजगार की तलाश करते हैं, जिनमें मात्रा 0.01 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल पाता है. श्रम आधिक्य वाले क्षेत्रों में भी वर्ष 2015 में केवल 1.35 लाख नौकरियां ही पैदा हुुुुईं, जबकि साल 2011 में इन क्षेत्रों 9.30 लाख नौकरियों का सृजन हुआ था. दरअसल, मौजूदा वक्त में सरकारों के सामाजिक दायित्व बढ़ गए हैं. उनमें एक यह भी है कि सरकार ही युवाओं को नौकरी और रोजगार प्रदान करवायें. राज्य और केन्द्र सरकारों के लाखों की तादाद में खाली पडे़ पदों को ही किन्ही अपरिहार्य कारणों से नहीं भरा जा सका है, यदि यही इन्हीं खाली पड़े पदों को निरन्तर भरते रहें और प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम भी तुरंत कम से कम समय पर निकलते रहे तो उससे भी रोजगार के अवसर बढ़ सकते है.
इसलिए खराब है सरकार का रिपोर्ट कार्ड, ये कहते हैं लेबर ब्यूरो के आकंड़ों
केंद्र सरकार के लेबर ब्यूरो के आकंड़ों पर एक नजर दौड़ाएंं तो साल 2016 में बीजेपी सरकार ने मैन्यूफेक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड समेत 8 प्रमुख सेक्टर में सिर्फ 2 लाख 31 हजार नौकरियां दी हैं. जबकि साल 2015 में ये आकंडा इससे भी कम था, 2015 में सिर्फ 1 लाख 55 हजार लोगों को नौकरियां मिलीं. जबकि साल 2014 में 4 लाख 21 हजार लोगों को नौकरियां मिलीं. मोदी सरकार के तीनों साल के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो अब तक सिर्फ और सिर्फ 9 लाख 97 हजार नौकरियां दी हैं. इसके इतर कांग्रेस ने दूसरी बार सरकार बनने के पहली साल यानी 2009 में 10.06 लाख नौकरियां दी थीं.
तो नौकरी देने में कांग्रेस है आगे
आंकड़ों पर भरोसा किया जाए तो फिर मोदी सरकार 3 साल में उतनी नौकरी नहीं दे पाई जितनी की कांग्रेस सरकार ने 1 साल में ही दे दी थी. बावजूद इसके मोदी सरकार अब भी अपनी पीठ थपथपा रही है. इधर एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में अब भी 6 करोड़ 5 लाख 42 हजार लोग बेरोजगार हैं.
बेरोजगारी पर ऐसा था बीजेपी का घोषणापत्र
2014 के मेनीफेस्टो में रोजगार बढ़ाना बीजेपी के मुख्य एजेंडे में शामिल था, रोजगार बढ़ाने लिए बड़े-बड़े वादे भी किए गए थे, लेकिन रोजगार को बढ़ाना तो दूर की बात है, बड़े महकमे में जो पद सालों से खाली है वो भी अब तक नहीं भरे जा पाए हैं.
प्रोफेशनल्स की कमी
देश में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है. 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6000 पोस्ट खाली पड़ी हैं. IIT, IIM और एनआईटी में भी 6500 पद खाली पड़े हैं, इंजीनियरिंग कॉलेज में 27 फीसदी शिक्षकों की कमी है. स्कूलों में पढ़ाने के लिए 12 लाख शिक्षकों की जरूरत है. महत्वपूर्ण पदों पर रिक्तियां और बेरोजगारी की वजह से विरोधी मोदी सरकार पर हमलावर हैं. (पूूूर्ण Data Input: साभार ABPnews.)
ये है सरकार के सामने समस्या
बढ़ती जनसंख्या से भी सरकार द्वारा नई नौकरियां पैदा करने के प्रयास भी नाकाफी होते हैं जबकि देश की अधिसंख्य जनता निचले स्तर के स्व-रोजगार अथवा सर्वाधिक असुरक्षित रोजगार की तरफ मुड़ जाते हैं, जिससे प्रतिभाओं (संसाधनों) का उतना सही व उत्तम उपयोग नहीं हो पाता है जितना कि होना चाहिए.
कहीं चुनावी मुद्दा ना बन जाए बेरोजगारी
इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के बाद अगले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में चुनाव है. इसके बाद 2019 में लोकसभा चुनाव. यदि बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार ने तेजी से कदम नहीं उठाए तो ये एक बड़ा मुद्दा बन सकती है क्योंकि खुद पीएम मोदी बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बताकर सत्ता में आए थे और उन्होंने अपने कई वादों में इसे लेकर भी एक वादा किया था. देखना यह है कि सरकार बेरोजगारी के मुद्दे को कितना गंभीरता से लेती है.
बहरहाल, सरकार को रोजगार की सृजनता को बुनियादी जरूरतों में शामिल करना चाहिए. भारत में कृषि व फुटकर व्यापार में रोजगार देने की असीम संभावनाएं मौजूद हैं.
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