दुनिया भर में देखा जाए तो जितने देश, उतनी भाषाएं हैं. केवल हमारे ही देश में हर प्रांत की भाषा अलग है कुछ जो थोड़ी बहुत हिंदी से मेल खाती हैं, समझी जा सकती हैं, लेकिन दक्षिण की तमिल, तेलुगू, मलयालम हिंदी भाषा भाषियों की समझ के बाहर हैं जब तक कि ये भाषाएं खास तौर पर सीखी न गई हों, लेकिन शारीरिक मुद्रा यानी की बॉडी लैंग्वेज यूनिवर्सल है और इसे आसानी से सभी समझ सकते हैं.
हर संस्कृति में अलग अर्थ (Types of body language)
हालांकि कोई-कोई मुद्राएं जरूर भिन्न अर्थ रखती हैं, जैसे हमारे यहां अंगूठा दिखाना चिढ़ाने के रूप में प्रयोग होता है लेकिन पाश्चात्य देशों में इसे ‘यस’ के रूप में स्वीकृति माना जाता है. ऐसे ही कंधे उचकाना वहां एक नॉर्मल ‘जेस्चर’ है हमारे यहां इसे बुरा व असभ्यता का प्रतीक मानते हैं.
बॉडी लैंग्वेज हर व्यक्ति की शख्सियत की पहचान बन जाती है. कई लोगों को जल्दी-जल्दी आंख झपकाने की आदत होती है, कई के चेहरे पर हमेशा तनाव नजर आता है कईयों की बात-बात में नाक भौं सिकोड़ने की आदत होती है कईयों का चेहरा बेहद शांत रहता है कईयों की आंख में जैसे कहा जाता है सूअर का बाल होता है यानी शर्म लिहाज का अभाव कई बेहद शर्मीले होते हैं जरा से इमोशन से उनका चेहरा रक्तिम हो जाता है. यह बॉडी लैंग्वेज ही है जो आपका स्वभाव भी उजागर करती है.
किस टोन में करते हैं बात (understanding body language)
इसी तरह आप किस टोन में क्या बात कहते हैं, वह भी बॉडी लैंग्वेज के अन्तर्गत आता है गुस्से में आवाज कठोर हो जाती है, ममता से भीगी आवाज अलग होगी, रोमांस में डूबी सैक्सी आवाज अलग एक ही बात अगर आप अपने बच्चे से कहेंगे तो आपकी बॉडी लैंग्वेज अलग होगी, (टोन) बात करने का तरीका अलग होगा वही बात जब आप नौकर से कहते हैं तो टोन, बॉडी लैंग्वेज सब कुछ बदला हुआ होता है बच्चे से कहेंगे-बेटा प्लीज एक गिलास पानी दोगे मगर रामू को ऑर्डर देते हुए कहेंगे, ‘रामू, एक गिलास पानी देना’. आपने लाई डिटेक्टर के बारे में सुना होगा कि कैसे यह व्यक्ति के हाव-भाव को पकड़कर सच-झूठ बता देता है.
हाव-भाव बता देते हैं सच
दरअसल, सच्चे व्यक्ति के चेहरे पर एक तेज होता है जो उसे निर्भीकता प्रदान करता है. झूठा व्यक्ति लाख कोशिश करे, उसके हाव-भाव कई बार उसका झूठ बता देते हैं. ताश में एक गेम होता है फोरट्वन्टी यह खेल झूठ पर ही चलता है जो जितना झूठ बोलने में माहिर है उसके जीतने के चांस ज्यादा होते हैं, लेकिन वहीं अगला खिलाड़ी बॉडी लैंग्वेज समझने में निपुण है तो वह पहले का ओवर कॉन्फीडेट दिखाने का नाटक एकदम से भांप लेगा.
क्यों और कहां जरूरी है बॉडी लैंग्वेज
फिल्मों व नाटक में डॉयलाग से ज्यादा महत्त्व रखती है. बॉडी लैंग्वेज एक जमाना था, जब केवल मूक फिल्में बनती थीं तब लोग पूरी फिल्म की कहानी हाव भाव से ही समझ लेते थे बड़े-बड़े एक्टर एक्ट्रेसेज, सब के अपने मैनरिज्म होते हैं किसी के बाल झटकने की अदा, किसी के रुक-रुक कर बोलने का अंदाज, देवआनंद स्टाइल, राजकपूर स्टाइल, राजेश खन्ना स्टाइल, मधुबाला की तिरछी आंखों से दी जाने वाली बंकिम मुस्कान, नर्गिस का नाक सिकोड़ना, मीना कुमारी की अति भावुकता, सब उनकी खास पहचान थे. नृत्य बॉडी लैंग्वेज का सबसे सशक्त प्रदर्शन है. इसमें दिखाई जाने वाली विभिन्न भाव भंगिमाएं इमोशन की सारी रेंज कवर कर लेती हैं.
आप जिस व्यक्ति से प्यार करते हैं, उसका सामीप्य आपको खुशी देता है आप उस के नज़दीक रहना चाहते हैं, लेकिन वहीं जहां आप किसी से नफरत करते हैं तो उसके साथ नहीं बैठेंगे. खासकर संयुक्त परिवारों में यह नजारा बहुत देखने को मिलता है. देवरानी जेठानी ईर्ष्या के चलते मुंह फेरकर बैठती हैं, इसी तरह ननद भावज में अगर नहीं पटती है तो वे दूर-दूर रहेंगी.
माइंड और शरीर की भाषा का कनेक्शन
दरअसल, ऐसा इसलिए होता है कि हम आंखों से देखते हैं, तो आंखें तुरंत मस्तिष्क को संदेश भेजती हैं, मस्तिष्क शरीर के विभिन्न भागों को और बॉडी इस तरह फौरन प्रतिक्रिया देने लगती है आपकी सोच, आपका माइंडसेट ही उसे गवर्न करता है सोच सकारात्मक होगी तो आप में दोस्ताना रवैय्या, आत्मविश्वास झलकेगा नकारात्मक होने पर हाव-भाव भी बदले होंगे एक गहरी ऊब, तनाव, उपेक्षा आपको लोगों में पापुलर नहीं बनाएगी तब आपको लोग सिर्फ झेलेंगे.
पर्सनाल्टी में चार चांद लगती है बॉडी लैंग्वेज
व्यक्तित्व के विकास, उसकी संपूर्णता के लिए इनर पावर, भीतरी ऊर्जा और बाह्य हाव-भाव व बॉडी लैंग्वेज में गहरा संबंध जरूरी है शब्दों से ज्यादा व्यक्ति के हावभाव उसकी पहचान बन जाते हैं. एक संभ्रात व्यक्ति फटे वस्त्रों में भी अपनी पहचान कायम रख सकता है उसी तरह एक छंटा हुआ बदमाश हो या फूहड़ गंवार, सूटेड बूटेड होकर भी कहीं न कहीं अपनी कहानी कहता नजर आता है आपकी बॉडी लैंग्वेज समझने की योग्यता जीवन में आपके बहुत काम आ सकती है.