गुजरात और हिमाचल में एक बार फिर मोदी का जादू चला है. गुजरात में भाजपा ने अपनी सत्ता बचाई है तो वहीं पहाड़ी राज्य हिमाचल में उसने कांग्रेस से सत्ता छीन ली है. हालांकि गुजरात में बीजेपी के लिए राह आसान नहीं रही है. राज्य में पिछले दो दशकों से पार्टी आराम से मोदी के नाम पर चुनाव लड़ती और आसानी से जीतती आई थी. चुनावी हवाबाजी ज्यादा होती थी, लेकिन इस बार पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को जमीन पर उतारने को मजबूर हुई है. यह संकेत है कि राज्य में बीजेपी के लिए पहले जैसी सरकार चलाने में मुश्किलें आएंगी. खास बात यह है कि विजय रुपाणी को फिर से सीएम बनाकर पार्टी ने और भी मुसीबत बढ़ा दी हैं.
क्यों बढ़ा सकते हैं रुपाणी मुसीबतें
दरअसल, राज्य बीजेपी में नेताओं के बीच लड़ाई में वो विजय रुपाणी एक खेमे के नेता भर माने जाते हैं. मोदी की बराबरी की तो खैर बात ही नहीं, उन्हें तो ढंग से राज्य का मुख्यमंत्री भी नहीं माना जाता. दूसरी बड़ी वजह यह है कि कारोबारी, किसान, पाटीदार, दलित और युवा बीजेपी से नाराज हैं.इस नाराजगी को हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश जैसे युवाओं ने नई जगह दी है और कांग्रेस की ताकत बढ़ाई है.
पिछले कई सालों में पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि ये लोग अपनी गुजराती पहचान से ऊपर उठकर वोट करने को राजी दिख रहे हैं. वो अपनी समस्याओं के बारे में बात कर रहे हैं. वो गुजराती से ज्यादा अपने-अपने समुदायों की बातें और उनकी दिक्कतों के बारे में बातें कर रहे हैं. ये नाराजगी राहुल गांधी के चुनाव प्रचार में दिखी. राहुल की रैलियों में काफी भीड़ जुटी. कई जगह तो लोगों ने बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने तक से रोक दिया.
ऐसे बढ़ेंगी बीजेपी की मुश्किलें
गुजरात में बेशक रोजगार का मुद्दा अहम रहा है जो आने वाले समय में बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है. उसके बाद कांग्रेस जिन इलाकों में मजबूत हुई उसका असर पूरे पांच साल दिखाई देगा. पहली बार है जब विपक्ष बीजेपी के गढ़ में इतना मजबूत होकर सामने आएगा. फिर यह साफ हो गया है कि मोदी के बाद जिनके हाथ गुजरात की डोर आई, वो उनकी विरासत को आगे नहीं बढ़ा सकें हैं लिहाजा उसका असर भी दिखाई देगा.
खास बात यह भी रही है कि मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रमणीकलाल रूपानी की इस चुनाव में कोई हैसियत नहीं थी. उन्हें मोदी का वारिस कम और जीत के मजे लेने वाला ज्यादा कहा जाता है. ऐसे में मजबूत विपक्ष के आगे अब सरकार चलाना आसान नहीं होगा.
कांग्रेस मजबूत तो हुई है, लेकिन बदलनी होगी चाल
इन चुनावों में राहुल गांधी एक गम्भीर नेता के तौर पर दिखे. लेकिन मशरूम खिलाने, चुनावी या फैंसी हिंदू बनने या विकास को पागल करार देने से ही चुनाव नहीं जीते जा सकते. इन मायनों में राहुल गांधी 57 रैलियां करने और करीब 20,000 किलोमीटर की यात्रा करने अथवा 28 बार मंदिरों में दर्शन और पूजा-पाठ करने के बावजूद नाकाम साबित हो गए. इस पर बतौर कांग्रेस अध्यक्ष उन्हें गहरा मंथन करना पड़ेगा तथा चुनाव की पूरी रणनीति बदलते हुए अपने सलाहकार भी बदलने होंगे. उन्हें समझना होगा कि एक ही राज्य में लगातार छठी बार सत्ता हासिल करना कोई अटकलबाजी या आंकड़ेबाजी नहीं कही जा सकती.
(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)