Fri. Mar 29th, 2024

गुजरात चुनाव 2017 : ये था आरक्षण का सच? हार्दिक पटेल को ऐसे झांसा दे रही थी कांग्रेस?

Gujarat Election Results 2017Congress's Reservation Formula was a lollipop for Hardink patel?गुजरात चुनाव 2017 : ये था आरक्षण का सच? हार्दिक पटेल को ऐसे झांसा दे रही थी कांग्रेस?
आरक्षण दिलाने का वादा देकर हार्दिक पटेल को कांग्रेस ने साथ लिया था. 80 सीटों पर अकेले आना उसके बूते की बात न हीं थी. (फोटो : Inc.org)
आरक्षण दिलाने का वादा देकर हार्दिक पटेल को कांग्रेस ने साथ लिया था. 80 सीटों पर अकेले आना उसके बूते की बात न हीं थी. (फोटो : Inc.org)

गुजरात चुनाव में कांग्रेस भले ही सरकार नहीं बना पाई, लेकिन हार्दिक पटेल के सहयोग से वह बीजेपी को कड़ी टक्कर देने में सफल रही है. कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को आरक्षण दिलाने का वादा कर साथ लिया था और उसका उसे फायदा भी मिला. 80 सीटों पर अकेले आना उसके बूते की बात न हीं थी. लेकिन पटेलों को आरक्षण देने के उसके वादे में कितनी सच्चाई थी यह अब भी बड़ा सवाल बना हुआ है.

हालांकि चुनाव से पहले कांग्रेस के आरक्षण देने के वादे पर तमाम पार्टियां और जानकार आश्चर्य जता रहे थे. सवाल उठ रहे थे कि कांग्रेस आरक्षण कहां से देगी क्योंकि आरक्षण के जिस ‘लॉलीपाप’ से हार्दिक पटेल खुश थे और दावा कर रहे थे कि 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिया जा सकता है, वह एक पूरे समुदाय को भुलावे में रखने की कोशिश से अधिक कुछ भी नहीं था.

तो क्या झूठा था आरक्षण का वादा?
संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कश्यप की मानें तो संविधान में कहीं भी लिखा नहीं है कि आरक्षण दिया जाए अथवा नहीं. भारतीय संविधान सभा के विमर्श में आरक्षण जरूर शामिल था. सामाजिक असमानता और आर्थिक असंतुलन को समाप्त करने दलितों और आदिवासी जातियों को सिर्फ 10 साल के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देना तय हुआ था, लेकिन आजादी के 70 सालों के दौरान यह अवधि बढ़ाई जाती रही और अब आरक्षण एक राजनीतिक हथियार बन गया है. असमानता और असंतुलन के मूल्यांकन न जाने किए गए या नहीं लेकिन आरक्षण जारी है.

सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की संविधान पीठ का फैसला है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता,(फाइल फोटो: फोटो: supremecourtofindia.nic.in).
सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की संविधान पीठ का फैसला है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता,(फाइल फोटो: फोटो: supremecourtofindia.nic.in).

क्या फैसला है सुप्रीम कोर्ट का
दरअसल, यह आरक्षण संभव ही नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की संविधान पीठ का फैसला है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता, हालांकि तमिलनाडु एक अपवाद है, जहां 69 फीसदी आरक्षण है-50 फीसदी ओबीसी, 18 फीसदी दलित और एक फीसदी आदिवासी. तब यह कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं था. 2010 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह  भी फैसला दिया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब नागरिकों और जातियों का वैज्ञानिक डाटा उपलब्ध हो. 

ये भी उठाए गए तर्क 
यही नहीं फाइनांस मिनिस्ट और कानून के जानकार अरुण जेटली, ने भी पटेलों को आरक्षण देने के वादे पर आश्चर्य जताया था. उनके मुताबिक आरक्ष्ण संभव ही नहीं था. उनके मुताबिक जो आरक्षण से संबंधित आंदोलनों, मांगों, सरकार के आदेशों और न्यायालयो के निर्णयो के बारे मे जानकारी रखते हैं, उन्हें भी यह पता है कि वर्तमान संवैधानिक प्रावधानो के तहत पाटीदारों को आरक्षण मिलना संभव ही नहीं है. यही नहीं अदालतों ने एक बार नहीं, बल्कि कई बार आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन करने वाले सरकारी आदेशों को निरस्त कर दिया है. अदालत ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को भी खारिज कर दिया है. और अदालत में संपन्न जातियों को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण देने के सरकार के आदेश को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया है.

तो क्या हार्दिक पटेल की मांग जायज नहीं थी?
सवाल है कि गुजरात में पाटीदारों के आरक्षण की मांग कितनी वैध और अवैध है? निवर्तमान उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल की यह टिप्पणी सटीक लगती है-‘एक मूर्ख ने अर्जी दी, दूसरे ने उसे मान लिया.’ घोषणा-पत्र में दर्ज करने, आरक्षण देने का आश्वासन देने, उसे चुनाव के दौरान खूब प्रचारित करने से कांग्रेस का क्या जाता है? पहली सच्चाई तो यही थी कि गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनने के दूर-दूर तक आसार नहीं थे और यह सच सामने भी आया. मान लीजिए यदि किसी भी करिश्मे से सरकार बन भी जाती तो फिर कांग्रेस का पहला खेल हार्दिक एंड कंपनी से टालमटोल करना होता. यदि आरक्षण का बिल पारित हो भी जाता कोर्ट अदालत उसे खारिज कर देती.

सवाल यह है कि यदि पाटीदारों को आरक्षण देने की कोई भी गुंजाइश होती तो भाजपा सरकार क्यों नहीं देती? (फोटो : साभार हार्दिक पटेल के ट्विटर एकाउंट से).
सवाल यह है कि यदि पाटीदारों को आरक्षण देने की कोई भी गुंजाइश होती तो भाजपा सरकार क्यों नहीं देती? (फोटो : साभार हार्दिक पटेल के ट्विटर एकाउंट से).

फिर तो भाजपा पहले ही दे देती आरक्षण
यदि पाटीदारों को आरक्षण देने की कोई भी गुंजाइश होती तो भाजपा सरकार क्यों नहीं देती? गुजरात में पटेलों को भाजपा का निश्चित वोट बैंक माना जाता रहा है. वे बुनियादी और धार्मिक सोच के स्तर पर हिंदूवादी हैं और कांग्रेस को ‘मुस्लिमवादी’ पार्टी मानते रहे हैं. लिहाजा हर आधार पर पटेलों के आरक्षण को सहमति देना और फार्मूले का सुझाव देना ‘कांग्रेसी लालीपॉप’ के अलावा कुछ भी नहीं था.

क्या वाकई जरूरी है पटेलों को आरक्षण
दरअसल, गुजरात के पटेलों को आरक्षण की दरकार ही नहीं है. दुनिया भर में उनके कारोबार फैले हैं. पटेल बुनियादी तौर पर व्यवसायी हैं. गुजरात के सूरत शहर में ही करीब 5000 छोटे-बड़े कारखाने हैं जो हीरे का कारोबार करते हैं. जो कारोबारी नहीं हैं, वे हीरा तराशते हैं, उसका सौंदर्य बढ़ाते हैं, पालिश करते हैं. उन्हें आरक्षण वाली नौकरी नहीं चाहिए. अमेरिका में अधिकतर राजमार्गों पर पटेलों के माल, पेट्रोल पंप और अन्य बड़ी दुकानें, शोरूम हैं. गुजरात में न जाने किन पटेलों की जमीनें छिन गई हैं, आर्थिक स्रोत सूख गए हैं कि वे आरक्षण पर आमादा हैं? गुजरात में संपन्न व्यापारी जमात ही पटेल है. हार्दिक पटेल न जाने किन पाटीदारों के नेता हैं?

क्या वाकई कारगर रही है आरक्षण की व्यवस्था
दलितों और आदिवासियों में कई जातियां और व्यक्ति करोड़पति भी हो गए, लेकिन उनके पूरे परिवार के लिए आरक्षण आज भी जारी है. आईएएस, उसकी बीवी और बच्चे भी आईएएस बन गए हैं. यह हासिल भी आरक्षण की बदौलत है, लेकिन आरक्षण अब भी जारी है. हरियाणा और राजस्थान में जाटों और गुर्जरों के आरक्षण का मुद्दा सुलगा ही नहीं, हिंसक भी हो गया था.

हाल ही में राजस्थान सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण देने का फैसला लिया, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. (फोटो : सोशल मीडिया).
हाल ही में राजस्थान सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण देने का फैसला लिया, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. (फोटो : सोशल मीडिया).

ऐसे तो हर कोई मांगेगा आरक्षण
हाल ही में राजस्थान सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण देने का फैसला लिया, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए मराठा तिलमिला रहे हैं, और तमिलनाडु में ब्राह्मण भी आरक्षण के लिए आंदोलित हैं. लगता है कि एक दिन गरीब, अमीर सभी तबके आरक्षण के लिए सड़कों पर उतर आएंगे. तो उस सामान्य वर्ग की नौकरियों और शिक्षा का क्या होगा जो बदकिस्मती और जन्म से ही, आरक्षण के कारण उनके हाथों से फिसल गई हैं? एक दिन वे भी आरक्षण का शोर मचा सकते हैं.

ये है आरक्षण की सच्चाई
आधुनिक भारतीय राजनीति का आधार ही जाति है. आरक्षण का बम यहां वोट बैंक के रूप में काम करता है. आर्थिक आधार पर आरक्षण कथित बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए अपच बम साबित होगा. उन्हें यह बर्दाश्त नहीं होगा क्योंकि उनकी राजनीति जाति आधारित है. जातियों को खुश करने के लिए आरक्षण का मसला उन्हें कायम रखना है. उन्हें सामाजिक समानता, समरसता और सामाजिक उन्नति से कोई ताल्लुक नहीं है. जब लोग सत्ता में होते हैं तो कुछ नहीं करते हैं. कुल मिलाकर आरक्षण जातियों को राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसाने का एक ब्रहमास्त्र है जिसका सदुपयोग राजनीतिक दल अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार करते आ रहे हैं.

राजनेता चाहे किसी भी पार्टी के क्यों न हों आरक्षण का खुलकर विरोध नहीं कर सकते क्योंकि सवाल घूम-फिरकर वही वोट का आ जाता है. (फोटो : Bjp.org).
राजनेता चाहे किसी भी पार्टी के क्यों न हों आरक्षण का खुलकर विरोध नहीं कर सकते क्योंकि सवाल घूम-फिरकर वही वोट का आ जाता है. (फोटो : Bjp.org).

क्या ये उपाय निकलेगा आरक्षण से?
आरक्षण का समर्थन और विरोध दोनों ऐसे मुद्दे हैं जिन पर वैचारिक मतभेद से बढ़कर जातिगत संघर्ष की स्थिति तक बन रही है. पाटीदार, मराठा, गुर्जर, जाट जैसी जातियों को आरक्षण मिलने के बाद क्या गारंटी है कि ये सिलसिला रुक जाएगा. इसी तरह पदोन्नति में आरक्षण के चलते सरकारी क्षेत्र में सेवा और कार्य का स्तर जिस तरह गिर रहा है वह भी गम्भीर चिंतन का विषय है. यदा कदा निजी क्षेत्रा में भी आरक्षण की जो मांग उठा करती है वह भयावह भविष्य का संकेत है. यह तो जगजाहिर है कि राजनेता चाहे किसी भी पार्टी के क्यों न हों आरक्षण का खुलकर विरोध नहीं कर सकते क्योंकि सवाल घूम-फिरकर वही वोट का आ जाता है.

 (इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)

By राजेश माहेश्वरी

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक.

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *