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holi 2018 harmful effects of holi colors

रंग-बिरंगा त्योहार होली जीवन में दस्तक दे रहा है. होली के आते ही मौसम खुशगवार होना शुरू हो जाता है. होली एक ऐसा त्योहार है जो जीवन के कई रंगों से भरा है और इन रंगों में भेदभाव नहीं है. रंग-बसंत के बीच सबको प्यार के रंग से सराबोर कर देने वाला यह पर्व कुछ ही दिन में हमारे द्वार पर होगा.

जीवन में रंगों का विशेष महत्त्व है. शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य हों या फिर पर्व-त्योहार, इन रंगों का अनूठा आकर्षण है. इनके बिना जीवन में खुशियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती. यही नहीं, होली के अवसर पर तो इसके क्या कहने. बच्चों के लिए विशेष आकर्षक रहे होली के रंग को कम ही लोग जानते होंगे कि ये बनते हैं कैसे क्योंकि रंगों का ही त्योहार होता है.

होली के रंगों की बनावट से पहले यह जानिए कि रंग वास्तव में हैं क्या? (How is color created?)
मुख्यतः रंग केवल तीन प्रकार के होते हैं – लाल,पीला,नीला, ये प्राथमिक रंग एक दूसरे से मिलकर विभिन्न रंगों का निर्मांण करते हैं.

रंगों की दो श्रेणियां होती हैं-  प्राकृतिक रंग एवं कृत्रिम रंग. प्राकृतिक रंग हमारी प्रकृति से प्राप्त होते हैं. इस आधार पर प्रकृति प्रदत्त पेड़-पौधे अथवा जीवों से कोई न कोई रंग अवश्य मिलता है. पौधों में खासकर हरी पत्तियां, घास, हरे अथवा भूरे रंग की काई(शैवाल), हल्दी, केसर, पलाश जैसे अनेक प्रकार के फूलों एवं प्राणियों में तितलियों व घोंघे सहित अन्य कीटों से भी रंग प्राप्त किजाते हैं.

पलाश व केसर के फूलों से केसरिया रंग और लाख के कीटों से महावर रंग बनाएं जाते हैं जबकि समुद्री घोंघे के शरीर से निकलने वाले द्रव से बैंगनी रंग बनता है. इसके अतिरिक्त नीला रंग नील के पौधों से तैयार होता है. नील का पौधा 4 फुट ऊंचाई तक होता है और उस पर गुलाबी रंग का फूल खिलता है. वैसे नील के स्थान पर अब कृत्रिम नील का प्रयोग धड़ल्ले से होने लगा है.

ऐसे बनते हैं आर्टिफिशियल रंग (Artificial colours side effects and What are the Holi colors made of?)
कार्मीन रेड रंग को एक विशेष प्रकार के कीट से प्राप्त किया जाता है जो मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको की घाटियों में मिलते हैं. इन कीटों को कांटे पर एकत्रित किया जात है एवं पोषण के दौरान वयस्क कीटों को गरम पानी में डालकर इन्हें धूप में सुखाया जाता है. इसके बाद इन सूखे कीटों को पीसकर पानी में मिलाया जाता है जिससे शत-प्रतिशत कोचीनियम नामक पदार्थ मिलता है जिसे सिरका मिलाकर पक्का रंग तैयार किया जाता है.

आर्टिफिशियल कलर्स लैब में कैमिकल प्रोसेस के जरिये बनाए जाते हैं. सन् 1956 में पहला कृत्रिम रंग‘मोव’ तैयार हुआ जिसे इंग्लैंड के विलियम एच.पार्किन ने तैयार किया था. उसके बाद कृत्रिम रंग नियमित रूप से तैयार करने कीे होड़ लग गई. इसके पूर्व सन 1860 में मैजेंटा, 1862 में ब्लू एवं काला, 1865 में बिस्माइन ब्राउन, 1878 में मैलकाइट ग्रीन, 1879 में पीला इत्यादि कृत्रिम रंगों का निर्माण किया जाता था.

इन रंगों को कोलतार से पूर्व में तैयार किया जाता था जिसे आगे चलकर अन्य रासायनिक पदार्थों की सहायता ली जाने लगी. कृत्रिम रंगों को तैयार करने में नील का निर्माण सबसे कठिन व चुनौतीपूर्ण था. जिसे जर्मनी के बान बायर ने पूरा कर दिखाया. उसे बनाने में 18 वर्षों से भी अधिक समय लगा. इस प्रकार कृत्रिम एवं प्राकृतिक रंगों को तैयार करने का अपना अलग इतिहास है परंतु हमारा तात्पर्य यहां सिर्फ होली के रंगों से है.

पूरे देश में होली के कई रूप और अनेक रंग हैं. आपसी प्रेम और भाईचारे का यह पर्व पूरे देश को एक कर देता है.

होली के रंगों से सावधान (Harmful effects of holi colours in hindi)
होली के अवसर पर हम रंगों का भरपूर प्रयोग करते हैं किंतु इसके स्वास्थ्य पर पड़ते पड़ते कुप्रभावों के बारे में बिलकुल नहीं सोचते. उन्हें यह जानना चाहिए कि सूखा रंग चेहरे या सिर के बालों के सहारे यदि नाक या मुंह में समा जाये तो इससे नुकसान पहुंचता है.

रंगों में पाये जाने वाले लेड(सीसा) धीमा जहर के रूप में आंत में घाव का रूप ले सकता है. यही नहीं, कई रंगों में जिंक क्लोराइड की प्रचुर मात्रा उपलब्ध रहने से त्वचा में खुजली शुरू हो जाती है. गुलालों के मामले में भी सावधानी नहीं बरतने से, सिर-ललाट पर अधिक मात्रा में इसके प्रयोग से सर्दी-खांसी के अतिरिक्त सिरदर्द की शिकायतें सामान्य बात बन जाती है.वास्तव में होली का आनंद तभी है जब हम रंगों का प्रयोग कम मात्रा में करें अन्यथा इनके अधिकाधिक प्रयोग से होली की खुशियां दोगुनी होने के बजाय आधी-अधूरी रह जायेंगी.

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