Sun. Apr 28th, 2024

गुजरात चुनाव : ‘नई बीजेपी’ को ऐसे बनाया था मोदी ने.! कांग्रेस तोड़ेगी ये तिलिस्म?

how-narendra-modi-built-new-bjp-in-gujarat. (Image Source: bjp.org and inc.in)how-narendra-modi-built-new-bjp-in-gujarat. (Image Source: bjp.org and inc.in)
आज जितनी ताकतवर बीजेपी गुजरात में है, वैसी ही कभी कांग्रेस हुआ करती थी. लेकिन उसका भी किला एक दिन ढह गया. (फोटो: inc.in)
आज जितनी ताकतवर बीजेपी गुजरात में है, वैसी ही कभी कांग्रेस हुआ करती थी. लेकिन उसका भी किला एक दिन ढह गया. (फोटो: inc.in)

गुजरात एक बार फिर से विधानसभा चुनाव के मुहाने पर है. मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच है. आज जिस प्रकार गुजरत में भाजपा की तूती बोलती है अतीत में कांग्रेस की भी वही स्थिति थी. माधव सिंह सोलंकी के कार्यकाल में गुजरात कांग्रेस ने 182 में से 149 सीटें जीत गईं थी और कहा जाता था कि सोलंकी के दुर्ग को भेदना नामुमकिन है. हालांकि सोलंकी का कार्यकाल गया और केशु भाई पटेल को आगे करके भाजपा ने कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीन ली. 

ऐसे होती गई भाजपा ताकतवर
केशु भाई का नेतृत्व कमजोर बताकर भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी समर्थक नेताओं ने नरेन्द्र मोदी को आगे किया और नरेन्द्र मोदी सन् 2001 से लेकर 2014 तक गुजरात का नेतृत्व किए. केवल देश में ही नहीं दुनिया में भाजपा और नरेन्द्र मोदी का गुजरात मॉडल विख्यात है. नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में कई प्रयोग किए और उन प्रयोगों का प्रतिफल यह हुआ कि वे देशभर में चर्चित होते चले गए. भाजपा ने गुजरात में अपना वोटबैंक मजबूत करने के लिए बहुसंख्यक हिन्दू कार्ड खेला. यही नहीं नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में गरवी गुजरात का भी नारा दिया गया. क्या सचमुच में भाजपा या उससे पहले का जनसंघ इसी प्रकार की राजनीति करती थी?

दरअसल, जानकार बताते हैं कि न तो जनसंघ के समय ऐसा था और न ही केशु भाई की भाजपा ने ऐसा किया. राजनीतिक पंडित का तो यहां तक कहना है कि किसी जमाने में भाजपा और संघ को गरवी गुजरात से कुछ भी लेना-देना नहीं था. अब सवाल यह उठता है कि क्या गरवी गुजरात के नारों से गुजरात भाजपा मजबूत हुई या हिन्दुत्व के नारों से? हिन्दुत्व के नारों को कमजोर करने में आखिर किसकी भूमिका रेखांकित की जाए, इसकी मीमांसा जरूरी है.  

ऐसा रहा था गुजरात में भाजपा का हाल
किसी जमाने में भाजपा जिसे अपना वैचारिक मातृ संगठन मानती है उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आधार समर्थक और कार्यकर्ता उत्तर भारतीय एवं हिन्दी भाषी हुआ करते थे. जब जनसंघ की स्थापना हुई तो गुजरात में भी जनसंघ का काम फैला. उन दिनों जनसंघ के बड़े नेता अधिवक्ता वसंतराव गजेन्द्रगडकड़ मात्र कहने के लिए ही मराठी थे. वे सांस्कृतिक रूप से हिन्दी भाषियों के ज्यादा निकट थे, इसीलिए उनका जनाधार भी हिन्दी भाषी था. यही नहीं जो भी मराठी गुजरात में काम करने आते थे वे पहले हिन्दी भाषी हिन्दुओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करते थे, इसलिए उन दिनों जनसंघ को हिन्दी भाषियों की पार्टी कही जाती थी.

जब जनता पार्टी बनी और जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया तो गुजरात में जनसंघ के कार्यकर्ताओं के साथ प्रजा सोशलिस्ट के कार्यकर्ता भी इकट्ठे हो गए. दोनों को एक साथ काम करने का मौका मिला. दोनों कांग्रेस विरोधी थे इसलिए दोनों की प्रकृति आपस में मिल गई. बाद में बहुत सारे सोशलिस्ट भारतीय जनता पार्टी में चले आए जिसमें अशोक भाई भट्ट, ब्रह्म कुमार भट्ट आदि महत्वपूर्ण हैं. जानकारी में रहे कि अशोक भाई भट्ट भी मूल रूप से हिन्दी भाषी ही थे और उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन कपड़ा मिल मजदूरों के बीच काम करके प्रारंभ किया था. 

पूर्व में गुजरात का अधितर हिस्सा मुंबई प्रांत का भाग हुआ करता था. सौराष्ट्र और कच्च द्वितीय और तृतीय श्रेणी का प्रांत हुआ करता था. राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ का काम सन् 1925 से प्रारंभ हो गया था और सन् 1940 तक आते-आते संघ की ताकत जबरदस्त तरीके से बढ़ गई थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सांस्कृतिक हिन्दू आन्दोलन की जद में गुजरात भी था. उन दिनों वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के पिता मधुकर राव भागवत गुजरात के प्रांत प्रचाकर हुआ करते थे. जब सन् 1938 में गुजरात के बडोदड़ा में पहली शाखा लगी तो विदर्भ के गोपाल राव झिंझडे ने लगाई थी, इसलिए न तो कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गुजराती स्वाभिमान का संगठन रहा और न ही जनसंघ से लेकर भाजपा तक गुजराती स्वाभिमान को आगे करके संगठन का विस्तार किया.

जो भाजपा आज गुजरात में दिखाई दे रही है वह पहले ऐसी नहीं थी. उसे नई तरह से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने खड़ा किया. (फोटो: Bjp.org)
जो भाजपा आज गुजरात में दिखाई दे रही है वह पहले ऐसी नहीं थी. उसे नई तरह से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने खड़ा किया. (फोटो: Bjp.org)

भाजपा को खड़ा करने में योगदान
दरअसल, यह विचार नरेन्द्र मोदी के जमाने में प्रभावशाली भूमिका में आया और अब तो यह गुजरात भाजपा की पहचान बन गई है. दूसरी ओर नथालाल झगड़ा, मकरंद भाई देसाई, चीमन भाई शुक्ला, केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला, काशीराम राणा, डॉ. ए.के. पटेल ये कुछ भाजपा ऐसे नाम हैं जिन्होंने गुजरात में भाजपा को सांगठनिक ताकत प्रदान की. इन्हीं लोगों ने भाजपा को गांव-गांव तक ले जाने का काम किया. बेशक ये लोग हिन्दूवादी थे, लेकिन इन लोगों में क्षेत्रवाद नहीं था. यही कारण था कि सौराष्ट्र से होने के बाद भी केशु भाई ने कभी सौराष्ट्रवादी बातें नहीं की, जबकि गुजरात के बन जाने के बाद से ही सौराष्ट्र में अलग से सौराष्ट्र की मांग उठने लगी थी. उठना भी स्वाभाविक है.

सौराष्ट्र की मांग और सियासत
सौराष्ट्र पहले से अलग प्रांत था. यही नहीं सौराष्ट्र की पहले से सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान है. दूसरी ओर जितना तेजी से उत्तर, मध्य और दक्षिण गुजरात का विकास हुआ है उतनी तेजी से सौराष्ट्र का विकास नहीं हुआ है जबकि संसाधन सौराष्ट्र में ज्यादा है. पूरा का पूरा समुद्री किनारा सौराष्ट्र के पास है फिर भी सौराष्ट्र में आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की समस्या है, इसलिए सौराष्ट्र में समय-समय पर अलग प्रांत की मांग उठती रही है. इसलिए भी गुजरात में गरवी गुजरात का नारा प्रभावशाली नहीं हुआ. इसे नरेन्द्र मोदी की भाजपा ने अपने हित और अपने स्वार्थ के लिए प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करने का काम किया.

कुल मिलाकर देखें तो जनसंघ और भाजपा का उद्भव काल हिन्दी भाषियों की पार्टी के रूप में जाना जाता था, लेकिन इसका स्वरूप कालांतर में बदल गया. यह पार्टी अपने स्वरूप में इतना परिवर्तन कर ली कि बाद में कई विवादों को जन्म दिया. कहा तो यहां तक जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी को प्रांत प्रचाकर बनने से रोकने में मराठी ब्राह्मण लॉबी की बड़ी भूमिका थी. नरेन्द्र मोदी इस दंश को झेलकर आगे बढ़े. उन्होंने इस समस्या का समाधान कितना निकाला यह तो पता नहीं, लेकिन इसे हथियार के रूप में प्रयोग किया और आज वे जो भी हैं उसमें इस अंतरविरोध की बड़ी भूमिका है. 

 (इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.) 

By गौतम चौधरी

वरिष्ठ पत्रकार

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *