उत्तर कोरिया लगातार दुनिया में हथियारों की होड़ को बढ़ावा दे रहा है. बीते एक साल के अंदर इस देश ने ऐसी कई न्यूक्लियर मिसाइलों का टेस्ट किया है जिससे पूरी दुनिया में दहशत है. तानाशाह किंम जोंग के ये मिसाइलें दुनिया में हथियारों की होड़ को बढ़ा रही हैं. पूरी दुनिया में लगातार तनाव पैदा कर रहा है. मिसाइलों के परीक्षणों के बीच अमेरिका और नॉर्थ कोरिया आमने-सामने हैं. दरअसल दुनिया में आज विभिन्न देशों द्वारा हथियारों की प्रतिस्पर्धा के बीच विश्व एकता और शांति के लिए निःशस्त्रीकरण की सर्वाधिक आवश्यकता है. हथियारों की होड़ संकटपूर्ण परिस्थितियों को जन्म देती है और निःशस्त्रीकरण शांति और सहयोग की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक साधनों का उन्मूलन ही निःशस्त्रीकरण है.
हथियारों की होड़ रोकना जरूरी
वास्तव में निःशस्त्रीकरण का मतलब है सभी देशों के बेहद विनाशकारी हथियारों को नष्ट कर दिया जाए और भविष्य में ऐसे भयानक हथियारों को न बनाया जाए. इसके साथ ही यह भी उतना ही जरूरी है कि मौजूदा हथियारों के प्रयोग को वैश्विक नीतियों द्वारा व्यवस्थित किया जाए. इस प्रकार निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया शस्त्रा-नियंत्रण के रास्ते से ही होकर जाती है.
उत्तर कोरिया के हथियार और युद्ध का अंदेशा
अभी हाल ही में हमारे सामने उत्तर कोरिया के परमाणु शक्ति परीक्षण और अमेरिका द्वारा उस पर लगाये गये प्रतिबंधों का ताजा उदाहरण मौजूद है, जिसने उत्तर कोरिया की परमाणु शक्ति बनने की लालसा ने अमेरिका जैसी सुपर पावर को उत्तर कोरिया के विरुद्ध, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ खड़ा कर दिया है और सम्पूर्ण विश्व उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के प्रयोगों की धमकी और अमेरिका द्वारा लगाये गये अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से उत्पन्न होने वाली विभीषिका को महाविनाशकारी युद्ध के द्वार खटखटाते हुए स्पष्ट देख रहा है.
आज के इस वैश्विक परिदृश्य में, यदि एक देश अपने हथियारों में आक्रामक वृद्धि करता है, तो उसके अन्य पड़ोसी देशों, देशों में उस देशों से असुरक्षा का भाव पैदा हो जाता है और असुरक्षा का यह भाव अन्य राज्यों को विवश करके अपनी-अपनी सामरिक शक्तियों को बढ़ाने का कार्य करता है. धीरे-धीरे ये सभी देश युद्ध को रोकने की तैयारी में युद्ध के करीब ही आ जाते हैं और इसी के साथ शुरू होता है धमकियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का नया दौर जो विश्व को सामरिक और आर्थिक विनाश के द्वार पर लाकर खड़ा कर देता है.
हथियारों का हिसाब-किताब
आज विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का 20 प्रतिशत भाग सैन्य बलों की वृद्धि और हथियारों की खरीद-फरोक्त में चला जाता है. परिणामस्वरूप ये देश ऋणग्रस्तता के शिकार हो जाते हैं तथा अपनी बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के लिए विकसित देशों द्वारा दिये जाने वाले आर्थिक पैकेजों पर निर्भर हो जाते हैं और विकसित देश भी करोड़ों डॉलर के पैकेजों के बदले अपने सामरिक और राजनैतिक प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए विकासशील देशों की जमीन को अपना नया आर्मी बेस बना लेते हैं, और उस कर्जे में डूबे देश की संप्रभुता तथा सत्ता अप्रत्यक्ष रूप से विकसित देशों के हाथों की कठपुतली बन जाती है, जैसे भारत से अधिक सशक्त बनने की मूर्खता ने आज हमारे सबसे अधिक याद आने वाले पड़ौसी देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अमेरिका और चीन जैसे महत्त्वाकांक्षी देशों द्वारा दिये जाने वाले पैकेजों पर निर्भर कर दिया है. शक्ति प्राप्त होने के बाद उसका सही संतुलन भी नितान्त आवश्यक होता है.
महाभारत से लेनी होगी सीख
महाभारत काल के उस महान शक्तिशाली योद्धा बर्बरीक का उदाहरण देना यहां आवश्यक हो जाता है, जिसके पास अजेय शक्ति होते हुए भी वह उस शक्ति के उचित प्रयोग को नहीं समझ सका और श्रीकृष्ण ने युद्ध से पहले ही उसके द्वारा होने वाले संभावित सम्पूर्ण विनाश को रोक दिया. आज सम्पूर्ण विश्व-बिरादरी इस बात से निरन्तर चिंतित रहती है कि आक्रामकता के आवेश और उचित सुरक्षा के अभाव में पाकिस्तान के महाविनाशकारी परमाणु हथियार कहीं आतंकवादियों के हाथ न पड़ जाएं.
सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद निःशस्त्रीकरण के सभी प्रयास विफल रहे और हथियारों की होड़ ने रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों के बीच शीतयुद्ध को जन्म दिया. 1972 में पहली बार दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने तनाव को घटाकर निःशस्त्रीकरण और शस्त्र-नियंत्रण के लिए संधि कर ली. जिसके अन्तर्गत जैविक व घातक अस्त्रों के विकास, उत्पादन, भण्डारण को सीमित किया जाए और अन्य राज्यों को परमाणुशक्ति सम्पन्न बनने से रोका जाए. हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पारदर्शी विदेश-नीति के अनुरूप ही भारत ने 1986 में हरारे में गुट-निरपेक्ष देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में निःशस्त्रीकरण के प्रति अपनी वचनबद्धता को पुनः दोहराया.
भारत ने निभाई ये प्रमुख भूमिका
भारत ने तीन प्रमुख निःशस्त्रीकरण मंचों अर्थात निःशस्त्रीकरण सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र निःशस्त्रीकरण आयोग और संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली की पहली समिति में प्रमुख भूमिका निभाई और ऐसा भारत की इस आस्था के अनुरूप भी था कि इस आधुनिक युग में निःशस्त्रीकरण केवल शांति के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव-जाति के अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है. निःशस्त्रीकरण को वर्तमान तथा भविष्य की प्रमुख आवश्यकता समझते हुए 1978 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रत्येक वर्ष अपनी वर्षगांठ पर 24 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक निःशस्त्रीकरण सप्ताह मनाने की घोषणा की.
निःशस्त्रीकरण के महत्त्व को समझते हुए ही इसी वर्ष 7 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों ने पहली बार न्यूक्लियर हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए संधि पर हस्ताक्षर किए. निःशस्त्रीकरण को आज के युग की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता समझकर ही विश्व के सबसे सम्मानित नोबल शांति पुरस्कार 2017 के लिए नोबल पुरस्कार समिति ने न्यूक्लियर हथियारों के निःशस्त्रीकरण के लिए 100 से अधिक देशों में अभियान चलाने वाले गैर सरकारी संगठन आईसीएएन का चयन किया है.
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