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आकाश में 300 डिग्री से 330 डिग्री तक के भाग को कुंभ लग्न (Kumbh lagna) कहा जाता है. जिस जातक के जन्म के समय यह भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज पर उदित होता है उसकी राशि कुंभ (Kumbh rashi) होती है. कुंभ राशि वायु तत्व वाली राशि है. इनका स्वामी यूरेनस है. इस राशि के लोग प्रगतिशील, मूल, स्वतंत्र, मानवीय होते हैं.

कुंभ लग्न में चंद्र (Kumbh lagna me chandra)

कुंभ लग्न में चंद्र छठे भाव का अधिपति होता है. छठे भाव का अधिपति होने के कारण चंद्र बीमारी, कर्ज, दुश्मन, चिंता, शंका, पीड़ा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी, साहूकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, अच्छा या बुरा व्यसन जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. इन विषयों में शुभ फल के लिए चंद्र का बलशाली होना जरूरी है.

कुंभ लग्न में सूर्य (Kumbh lagna me surya)

कुंभ लग्न में सूर्य सातवे भाव का अधिपति होता है. सातवे भाव का अधिपति होने के कारण सूर्य स्त्री, कामवासना, चोरी, झगड़ा, अशांति, उपद्रव, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. अगर आपकी कुंडली में सूर्य बलशाली है तो आपको इन विषयों में अच्छे और शुभ फल देता है और अगर कमजोर है तो आपको अशुभ फल मिलते हैं.

कुंभ लग्न में मंगल (Kumbh lagna me mangal)

कुंभ लग्न में मंगल तीसरे और दसवे भाव का अधिपति होता है. तीसरे भाव का अधिपति होने के कारण मंगल नौकर, चाकर, सहोदर, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्यूटर, मोबइल, अकाउंट्स, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, दासता, योगाभ्यास जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं मंगल के दसवे स्थान के अधिपति होने के कारण वह राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपत्ति जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कुंभ लग्न में बुध (Kumbh lagna me budh)

कुंभ लग्न में बुध पांचवे भाव का अधिपति होता है. पांचवे भाव का अधिपति होने के कारण बुध बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की क्षमता, शक्ति नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध कुशलता, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायास धन मिलने की संभावना, व्रत, पुत्र संतान, स्वाभिमान, अंहकार आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कुंभ लग्न में गुरू (Kumbh lagna me guru)

कुंभ लग्न में गुरू ग्यारहवे भाव का अधिपति होता है. ग्यारहवे भाव का अधिपति होने के कारण गुरू चंद्र लोभ, लाभ गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतति, रिश्तेदार, रिश्वतखोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. इन विषयों में अच्छे फल के लिए आपकी कुंडली में आपको गुरू के स्थान का अध्ययन करवाना चाहिए.

कुंभ लग्न में शुक्र (Kumbh lagna me shukra)

कुंभ लग्न में शुक्र चैथे और नवे भाव का अधिपति होता है. चैथे भाव का अधिपति होने के कारण शुक्र भूमि भवन, वाहन, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल-कपट, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थों का सेवन, धन संचय, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं नवे भाव का अधिपति होने के कारण शुक्र धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्ममा, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, पिता का सुख, तीर्थ यात्रा, दान, इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कुंभ लग्न में शनि (Kumbh lagna me shani)

कुंभ लग्न में शनि पहले और बारहवे भाव का अधिपति होता है. पहले भाव का अधिपति होने के कारण शनि आपके रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख-दुख, विवेक, मस्तिष्क, व्यक्ति के स्वभाव, आकृति और उसके संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है. बारहवे भाव का अधिपति होने के कारण शनि . निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लंपटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कुंभ लग्न में राहु (Kumbh lagna me raahu)

कुंभ लग्न में राहु आठवे भाव का स्वामी होता है. आठवे भाव का स्वामी होने के कारण कुंभ व्याधि, जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचारधारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, जेलयात्रा, अस्पताल, भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

कुंभ लग्न में केतु (Kumbh lagna me ketu)

कुंभ लग्न में केतु दूसरे भाव का अधिपति होता है. दूसरे भाव का अधिपति होने के कारण केतु आपके कुल, आंख, नाक, कान, गला, स्वर, आभूषण, सौंदर्य, गायन कुटुंब का प्रतिनिधित्व करता है. उपरोक्त विषय में अच्छे फल के लिए आपकी कुंडली में केतु की स्थिति का बलशाली होना जरूरी होता है. अगर आपका केतु कमजोर स्थान पर है तो आपको उपरोक्त विषय में अशुभ फल मिलते हैं.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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