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Narak Chaturdashi 2023 : कब है नरक चतुर्दशी? क्यों की जाती है यमराज की पूजा, जानिए विधि और महत्व

नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है.

Narak Chaturdashi 2023 : हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है. यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार इस वर्ष चतुर्दशी तिथि 11 और 12 नवंबर को पड़ेगा है. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करने का विधान है. नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है. यह धनतेरस के एक दिन बाद और दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार यह मान्यता है कि इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करने और शाम के समय यह देवता के नाम से दिए जलाने पर अकाल मृत्यु कब है समाप्त हो जाता है. तो आईए जानते हैं नरक चतुर्दशी पर क्यों की जाती है यमराज की पूजा, क्या है इसका महत्व और पूजा की विधि.

नरक चौदस की पूजा विधि और महत्व

हिंदू धर्म में मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु के भाई से मुक्त करते हैं इस दिन दिए का दान भी करना शुभ माना जाता है. यमराज की पूजा के लिए नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के पहले शरीर पर तेल और उबटन लगाकर स्नान करें. इसके बाद विधि विधान से यमराज की पूजा करें. ऐसा करने से सभी रोग दूर होते हैं. इस वर्ष स्नान का समय 12 नवंबर 2023 को सुबह 5:28 से 6:41 तक का है. सुबह पूजा करने के साथ ही शाम को दिए जलाना चाहिए और दीपदान भी करना चाहिए. 

नरक चतुर्दशी पर क्यों की जाती है यमराज की पूजा?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान यम की पूजा करने के पीछे एक रोचक कथा है. कथा के अनुसार रति देव नामक राजा हुआ करते थे. इनका जीवन काफी धार्मिक था. राजा ने अपने राज्य काल के समय में किसी भी तरह का अन्याय नहीं किया था. किंतु एक दिन लंबे समय तक वैभव के साथ राज करने के बाद राजा का अंत निकट आ गया. जब यमराज उनको लेने आएं, तब राजन ने यमराज से कहा कि मैंने अपने पूरे जीवन में पापा नहीं किया तो फिर मुझे नरक क्यों जाना पड़ रहा है.

राजा के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यमराज ने कहा कि एक बार साधुओं का एक समूह आपके दरवाजे से भूखा लौट गया था. यह सुनते ही राजा ने यमराज से एक वर्ष का समय मांगा. यमराज ने भी राजा की बात मान ली और उन्हें समय दे दिया. इसके बाद राजा साधु-संतों के पास गए और पूछा इस पाप का क्या प्रायश्चित हो सकता है. साधुओं ने उन्हें बताया कि नरक चतुर्दशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करने से पाप का नाश होगा. राजा ने वैसा ही किया और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई.

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध किया था. तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन माता काली और कृष्ण की पूजा की जाती है. नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के नाम से दिए जलाए. इस दिए को दक्षिण दिशा में जालना ही शुभ होता है.

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