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देवी के नौ रूपों के बीच एक और रूप की चर्चा होती है और वह मां कामाख्या. भारत सहित पूरी दुनिया के भक्तों के लिए असम के दिसपुर गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर स्थित मां कामाख्या का मंदिर आराधना का मुख्य स्थल है.(kamakhya temple story in hindi) नवरात्रि के नौ दिनों में तो मां कामाख्या के मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था और भी बढ़ जाती है.

मां कामाख्या के मंदिर का तांत्रिक महत्व है. असम की राजधानी दिसपुर गुवाहाटी से तकरीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर नीलांचल या नीलशैल पर्वतमालाओं के बीच स्थित है. देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सबसे अहम स्थान रखता है.

यहां भगवती की महामुद्रा यानी की योनि-कुण्ड स्थित है. एक तरह से यहां योनी की पूजा होती है. कामाख्या मंदिर की खास बात यह है कि यह देवी भगवती का कौमारी तीर्थ माना जाता है. यहां कौमारी पूजा अनुष्ठान का सबसे ज्यादा महत्व है. 

देश के 52 शक्ति पीठों में से एक है असम में स्थित मां कामाख्यादेवी देवी शक्तिपीठ. इस शक्तिपीठ में नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु माता के दर्शनों के साथ ही जप-तप और तंत्र सिद्धि के लिए भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. कहते हैं कि नवरात्रि में यहां साधना करने वालों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. विशेष रूप से संतान की इच्छा लेकर पहुंचने वाले भक्तों को कभी निरास नहीं होना पड़ता है. 

तंत्र साधना के लिए आते हैं भक्त
असम की राजधानी गुवाहाटी से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मां कामाख्या देवी मंदिर. यहां माता के योनि रूप की पूजा की जाती है. बनारस के ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज पांडेय बताते हैं कि नवरात्रि विशेष पूजा-अर्चना करने के लिए मां के उपासक कामाख्या मंदिर पहुंचते हैं. 

नौ दिन तक ही मां के दरबार में जप करते हैं. जिससे उनका जप सिद्ध हो जाता है. यहां सिर्फ तंत्र सिद्धि के लिए ही नहीं बल्कि संतान प्राप्ति के लिए भी लोग दूर-दूर से आते हैं. महिलाएं यहां पर मां की विशेष पूजा करती हैं, जिससे उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है.

तीन दिन कन्याएं करती हैं पूजा
मान्यता है कि यहां पर माता सती का योनि रूप गिरा था और इसीलिए माता तीन दिनों तक रजस्वला होती हैं. उस समय यहां पर रोहिणी कन्याएं (10 वर्ष से कम आयु की कन्याएं) माता की पूजा करती हैं. तीन दिनों के लिए मंदिर के दरवाजे भक्तों के लिए बंद कर दिए जाते हैं. उस समय मंदिर में सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. जो कि लाल रंग का हो जाता है. जिसे प्रसाद स्वरूप मां के सभी उपासकों को बांटा जाता है.

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