Sat. Dec 7th, 2024

चाहे बिहार हो या यूपी या कोई और प्रदेश, आए दिन किसी न किसी रूप में भारत के किसी न किसी थाने से पुलिस के आम आदमी से दुर्व्यवहार, दुराचार की शिकायतें आती रहती हैं. ये किसी भी रूप में हो सकती हैं. कभी पिटाई की तो कभी आम आदमी को धमकाने डराने की. यदि पुलिस की शिकायतों पर एक्शन ली जाती है जिससे दो चार दिन हो हल्ला होता है. सत्तासीन दल दो-चार दिन आश्वासन और भरोसा देकर और विरोधी दल शोर मचाते हैं. फिर यह मामला पुलिस और जनता के बीच से हट कर सत्तासीन और विपक्षी दलों के बीच का हो जाता है. आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति होती है और बात आई गई हो जाती है.

इधर, यदि कार्रवाई हुई भी तो नाम पर दो चार पुलिस वालों के लाइन हाजिर (यह कोई दण्ड नहीं है, मात्र घटना क्षेत्र से संबंधित को हटाना मात्रा होता है), निलम्बित (यह भी कोई दण्ड नहीं है, एकाध महीने में ऐसे आरोपी को सवेतन बहाल कर अन्यत्र तैनाती दे दी जाती है) हो जाने से जनता भी संतुष्ट होकर बैठ जाती है.

कैसे बदलेगा पुलिसिया सिस्टम

दरअसल, आजादी के 70 साल में 70 प्रकरण भी ऐसे नहीं हैं जब इतने बड़े देश में पुलिस के प्रति कोई बहुत बड़ा आन्दोलन या विरोध चला हो. बल्कि रोज पुलिस द्वारा कानून की अवमानना हुई है और कई ऐसे बड़े अपराध और घटनाएं रहीं हैं जिनमें किसी ना किसी तरह पुलिस की संलिप्तता सामने आई है. कभी अपराधी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने और फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस बंद करने के रूप में.

हाल ही में कठुआ मामला हो या उन्नाव की घटना सभी जगह पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में रही. यही नहीं फिर बीते साल गुड़गांव का रेयान स्कूल केस में एक बस कन्डक्टर को पकड़ कर उससे गुनाह कबूल करवाकर उसे कोर्ट में पेश भी कर दिया गया. सुबह सात बजे हत्या का कारण भी बना दिया गया कि रात को उसकी पत्नी से लड़ाई हुई थी, इसलिए उसने बच्चे प्रद्युम्न से दुष्कर्म की चेष्टा की थी. बाद में सीबीआई ने इस पूरी थ्योरी को उलटकर एक सीनियर छात्रा जो अपराधी प्रवृत्ति का था, को हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया और उन्होंने जो कारण बताए, वे किसी हद तक माने जाने योग्य थे.

कहां है सिस्टम में दोष?

1886 में बनाया गया पुलिस एक्ट आजादी के बाद से आया पुलिस व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष है. यह एक्ट जो अंग्रेजों ने अपने हिसाब से भारत की जनता को काबू में रखने के लिए बनाया था और वह अभी तक बहुत थोड़े से संशोधनों के चलते चल रहा है. इस एक्ट में पुलिस को अपराध लिखने और उसकी विवेचना के जो अधिकार दिए गए हैं वे पुलिस की मनमानी के सबसे बड़े कारण हैं. यदि आप स्वयं ही दोष लगाने और उन दोषों की जांच करने के अधिकारी हैं तो आपसे निष्पक्षता की अपेक्षा मूर्खता है. इसे तुरंत बदलना जनहित में है.

जवाबदेही का अभाव –

इसका दूसरा कारण है जवाबदेही का अभाव. सामान्यतः यह देखा गया है कि थाना हो या उसके कर्मचारी, छोटे-मोटे अपराधियों के बारे में पुलिस को जानकारी होती है. यदि हर पुलिस वाले के अधीन क्षेत्र की जबावदेही उस पर डाल दी जाए और अपवादों को छोड़कर उस क्षेत्र में संगठित रूप से कोई अपराध होता है, तो उस क्षेत्र के सबसे बड़े अधिकारी को सस्पेंड नहीं, बर्खास्त करने की व्यवस्था की जाए तो अपेक्षात्मक सुधार संभव हो सकता है.

इस संबंध में अनेक आयोगों द्वारा बहुत अच्छी-अच्छी सिफारिशें की गई हैं, किन्तु बड़े अफसरों और राजनेताओं के स्वार्थों के चलते वे रद्दी के ढेरों में पड़ी हैं. आज आवश्यकता इस बात कि है कि उन्हें निकाला जाए और क्रमशः उन्हें लागू किया जाए. सबसे बड़ी बात यह है कि जिस व्यक्ति से घूस मांगी जा रही है, उस के शिकायत करने पर उसे प्रश्रय दिया जाय.

समाज भी हो जागरूक 

ऐसा नहीं है कि सारी जवाबदारी केवल पुलिस या सरकार की ही हो, समाज का जागरूक होना भी जरूरी है. लोगों को शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाय और घूसखोरी के मुकदमों का त्वरित निस्तारण सम्भव किया जाय. कानूनी प्रक्रिया को सरलीकृत किया जाय. इसके अलावा पुलिस सिस्टम में सुधार के लिए पुलिस को राजनैतिक दबावों से मुक्त रखने की एक मजबूत व्यवस्था बनाकर लागू की जाय.

By राज सक्सेना

स्तंभकार.

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *