Sat. Apr 20th, 2024

मप्र में मुश्किल में भाजपा, अपनों से घिर रहे शिवराज…!

shivraj-singh-chouhan-losing-ground-in-madhya-pradesh. (Image Source: Social Media)shivraj-singh-chouhan-losing-ground-in-madhya-pradesh. (Image Source: Social Media)
मध्य प्रदेश में 2018 में चुनाव होने जा रहे हैं. चित्रकूट की हार बीजेपी के लिए कई संकेेेत दे रही है. (फोटो: Social Media)
मध्य प्रदेश में 2018 में चुनाव होने जा रहे हैं. चित्रकूट की हार बीजेपी के लिए कई संकेेेत दे रही है. (फोटो: Social Media)

मध्य प्रदेश के सतना जिले की चित्रकूट विधानसभा के उप चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. यहां कांग्रेस उम्मीदवार नीलांशु चतुर्वेदी ने भाजपा के शंकरदयाल त्रिपाठी को 14,133 मतों के अंतर से हरा दिया. यहां बीते 9 नवंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग हई थी. बहरहाल, इस हार ने राज्य में शिवराज का प्रभाव कम और वहीं बीजेपी की लहर फीकी पड़ने के संकेत दिए हैं. हालांकि बीजेपी इस हार को कांग्रेस की परंपरागत सीट पर जीत के रूप में देख रही है वहीं कांग्रेस इसे एक बड़े परिवर्तन के रूप में देख रही है. बता दें कि इस सीट पर शिवराज सिंह चौहान ने बीते 3 दिनों में तकरीबन 60 रैलियां की थी. बहरहाल अभी प्रदेश में दो और विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. यह दोनों सीटें कांग्रेस विधायकों के निधन की वजह से खाली हुई हैं. संभव हो ये चुनाव आम चुनाव के समय ही हो.

2018 में है राज्य में चुनाव, शिवराज की अग्नि परीक्षा
2018 में मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव का समय जैसे- जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे प्रदेश में राजनैतिक हलचल भी तेज होती जा रही है. वैसे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बीते 14 सालों से सत्ता में है लेकिन शिवराज शासन की अगर बात की जाए तो वे विगत 12 वर्षों से प्रदेश की बागडोर संभाले हुए हैं. इन बारह सालों में शिवराज सिंह सरकार के नाम निःसंदेह रूप से कई उपलब्धियां हैं, लेकिन शिवराज के श्वेत-धवल कुर्ते पर अब कुछ भ्रष्टाचार के दाग भी दिखने लगे हैं.

हालांकि भारतीय जनता पार्टी की मानें तो प्रदेश में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है. परिस्थितियां ठीक-ठाक का इशारा नहीं कर रही हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि लंबे समय से एक ही नेतृत्व को देखकर प्रदेश की जनता अब थोड़ी उब-सी महसूस कर रही है. फिर शिवराज सरकार के पर कई भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं. यही नहीं भाजपा के अंदर भी शिवराज के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं. संभव है कि इसका खामियाजा इस बार मध्य प्रदेश भाजपा को उठाना पड़े, इसलिए अभी से ही यह कहा जाने लगा है कि इस बार शिवराज का राजसी सफर आसान नहीं होगा.

कम नहीं है शिवराज सरकार की उपलब्धियां
अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो इस सरकार की सबसे बड़ी सफलता मध्य प्रदेश के माथे से बीमारू राज्य का तगमा का हट जाना है. इसका क्रेडिट केवल और केवल शिवराज सिंह को दिया जाना चाहिए. बिजली उत्पादन के क्षेत्र में आज मध्य प्रदेश सरप्लस स्टेट में श्रेणी में शामिल हो चुका है. यहां 15500 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है, जबकि मांग महज 6000 मेगावाट की है जो रबी के समय में यह मांग बढ़कर अधिकतम 10000 मेगावाट तक चली जाती है.

वहीं अटल ज्योति योजना के अन्तर्गत 24 घंटे बिजली देना प्रदेश सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक है. बिजली आपूर्ति से प्रदेश में आधारभूत संरचनाओं का भी बड़ी तेजी से विकास हुआ है, लेकिन देश के बाकी राज्यों के मुकाबले यह सबसे अधिक बिजली टैरिफ वाले राज्यों में शामिल है. पर्यटन के क्षेत्र में ‘हिन्दुस्तान का दिल देखो’ ऐड कैम्पेन से मध्य प्रदेश ने देश में उत्कृष्ट स्थान हासिल किया. इसके लिए 2008 में संयुक्त राज्य संघ द्वारा मध्य प्रदेश को पर्यटन के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ राज्य घोषित किया गया और वर्ष 2015 में छह राष्ट्रीय पुरस्कार भी मध्य प्रदेश के खाते में आए. उसी प्रकार लगातार चार बार कृषि कर्मण अवॉर्ड जीतने वाला देश का यह पहला राज्य बन गया है. यह भी सत्य है कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में आशातीत निवेश नहीं हुआ है, लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि कुछ क्षेत्रों में प्रदेश के अंदर आशा से अधिक निवेश हुआ है. कुल मिलाकर प्रदेश में निवेश का माहौल बना है और आईटी, औटॉमोबाईल, रक्षा, इनर्जी, फार्मास्यूटिकल, टैक्सटाईल, पर्यटन आदि के क्षेत्रों में राज्य ने जबरदस्त तरीके से निवेष आकर्षित किया है. सिंगलविंडो के माध्यम से तीव्रगति से एक महीने के अंदर सरकारी प्रक्रिया पूरी कि जा रही है. इस योजना ने बाहर के निवेशकों को बेहद प्रभावित किया है.

उपलब्धियों के पीछे चल रही परेशानियां
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार की जितनी उपलब्धि है उससे कहीं ज्यादा बदनामी भी हुई है. कई मोर्चों पर सरकार से चूक हुई है, वरना 2015 में भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले रतलाम और झाबुआ लोकसभा सीट उप चुनाव के लिए बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए दर्जन भर सभाएं करने और 15 मंत्रियों, 16 सांसदों एवं 60 विधायकों के साथ चुनाव प्रचार करने के बावजूद भाजपा हारती ही क्यों? देवास में जीत का अन्तर भी चेहरे पर खुशी लाने वाला नहीं अपितु माथे पर बल पैदा करने वाला ही कहा जा सकता है. समीक्षा की जाए तो भले ही सरकार अपनी उपलब्धियों को आज अखबारों में, बड़े-बड़े विज्ञापनों से राज्य में तरक्की का श्रेय ले रही हो लेकिन धरातल पर शिवराज सरकार की लोकप्रियता में निश्चित रूप से कमी आई है.

इसके बाद भी शिवराज गलती पर गलती करते जा रहे हैं. व्यापमं घोटाला, भ्रष्टाचार की सारी हदें पार गया. इस मामले में सैंकड़ों छात्रों और गवाहों की मौत का काला कलंक शिवराज के माथे पर ही है. इतना ही नहीं किसान आंदोलन में किसानों पर गोली चलाना सरकार की एक बहुत बड़ी गलती थी, जो संभव है सरकार को आने वाले समय में उलटा पड़ जाए. दरअसल, यह सरकार के अति-आत्मविश्वास एवं प्रशासन तंत्र द्वारा गलत ब्रिफिंग का नतीजा कहा जा सकता है. स्वयं को किसान का बेटा कहने वाले शिवराज के 13 वर्षों के शासन में खुद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में जारी आंकड़ों के अनुसार 15129 किसानों ने आत्महत्या की है. एक तरफ सरकार दावा कर रही है कि राज्य में चार सालों में कृषि विकास दर 20 प्रतिशत बढ़ी है, तो दूसरी तरफ उसके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं है कि प्रदेश का किसान असंतुष्ट क्यों है? कभी प्याज तो कभी टमाटर सड़क पर फेंकने के लिए मजबूर क्यों है? कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार कृषि यंत्रों की सरकारी खरीदी में 261 करोड़ की धांधली हुई है.

यहां भी पिछड़े शिवराज
स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो उनमें भी गिरावट आई है.  शिशु-मृत्यु दर और कुपोषण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. शिक्षा के क्षेत्र में ढेर सारे इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाने के बावजूद उनमें से न तो अच्छे इंजीनियर निकल रहे हैं न ही इन कालेजों से निकलने वाले युवाओं को नौकरी मिल पा रही है, जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है. प्रदेश में अवैध खनन ने भी सरकार की साख ही नहीं राज्य के राजस्व पर भी गहरा वार किया है.  अगर सरकार की नाकामयाबियों के कारणों को टटोला जाए तो बात प्रदेश की नौकरशाही पर आकर रुक जाती है.

मप्र में भाजपा का सफर और शिवराज की सफलता
पहली बार पूर्णरूपेण भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में 05 मार्च, सन् 1990 में सुन्दरलाल पटवा के नेतृत्व में सत्ता में आई. सुन्दरलाल पटवा 15 मई 1992 तक सत्ता में बने रहे. वैसे सन् 1980 में जनता पार्टी की सरकार में भी पटवा को 29 दिनों के लिए प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन उस सरकार में भारतीय जनता पार्टी का कुछ भी नहीं था. वह सरकार जनता पार्टी की थी और जनता पार्टी में जनसंघ का विलय का दिया गया था. याद रहे भारतीय जनता पार्टी का निर्माण जनता पार्टी के टूट जाने के बाद हुआ है.

सन् 1992 में पटवा के सत्ता छोड़ने के बाद प्रदेश थोड़े समय में लिए, 16 मई से लेकर 06 दिसम्बर तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा. इसके बाद 08 दिसम्बर, सन् 2003 को एक बार फिर साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा मध्य प्रदेश में लौटी. उमा भारती ने 23 अगस्त 2004 तक बतौर मुख्यमंत्री प्रदेश का नेतृत्व किया. उमा भारती के ऊपर आरोप लगने के कारण उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी. (इसके बाद 23 अगस्त 2004 से 29 नवम्बर 2005 तक बाबूलाल गौर ने मध्य प्रदेश का कमान संभाला.

पार्टी के अंदर आपसी गतिरोध के कारण बाबूलाल गौर को सत्ता गंवानी पड़ी और तब से प्रदेश की कमान सीधे तौर पर शिवराज सिंह चौहान के पास है. शिवराज सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे कुशल नेतृत्वकर्ता हैं. उनके नेतृत्व में निःसंदेह प्रदेश प्रगति के पथ पर सरपट दौरने लगा है, लेकिन शिवराज के शासन काल का कुछ स्याह पक्ष भी सामने आया है जो कल्पना से ज्यादा काला है.

अपनों से भी घिरे हैं शिवराज
समाचार माध्यमों में सार्वजनिक की गई खबरों पर भरोसा करें तो विगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की समन्वय बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तक ने नौकरशाही का सरकार पर हावी होने का मुद्दा उठाया था. प्रदेश की बेलगाम और भ्रष्टाचार में डूबी नौकरशाही के कारण प्रदेश में न तो गुड गवर्नेंस हो पा रही है और न ही सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन हो पा रहा है. इसमें सरकार के नेता भी संलिप्त हैं. एक-एक नेताओं ने अपार संपत्ति जमा कर ली है. प्रदेश भाजपा के नेता जो कल तक साइकिल तक नहीं खरीद सकते थे उनके पास में न जाने कितनी संपत्ति एकत्रित हो गयी है.

इसके अलावा प्रदेश में भाजपा के अंदर अंतरकलह भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अब कई नेता मुखर होने लगे हैं. हालांकि आज भी प्रदेश में शिवराज का व्यक्तित्व अब भी बेहद प्रभावशाली है और उन्हें कोई खतरा दिखाई नहीं देता, लेकिन अब उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस की तरह प्रदेश में भाजपा के कई क्षत्रप उभर कर सामने आएंगे और तब भाजपा का प्रदेश में फिर से लौट पाना कठिन हो जाएगा.

(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)

By गौतम चौधरी

वरिष्ठ पत्रकार

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *