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विजया एकदशी : हर कार्य में होगी आपकी विजय, ऐसे करें विजया एकादशी व्रत

vijya ekadashi

हर माह में दो एकादशी आती है. फरवरी के माह में हिन्दू पंचांग के हिसाब से मुख्य रूप से माघ माह आ रहा है, जिसकी दोनों एकादशी फरवरी में ही आ रही है. फरवरी में आने वाली पहली एकादशी जया एकादशी है और दूसरी प्रमुख एकादशी विजया एकादशी है. (Vijya Ekadashi Vrat katha) विजया एकादशी की पूजा विधि और विजया एकादशी की कथा आप यहाँ पढ़ सकते हैं.

विजया एकादशी कब है? (Vijya Ekadashi Kab Hai?) 

विजया एकादशी हर वर्ष माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस वर्ष यह 16 फरवरी, बृहस्पतिवार को आ रही है. पंचांग के अनुसार तिथि का प्रारंभ 16 फरवरी 2023 को सुबह 5 बजकर 32 मिनट से अगले दिन 17 फरवरी 2023, शुक्रवार के 2 बजकर 49 मिनट तक रहेगी.

विजया एकादशी की पूजा विधि (Vijya Ekadashi Puja Vidhi)

विजया एकादशी की पूजा यदि विधि-विधान से की जाए तो आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. आपकी हर कार्य में विजय होती है.

– विजया एकादशी का व्रत करने के लिए दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाएं.
– उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें.
– उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें. उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें.
– एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें.
– तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें.
– द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें.

विजया एकादशी की कथा (Vijya Ekadashi Vrat katha) 

श्री भगवान बोले हे राजन् – फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।

ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है।

विजया एकादशी की कथा के अनुसार त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हुआ, तब वे श्री लक्ष्मण तथा माता सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे. वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए.

घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुंचे तो जटायु ने उन्हें सीताजी के बारे में बताया और स्वर्गलोक चले गए. आगे चलकर श्रीराम की मित्रता सुग्रीव से हुई और बाली का वध किया. इसके बाद हनुमानजी ने लंका जाकर सीताजी का पता लगाया और वहाँ माता सीता को भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता के बारे में बताया. जब हनुमान वापस लौटे तो माता सीता का समाचार उन्होंने श्रीराम को दिया.

समाचार पाकर भगवान राम के साथ समस्त वानर सेना ने लंका की ओर प्रस्थान किया. जब समस्त सेना समुद्र किनारे पहुंची तो समुद्र देखकर सबके मन में विचार आया कि इतने बड़े समुद्र को कैसे पार करेंगे. तब अनुज लक्षमन जी ने कहा की यहाँ से आधा योजन दूर पर वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं उनके पास इस समस्या का हल अवश्य होगा.

श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए. उनसे इस समस्या का वर्णन करके हल पूछा तो मुनि बोले हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से आपको विजय अवश्य प्राप्त होगी और आप समुद्र भी बिना किसी बाधा के पार कर पाएंगे.

आगे चलकर भगवान राम ने एकादशी व्रत किया और उन्हें समुद्र पार करने का रास्ता मिला.

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By पंडित नितिन कुमार व्यास

ज्योतिषाचार्य पंडित नितिन कुमार व्यास मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में रहते हैं. वे पिछले 35 सालों से ज्योतिष संबंधी परामर्श और सेवाएं दे रहे हैं.

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