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षटतिला एकादशी पर पढ़ें व्रत कथा, जानें क्या है दान का महत्व?

shattila ekadashi

साल 2023 में जो दूसरी एकादशी आ रही है वो षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2023) आ रही है. माघ माह में मनाई जाने वाली इस एकादशी का विशेष महत्व है. ये एकादशी आपको सभी प्रकार के पापों से मुक्त करती है और आपके दान पुण्य को सफल बनाती है. षटतिला एकादशी का व्रत करने तथा कथा (Shattila Ekadashi Katha) सुनने से आपको विशेष लाभ होता है. 

षटतिला एकादशी कब है? (Shattila Ekadashi Kab hai?) 

षटतिला एकादशी एक महत्वपूर्ण एकादशी है जिसे करने से बैकुंठलोक में आनंद पूर्वक जीवन मिलता है. हर वर्ष हिन्दू पंचांग के हिसाब से ये माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है. इस वर्ष 15 जनवरी 2023, रविवार को षटतिला एकादशी आने वाली है.

षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja Vidhi) 

इस दिन स्नान का विशेष महत्व है. यदि संभव हो सके तो किसी पवित्र नदी में अवश्य स्नान करें. यदि आप स्नान करने नहीं जा सकते हैं पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें.

इसके बाद तांबे के लोटे में जल और तिल डालकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें. इसके बाद विधिवत माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें. इस दिन यदि आप व्रत करना चाहते हैं तो सुबह व्रत का संकल्प लें और सुबह और शाम को भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा करें. इसके अलावा इस दिन दान अवश्य करें क्योंकि इस दिन किए गए दान का विशेष महत्व होता है.

षटतिला एकादशी की कथा (Shattila Ekadashi ki Katha) 

कथा के अनुसार एक बार एक नगर में एक ब्राहमणी रहा करती थी. वह सदैव ही भगवान के व्रत और पूजन किया करती थी. वह पूजन तो करती थी लेकिन कभी भी दान नहीं करती थी. उसने कभी भी दूसरे ब्राह्मणों को दान नहीं दिया था. उसने कठोर व्रत एवं पूजन किया जिससे विष्णु भगवान काफी प्रसन्न हुए. लेकिन विष्णु भगवान ने सोच कि इसने व्रत एवं पूजन से शरीर तो शुद्ध कर लिया जिससे इसे बैकुंठलोक में जगह मिल जाएगी. लेकिन इसके अभी अन्न का दान नहीं किया था तो बैकुंठ में इसके भोजन का क्या होगा?

ऐसा सोचकर भगवान विष्णु एक भिखारी के वेश में उस ब्राहमणी के घर भिक्षा मांगने गए. उस ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु को एक मिट्टी का ढेला दे दिया. भगवान उस मिट्टी के ढेले को लेकर बैकुंठ लौट आए.

ब्राह्मणी के द्वारा मिट्टी दान किए जाने के कारण उसे बैकुंठ लोक में महल मिला लेकिन उसके महल में अन्न नहीं था. ये देखकर वह विष्णु भगवान से बोली की मैंने जीवनभर आपका व्रत और पूजन किया लेकिन मेरे घर में कुछ भी नहीं है.

भगवाने ब्राह्मणी की समस्या सुनकर कहा कि तुम बैकुंठ लोक की देवियों से मिलकर षटतिला एकादशी व्रत और दान का महत्व सुनो. उसका पालन करो. तुम्हारी सारी गलतियाँ इस बार व्रत करने और तिल दान करने से माफ हो जाएगी.

ब्राह्मणी ने सभी देवियों के साथ षटतिला एकादशी का माहात्म सुना और व्रत करने के साथ तिल का दान किया. इसके बाद उसका महल अन्न से भर गया और ब्राह्मणी आराम से बैकुंठ लोक में अपने महल में रहने लगी.

कहा जाता है कि षटतिला एकादशी का व्रत करने से और तिल का दान करने से बैकुंठलोक में जीवन सुखमय रहता है.

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By पंडित नितिन कुमार व्यास

ज्योतिषाचार्य पंडित नितिन कुमार व्यास मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में रहते हैं. वे पिछले 35 सालों से ज्योतिष संबंधी परामर्श और सेवाएं दे रहे हैं.

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