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आकाश में 30 डिग्री से 60 डिग्री तक के भाग को वृष राशि (Vrish rashi lagna) के नाम से जाना जाता है. जिस जातक का जन्म आकाश के इस भाग के समय अनुसार होता है उसका लग्न वृष माना जाता है. वृष राशि पृथ्वी तत्व वाली राशि है जिसका स्वामी शुक्र है. इस राशि के जातक शक्तिशाली और विश्वसनीय होते हैं और सभी सुंदर चीजों से प्रेम करते हैं.

वृष लग्न में चंद्रमा (Vrish lagna me chandra)

वृष लग्न में चंद्रमा तीसरे स्थान का अधिपति होता हे. ये व्यक्ति के नौकर, सहोदर, अभक्ष्य पदार्थों के सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्यूटर, अकाउंट्स, मोबाइल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योगाभ्यास आदि का प्रतिनिधित्व करता है. वृष राषि के जातकों को संतुष्ट करने वाले कार्य इसी से होते हैं. ये अपने स्थान के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है. इसके अशुभ फल से जातक को मानसिक क्लेश प्राप्त होता है.

वृष लग्न में सूर्य (Vrish lagna me surya)

वृष लग्न में सूर्य चैथे स्थान का अधिपति होता है. यह जातक के माता, भूमि, वाहन, मित्र, साझेदार, शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति दया, परोपकार, कपट छल, अंतकरण की स्थिति, धन की बचत, झूठा आरोप, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह, इत्यादि बातों का प्रतितिधत्व करता है. वृष लग्न के जातक को अपने नाम, यश और कीर्ति के लिए चैथे भाव का अध्ययन जरूर करवाना चाहिए.

वृष लग्न में मंगल (Vrish lagna me mangal)

वृष लग्न में सातवे और बारहवे भाव का स्वामी होता है मंगल. सातवे भाव का अधिपति होने के नाते मंगल जातक के घर, गृहस्थी सहित लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, चोरी, झगड़े, अशांति, उपद्रव, आदि का कारक होता है. जन्मकुंडली में मंगल के बलवान एवं शुभ में रहने से जातक की खर्च शक्ति की योग्यता बढ़ती है जिससे घर के कार्य कार्यान्वित करने में सुख और सहजता प्राप्त होती है.

वृष लग्न में शुक्र (Vrish lagna me shukra)

वृष लग्न में पहले और छठे भाव का स्वामी शुक्र होता है. यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, आयु, शरीर, सुख-दुख, विवेक, बुद्धि, व्यक्ति का स्वभाव, शारीरिक आकृति एंव संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है. सातवे भाव में शुक्र रोग, कर्ज, दुश्मन, अपमान, चिंता शंका, पीड़ा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी, साहुकारी जैसी चीजों का प्रतिनिधित्व करता है.

वृष लग्न में बुध (Vrisha lagna me budh)

वृष लग्न में बुध दूसरे भाव का स्वामी होता है. यह जातक के कुल, कुटुंब, विद्या, नाक, कान, गला, आंख, आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली में बुध के शुक्र के प्रभाव मंे रहने पर वृष लग्न के जातकों को बताए गए विषयों में सहजता और शुभ फल प्राप्त होते हैं. इसके विपरीत अगर बुध कमजोर स्थान पर बैठा हो तो बताए गए संदर्भों में न्यूनता देखने को मिलती है.

वृष लग्न में गुरू (Vrish lagna me guru)

वृष लग्न में बृहस्पति अष्टम भाव का स्वामी होता है. ये व्यक्ति के जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचारधारा, जेल यात्रा, दुर्भाग्य, ससुराल, आलस्य, अस्पताल, आॅपरेशन, जादू टोना, आदि का प्रतिनिधित्व करता है. बृहस्पति के बलवान होने से इन सभी विषयों में शुभ फल मिलते हैं और कमजोर होने से उसके विपरीत फल मिलते हैं.

वृष लग्न में शनि (Vrish lagna me shani)

वृष लग्न में शनि नौवे और दसवे स्थान का स्वामी होता है. नवम अधिपति होने के नाते यह जातक के पुण्य, धर्म-कर्म, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थयात्रा, दान, पिता का सुख, प्रवास, शील, तप, भाग्योदय, मानसिक वृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है. इसके दसवे स्थान पर होने से यह पैतृक संपत्ति मान-प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

वृष लग्न में राहु (Vrish lagna me rahu)

वृष लग्न में राहु पांचवे स्थान का स्वामी होता है. यह जातक के जीवन की सबसे जरूरी बातें तय करता है. जैसे बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण शक्ति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अचानक से धन की प्राप्ति, पुत्र संतान, स्वाभिमान आदि.

वृष लग्न में केतु (Vrish lagna me ketu)

वृष लग्न में केतु ग्यारहवे भाव का स्वामी होता है. इससे जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतति, रिश्तेदार, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेइमानी जैसी चीजे तय होती है. केतु का बलशाली होना शुभ फल देता है और कमजोर होना अशुभ फल देता है.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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