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हर व्यक्ति अपने जीवन में वैष्णो देवी की यात्रा करने के बारे में सोचता है. वैष्णो देवी माता के दर्शन के लिए लोग बड़ी दूर-दूर से आते हैं. माँ वैष्णो देवी की यात्रा का एक अलग ही महत्व है जिसे हिन्दू धर्म में काफी ज्यादा माना जाता है. ऊंचे पहाड़ों पर स्थित मां वैष्णो देवी के मंदिर के दर्शन के हर साल कितने ही यात्री आते हैं और दर्शन करके अपने जीवन को धन्य समझते हैं. मां वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन के लिए आपको पता होना चाहिए की यहाँ कैसे पहुंचे और यहाँ कौन-कौन से अन्य मंदिर हैं.

दर्शन के लिए कटरा से यात्रा पर्ची ले (Vaishno devi yatra parchi) 

मां के प्रति आस्था रखने वाले लोगों का कहना है कि वैष्णो देवी के दरबार में वही लोग पहुंच पाते हैं जिन्हें मां खुद बुलाती हैं. वैष्णो देवी मां के दरबार जाने के लिए कटरा से यात्रा पर्ची प्राप्त करना अनिवार्य है. यात्रा पर्ची के बिना आप यात्रा नहीं कर सकते. यह यात्रा पर्ची बस स्टैंड पर उपस्थित टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर, कटरा में मुफ्त एवं काफी सुविधा से मिलती है. यात्रा पर्ची के बिना यात्रियों को बाणगंगा से वापस आना पड़ सकता है. यात्रा पर्ची सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक ले सकते है. मां के भवन पर पहुंच कर यही पर्ची दिखाकर आप पवित्रा गुफा के दर्शन कर सकते हैं.

यहां आराम करने के साथ -साथ आप कम्बल, दरी, स्टोव तथा खाना बनाने के बर्तन आदि सामान कुछ पैसे जमा करने पर निःशुल्क मिल जाते हैं. इन सामान को वापस करने पर आपका जमा किया हुआ पैसा वापस मिल जाता है. यह व्यवस्था माता वैष्णव देवी बोर्ड की तरफ से की गई है.

आइये जानते है वैष्णो देवी यात्रा के विशिष्ट स्थल के बारे में (Vaishno devi visiting place) 

बस स्टैण्ड, कटरा (Katra Bus Stand)

बस स्टैण्ड कटरा से ही यात्रा की शुरूआत होती है. इस जगह पर काफी होटल एवं धर्मशालाएं हैं जहां यात्राी आकर रेस्ट करने के बाद बस स्टैण्ड पर स्थित श्री माता वैष्णो देवी स्थान बोर्ड 1986 से यात्रा पर्ची प्राप्त कर आगे की यात्रा की शुरू करते हैं. यह यात्रा पर्ची निःशुल्क दी जाती है और इसमें यात्रियों की जानकारी होती है.

बाण गंगा (Banganga) 

कन्या रूपी शक्ति मां जब उक्त स्थान से होकर आगे बढ़ी तो उसके साथ-साथ लंगूर भी चल रहे थे. चलते-चलते वीर लंगूर को जब प्यास लगी तो देवी ने पत्थरों में बाण मारकर गंगाजी को प्रवाहित कर दिया और प्रहरी की प्यास को तृप्त किया. इसी गंगा में ही देवी मां ने अपने केश भी धोकर संवारे इसलिए इसे बाण गंगा कहा जाता है.

चरण पादुका मंदिर (Charan Paduka Mandir) 

इस स्थान पर मां ने रूक कर पीछे की ओर देखा था कि भैरवयोगी आ रहे हैं. इसी कारण इस स्थान पर माता के पैरों के निशान बन गये, इसलिये इस स्थान को चरण पादुका के नाम से जाना जाता है. बाण गंगा से इसकी दूरी 1.5 किलो मीटर है.

आदि कुमारी (Aadi Kumari)

इस स्थान पर दिव्य कन्या ने एक छोटी गुफा के पास एक तपस्वी साधु को दर्शन दिये और उसी गुफा में 9 महीने तक इस प्रकार रहीं जैसे कोई शिशु अपनी माता के गर्भ में नौ माह तक रहता है. तपस्वी साधु ने भैरव को बताया था कि वह कोई साधारण कन्या नहीं बल्कि महाशक्ति है. भैरव ने जैसे ही गुफा में प्रवेश किया, माता ने त्रिशूल का प्रहार करके गुफा के पीछे दूसरा मार्ग बनाया और निकल गयी. इस गुफा को गर्भजून एवं स्थान को आदि कुमारी (अर्द्धकुमारी) कहा जाता है. यह चरण पादुका से 4.5 किमी. दूरी पर स्थित है.

हाथी मत्था (Hathi Mattha)

आदि कुमारी से आगे क्रमशः पहाड़ी यात्रा सीधी खड़ी चढ़ाई के रूप में प्रारंभ हो जाती है. इसी कारण इसे हाथी मत्था के सामान माना जाता है परंतु सीढ़ियों वाले रास्ते की अपेक्षा घुमावदार पहाड़ी पगडण्डी से जाने से चढ़ाई कम लगती है. आदिकुमारी से हाथी मत्था की दूरी लगभग 2.6 किमी है.

सांझी छत (Sanjhi Chat)

हाथी मत्था की चढ़ाई के बाद यात्राी सांझीछत पहुंचते हैं. इस छत को दिल्ली वाली छबील भी कहा जाता है. इस स्थान पर पहुंचने के बाद माता के दरबार तक केवल सीधे एवं नीचे की तरफ जाने का रास्ता है. रास्ते में शौचालय एवं पानी की अच्छी व्यवस्था है. यहां भिखारियों के भीख मांगने पर पूरी तरह से बैन है.

माता का भवन (Vaishno devi mandir)

माता के भवन जाने के पहले क्यू (लाईन) का नम्बर लेना जरूरी है. इसके बाद आप लाइन में लगकर मां के दर्शन कर सकते है. ध्यान रखे कि मां के दर्शन के समय आपके पास कैमरा, चमड़े का सामान, कंघी, जूता-चप्पल, बैग आदि नहीं हो. अगर यह सामान आपके पास है तो इसे भवन में जमा करा दे. इसके बाद ही आप मां के दर्शन कर सकते है.

मां के पास जाने के बाद आपको वहां एकाग्र मन से मां का स्मरण करना पड़ेगा. यहां किसी प्रकार का फोटो एवं मिट्टी की तस्वीर नहीं है. वहां मात्रा मां की पिण्डी है जिसके दर्शन कर यात्रियों की थकान अपने आप दूर हो जाती हैं. मां के पीछे से शुद्ध एवं शीतल जल प्रवाहित होता रहता है जिसे चरण गंगा कहते हैं.

मां के भवन के पास ठहरने की अच्छी व्यवस्था के साथ साथ मुफ्त में कम्बल भी मिलता है जिसे प्रयोग करने के बाद लौटाना अनिवार्य है.. खाने-पीने की दुकानों के अलावा प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र, पोस्ट ऑफिस पी.सी. बैंक एवं पुलिस सहायता भी यहां उपलब्ध है. गुफा की लम्बाई 39.61 मीटर, चैड़ाई 1082 एवं 2.21 मीटर है. मां के दर्शन के बाद आपका भैरों मंदिर जाना अनिवार्य है क्योंकि मां ने भैरों को मारने के बाद आर्शीवाद दिया था कि मेरे दर्शनों के पश्चात् भक्त तेरे भी दर्शन करेंगे, तभी उनकी मनोकानाएं पूर्ण होगी.

भैरों मंदिर का इतिहास (History of Bhairav mandir)

मां आगे बढ़ती रही-भैरव पीछा करता रहा. गुफा के गेट पर मां ने वीर लंगूर को प्रहरी बनाकर खड़ा कर दिया ताकि भैरव अंदर प्रवेश नहीं कर सके. मां के गुफा में प्रवेश करने के बाद भैरव भी गुफा में प्रवेश करने लगा.

लंगूर ने भैरव को अंदर जाने से रोका इस दौरान भैरव के साथ लंगूर का युद्ध हुआ. फिर मां ने शक्ति यानी चंडी का रूप धारण कर भैरव का वध कर दिया. धड़ वहीं गुफा के पास तथा सिर भैरव घाटी में जा गिरा. जिस स्थान पर भैरव का सिर गिरा था, इसी जगह भैरों मंदिर का निर्माण हुआ है.

मां के भवन से भैरों मंदिर की दूरी लगभग 4 किमी. है जो काफी ऊंचाई पर है. यहां जाने के लिए आप घोड़ा- खच्चरों का सहारा ले सकते है. मां के आशीर्वाद के कारण ही लोग वापसी में भैरों मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं.

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One thought on “Vaishno Devi Yatra: कैसे और कब करें जानें की प्लानिंग ?”

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