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महिला साक्षरता में छिपी है देश के विकास की कहानी, लेकिन क्यों निरक्षर रह गई स्त्री?

महिला साक्षरता में छिपी है देश के विकास की कहानी, लेकिन क्यों पुरुषों की तुलना में निरक्षर रह गई स्त्री?महिला साक्षरता में छिपी है देश के विकास की कहानी, लेकिन क्यों पुरुषों की तुलना में निरक्षर रह गई स्त्री?

हमारे देश में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा आज भी निरक्षर है और इस कारण विकास योजनाओं से अपने को लाभान्वित करने में असमर्थ हैं. इस दुर्दशा को दूर करने के लिए महिला साक्षरता की योजनाएं कई सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं के तत्वावधान में चल रही हैं पर इनमें वांछित गति परिलक्षित नहीं होती. अब भी हमारी महिला साक्षरता दर पुरूष साक्षरता दर से कहीं पीछे है.

क्यों नहीं लगता पढ़ने में मन

यह तो मानी हुई बात है कि प्रौढ़ जनों को उन्हीं विषयों में रुचि हो सकती है जिनसे उनके वर्तमान जीवन में प्रत्यक्ष लाभ त्वरित पहुंचे. अक्षर ज्ञान भी उन्हें तभी रुचिकर लगेगा जब उस ज्ञान को प्राप्त करने से उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने में तुरंत सहायता मिले. इसी कारण शिक्षाविद साक्षरता को कार्योन्मुखी बनाने की सिफारिश करते हैं.

कृषि में छिपी है असीम संभावनाएं

कृषि ऐसा एक क्षेत्र है जिसके लिए हमारे गांवों में असीम संभावनाएं हैं. गांवों में कितनी ही उपजाऊ जमीन खाली पड़ी हैं. ऐसे क्षेत्रों में यदि भू-हीन परिवारों की महिलाओं को साक्षरता केन्द्रों के प्रशिक्षण के अन्तर्गत खेती में प्रशिक्षित किया जाए, उनके छोटे छोटे स्वयं सहायक संघ बनाए जाएं और उन्ंरत खेती करने के लिए खाली पड़ी कृषि भूमि के टुकड़े काश्त पर उपलब्ध कराई जाए तो एक ओर उनका आर्थिक सशक्तीकरण संभव हो सकेगा और दूसरी ओर देश की भक्ष्य-सुरक्षा में गणनीय योगदान प्राप्त होगा. हां इन संघों को खेती के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने में आवश्यक राशि ब्याज-सबसिडी सहित ऋण स्वरूप देने राष्ट्रीयकृत बैंकों को आगे आना होगा.

ग्रामीण महिलाओं में विधि संबंधी संचेतना निर्माण का कार्य भी साक्षरता केन्द्रों के माध्यम से किया जाना है. इसे कानूनी-साक्षरता अभियान कहते हैं. यह कार्यक्रम गरीब महिलाओं के जीवन दिन-प्रतिदिन होने वाली हिंसा के रोकथाम में अत्यंत सहायक हो सकता है. यहां आवश्यक है कि कानून की भाषा से बचते हुए कानून के प्रावधानों को साधारण घटनाओं का उदाहरण देकर समझा दिया जाए और शिक्षार्थियों की शंकाओं का निवारण सहानुभूतिपूर्वक किया जाए. लोकगीतों, लोकनृत्यों आदि का यथोचित समावेश शैक्षिक कार्यक्रमों में रोचकता ला सकता है.

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By के.जी. बालकृष्ण पिल्लै

लेखक और पत्रकार

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