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Anant Chaturdashi Katha : कैसे करें गणेश जी की विदाई, पढ़ें अनंत चतुर्दशी की कथा?

Anant Chaturdashi Katha

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेशजी को विदा किया जाता है तथा धूमधाम के साथ उनका विसर्जन किया जाता है. इस दिन अनंत चतुर्दशी व्रत (Anant Chaturdashi Katha) रखना चाहिए और अनंत चतुर्दशी कथा सुननी चाहिए.  

अनंत चौदस का दिन गणपती जी के विदाई का दिन होता है. इस खास दिन को भारत में हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन गणपती की विदाई विधि-विधान से करें. 

अनंत चतुर्दशी कब है? (Anant Chaturdashi Kab hai?) 

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है. साल 2022 में ये 9 सितंबर को आ रही है और इस दिन शुक्रवार है. 

गणेशजी को कैसे विदा करें?(Ganpati visarjan kaise kare?)

अनंत चतुर्दशी के मौके पर हर्ष-उल्लास के साथ विधि-विधान से गणेशजी को विदा करना चाहिए. 

– सबसे पहले रोज की तरह गणेश जी की आरती करें. 

– गणेशजी को विशेष भोग का प्रसाद लगाएं. 

– पवित्र गणेश मंत्रों से स्वस्तिवाचन करें. 

– अब एक स्वच्छ लकड़ी का पटिया लेकर उसे गंगाजल शुद्ध करें. 

– घर की स्त्री उस पर एक स्वास्तिक बनाए, उस पर एक लाल कपड़ा बिछाए और अक्षत रखे. 

– कपड़े के ऊपर गुलाब की पंखुयडियां फैलाएं. 

– अब गणेशजी को ‘गणपती बप्पा मोरिया’ उद्घोष के साथ उठाएं और इस पटिये पर बैठा दें. 

– पटिये पर विराजित करने के बाद फल, फूल, मोदक, वस्त्र और दक्षिणा रखें. 

– गणेशजी को विदा करने के लिए ले जाने से पहले अपने साथ कुछ अनाज और सिक्के रख लें जिन्हें आप रास्ते मे दान कर सके. 

– गणेशजी को विसर्जित करने से पहले कपूर से उनकी आरती की जाती है. 

– आरती करने के पश्चात खुशी के साथ आदर सम्मान से उनकी प्रतिमा को धीरे-धीरे पानी में विसर्जित करें. 

– अपनी गलतियों के लिए उनसे क्षमा मांगे और आने वाले कल के लिए खुशियां मांगे. 

अनंत चतुर्दशी की कथा (Anant Chaturdashi Katha)

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया. जिसमें सभी राजाओं को बुलाया गया था. इस यज्ञ के लिए भव्य एवं अद्भुत मंडप का निर्माण कराया गया था. मंडप में जल और थल की भिन्नता महसूस नहीं हो रही थी. 

इसी यज्ञ में दुर्योधन भी आया हुआ था. दुर्योधन ने तालाब को स्थल समझकर उसमें पैर रख दिया और वह उसमें गिर गया. द्रौपदी और अन्य लोग यह देखकर हंसने लगे और द्रौपदी ने उपहास उड़ाते हुए कहा कि ‘अन्धो की संतान अंधी’

दुर्योधन इससे चिढ़ गया और उसके मन में द्वेष उत्पन्न हो गया. उसने पांडवों से बदला लेने की ठानी. बाद में उसने पांडवों को जुए में हराया, द्रौपदी का वस्त्र हरण किया, पांडवों का राज्य जीत लिया और पांडवों को वनवास और अज्ञातवास पर भेज दिया. 

एक दिन जब युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से मिले तो उन्होंने कृष्ण से दुख दूर करने का उपाय पूछा. तब कृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत भगवान का व्रत करने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि इस व्रत से तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे. इस संबंध में (Anant Chaturdashi Katha) श्रीकृष्ण ने एक कथा सुनाई. 

प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक तेजस्वी ब्राहमण था. उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था. उनकी एक सुंदर, धर्म परायण और ज्योतिर्मयी कन्या थी जिसका नाम सुशीला था. सुशीला के बड़े होने पर उसकी माता की मृत्यु हो गई. 

पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने दूसरा विवाह कर्कशा नाम की स्त्री से कर लिया तथा सुशीला का विवाह कौंडिन्य नामक ऋषि के साथ करा दिया. विदाई के नाम पर कर्कशा ने अपने दामाद को कुछ ईंट और पत्थर के टुकड़े बांध कर दे दिए. 

दामाद ऋषि दुखी होकर अपने आश्रम की ओर चल दिए. परंतु रास्ते में रात होने पर वे नदी के तट पर ही रुक गए. तब उन्होंने देखा कि वहाँ पर बहुत सारी स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा कर रही हैं. 

सुशीला के पूछने पर स्त्रियों ने बताया कि वह अनंत भगवान की पूजा कर रही हैं. (Anant Chaturdashi Katha) सुशीला व्रत का अनुष्ठान पूछकर तथा चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांधकर अपने पति के पास आ गई. 

पति ने जब डोरे के बार में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी. उसने डोरे को तोड़कर अग्नि में डाल दिया. इससे भगवान का अपमान हुआ. फलस्वरूप वे दुखी रहने लगे. उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई. 

पति ने इस दरिद्रता का कारण पूछा तो सुशीला ने डोरा जलाने वाली बात कही. वे दोनों  उसे ढूंढने के लिए वन में चले गए. वन में भटकते-भटकते एक दिन वे भूमि पर गिर पड़े. तब अनंत भगवान प्रकट हुए. 

भगवान ने कहा कि हे कौंडिन्य तुमने मेरा तिरस्कार किया था. (Anant Chaturdashi Katha) इस वजह से तुम्हें कष्ट भोगना पड़ रहा है. तुमने अब पश्चाताप किया तो मैं तुमसे प्रसन्न हूँ. तुम घर जाकर विधि-विधान से अनंत व्रत करो. चौदह वर्षों में तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा. 

कौंडिन्य ने वैसा ही किया. देखते ही देखते कुछ ही सालों में उसके सभी दुख दूर हो गए. इस कथा को सुनने के बाद युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया. जिसके प्रभाव से पांडवों की महाभारत युद्ध में विजयी हुई और वे चिरकाल तक राज करते रहे.  

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By पंडित नितिन कुमार व्यास

ज्योतिषाचार्य पंडित नितिन कुमार व्यास मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में रहते हैं. वे पिछले 35 सालों से ज्योतिष संबंधी परामर्श और सेवाएं दे रहे हैं.

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